October 21, 2024
क्या आप नहीं चाहते हैं कि इंडिया सेक्युलर रहे..? संविधान प्रस्तावना से समाजवाद और पंथनिरपेक्षता शब्द हटाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट

क्या आप नहीं चाहते हैं कि इंडिया सेक्युलर रहे..? संविधान प्रस्तावना से समाजवाद और पंथनिरपेक्षता शब्द हटाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट​

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'समाजवाद' और 'पंथनिरपेक्षता' शब्दों की आज अलग-अलग व्याख्याएं हैं. यहां तक ​​कि हमारी अदालतें भी इन्हें बार-बार बुनियादी ढांचे का हिस्सा घोषित कर चुकी हैं.

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्षता’ शब्दों की आज अलग-अलग व्याख्याएं हैं. यहां तक ​​कि हमारी अदालतें भी इन्हें बार-बार बुनियादी ढांचे का हिस्सा घोषित कर चुकी हैं.

संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्षता’ शब्द हटाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई हुई. इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव खन्ना ने एडवोकेट विष्णु शंकर जैन से पूछा कि – क्या आप नहीं चाहते हैं कि इंडिया सेक्युलर रहे? सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि प्रस्तावना में इन शब्दों को जोड़ना संसद को अनुच्छेद 368 के तहत मिली संविधान संशोधन की शक्ति से परे है.

‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्षता’ की अलग-अलग व्याख्याएं

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्षता’ शब्दों की आज अलग-अलग व्याख्याएं हैं. यहां तक ​​कि हमारी अदालतें भी इन्हें बार-बार बुनियादी ढांचे का हिस्सा घोषित कर चुकी हैं. जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि समाजवाद का मतलब यह भी हो सकता है कि सभी के लिए उचित अवसर होना चाहिए, समानता की अवधारणा से संबंधित है. इसे पश्चिमी देशों की अवधारणा में न लें.

सुप्रीम कोर्ट का इस मामले में नोटिस जारी करने से इनकार

इसका कुछ अलग अर्थ भी हो सकता है – धर्मनिरपेक्षता शब्द के साथ भी ऐसा ही है. वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि इस मुद्दे पर संसद में बहस नहीं हुई थी, यह संविधान सभा में हुए विचार के विरुद्ध है. सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी करने से इनकार करते हुए कहा कि हम 18 नवंबर से शुरू होने वाले हफ्ते में सुनवाई करेंगे. सुनवाई के दौरान याचिका कर्ता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में जो बदलाव हुआ वह मूल संविधान की भावना के ख़िलाफ़ था. स्वामी ने कोर्ट से अनुरोध किया कि वो अपनी दलील विस्तार से रखना चाहते हैं.

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