जगदंबा घर में दियारा बार अईनी हो… अलविदा छठ गीतों की शारदा​

 बिहार संगीत अकादमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. शंकर प्रसाद ने शारदा सिन्हा के निधन पर शोक जताते हुए उनके साथ हुई अपनी आखिरी मुलाकात को याद किया. उन्होंने कहा कि शारदाजी ने मुझे व्यक्तिगत रूप से अपनी बेटी की शादी में सुप्रसिद्ध नाल वादक अर्जुन चौधरी के माध्यम से कार्ड भिजवाया था और मैं उस शादी में गया था. एक तरह से उनके वह अंतिम मुलाकात थी.

लोकगीतों की प्रसिद्ध गायिका और बिहार की स्वर कोकिला शारदा सिन्हा नहीं (Sharda Sinha Passed Away) रहीं. बिहार समेत पूरा देश गमगीन है. बिहार संगीत अकादमी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. शंकर प्रसाद ने उन्हें याद करते हुए उनके साथ हुई अपनी मुलाकात को याद किया. उनका कहना है कि खबर मिली कि सुप्रसिद्ध लोक गायिका शारदा सिन्हा नहीं रहीं. हम कलाकारों के लिए यह खबर बहुत दुखदाई है. अनगिनत यादें हमारे पास हैं. छठ पर्व चल रहा है और हर तरफ छठ मैया के गीतों की धूम है.  इन गीतों में जिस कलाकार की स्वर लहरी हवाओं में गूंज रही है वह आवाज है शारदा सिन्हा की. 

 बहुत पहले हमारे एक कवि मित्र ने उनके बारे में कहा था कि जब से शारदा जी ने मां के लिए जीत गाया जगदंबा घर में दियारा बार अईनीहो तब से उनका दीपक जगदंबा जी के घर में अनवरत जल रहा है. यह दीपक कभी बुझने वाला नहीं है, क्योंकि उनके स्वर में यह गीत अमर हो चुका है. 

शारदा सिन्हा से पहली बार आकाशवाणी में मिला

शारदा जी की बहुत सारी यादें आज वातायनन से बाहर आकर हमारे हृदय को आंदोलित कर रही हैं. कलाकार के रूप में उनसे प्रथम मुलाकात आकाशवाणी पटना में हुई. यह सन् 1972 की बात है. उस समय शारदा जी सुगम संगीत के ऑडिशन के लिए आकाशवाणी पटना में अपने पति जी के साथ आई थीं.उस समय प्रोड्यूसर थे ब्रह्मदेव नारायण जी और मैं एनाउंसर था. उनसे परिचय हुआ एनाउंसर के रूप में. उन्होंने कहा आपकी आवाज रोज सुनती हूं बहुत अच्छा लगता है अब मैं सुगम संगीत की कलाकार बन गई हूं तो आप उद्घोषणा करेंगे मेरे कार्यक्रमों की.

इसके बाद समय का पहिया घूमता रहा सुगम संगीत के बाद उन्होंने पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी के हाथों लोकगीत में ऑडिशन प्राप्त किया.  उस समय से लेकर अंतिम सांस तक उनके होठों पर लोकगीत रहे. जगदंबा की आरती रही छठ मैया के सुहाने गीत रहे और विभिन्न पर्व त्योहार पर गाए जाने वाले विभिन्न विधि के विभिन्न प्रकार के लोकगीत उनके स्वर में हर तरफ गूंजते रहे.

बड़ों का बहुत सम्मान करती थीं शारदा सिन्हा

जब मैं संगीत नाटक अकादमी का अध्यक्ष बना तब पूर्वोत्तर संस्कृति केंद्र में वह भी सदस्य बनी थीं और कलकत्ता में गवर्नर हाउस में उनसे मुलाकात हुई उन्होंने राज्यपाल महोदय को शॉल भेंट किया. उनमें एक विशिष्ट गुण था कि वो अपने से बड़ों का सम्मान करती थीं और बड़ी पोस्ट पर रहने वालों को वह बराबर शॉल भेंट किया करती थीं. एक बहुत महत्वपूर्ण कार्यक्रम उत्तर मध्य क्षेत्र संस्कृति केंद्र से प्रयाग में संपन्न हुआ, उसमें गंगा के किनारे यानी संगम के किनारे बहुत सारे टेंट लगाए गए थे. बहुत बड़ा कुंभ का मेला था और उसमें शारदा जी शोभना नारायण जी और मैं कलाकार के रूप में आमंत्रित थे. उस पवित्र स्थान पर संगम की लहरों के बीच में हम लोगों ने अपनी अपनी प्रस्तुतियां की और लोगों ने बहुत सराहना की .आज भी संगम की लहरों में शारदा जी की स्वर लहरिया गूंज रही हैं.

आकाशवाणी पटना में बहुत सारे कंसर्ट हुए. उन कंसर्ट में शारदा जी का आना हुआ और अपनी प्रतिभा का उन्होंने प्रदर्शन किया. मुझे स्मरण है गांधी मैदान में वह समय था 1994 का. संगीत नाटक अकादमी की ओर से पहली बार भारत रत्न बिस्मिल्लाह खान साहब को सम्मानित किया गया था. 500000 की राशि थी और उस समय मुख्यमंत्री थे माननीय श्री लालू प्रसाद जी. मेरे अनुरोध पर शारदा जी ने इस अवसर पर अपनी प्रस्तुति दी और उस्ताद बिस्मिल्लाह खान साहब ने भी उनकी स्वर स्वर लहरियों की प्रशंसा की.

लोकगीत के लिए रहीं समर्पित

एक जमाने में विंध्यवासिनी जी के साथ आरा की सुप्रसिद्ध गायिका मोहिनी देवी रहती थीं. उनकी आवाज का रेंज बहुत ऊंचा था. संभवत: उस ऊंचाई तक आज तक कोई भी महिला कलाकार की आवाज मैंने नहीं सुनी. उनके साथ भी शारदा जी ने भारतीय नृत्य कला मंदिर में कंसर्ट में अपना कार्यक्रम किया. जनमानस में शारदा जी बराबर छाई रहीं. यानी 1984 के बाद अंतिम सांस तक उन्होंने लोकगीत की सेवा की और लोकगीत के लिए समर्पित रही. संगीत में उनकी अच्छी शिक्षा थी इसलिए उनकी आवाज बहुत मंझी हुई थी.

शारदा सिन्हा सुगम संगीत में गीत गजल भजन कव्वाली सब कुछ गाती थीं लेकिन उनका मन रमा लोकगीतों में.पद्मश्री पद्मभूषण पाने के बाद भी उनमें कहीं कोई परिवर्तन नहीं हुआ . वह सभी से मिला करती थीं सबको प्यार देती थीं और जो उनके साथ संगत करने वाले कलाकार थे, उन कलाकारों की वह खिदमत करती थीं, उनकी सेवा करती थीं और बराबर उनकी सहायता करती थीं. उन्होंने राजेंद्र नगर में उन्होंने अपना निवास बनाया था. बाढ़ के समय जब उनके घर में पानी भीतर तक प्रवेश कर गया तब आकाशवाणी से लेकर दूरदर्शन तक के जितने कर्मचारी और अधिकारी थे सभी उनकी सुरक्षा में आए. तब महसूस हुआ उनका व्यक्तित्व कितना बड़ा था.

उनका मुस्कुराता हुआ चेहरा याद आएगा

अपने देश के बड़े-बड़े मंचों पर उनके कार्यक्रम हुए. आकाशवाणी दूरदर्शन के विभिन्न क्षेत्रों में उनके बहुत सारे कार्यक्रम हुए और उनकी बहुत सारी रिकॉर्डिंग आकाशवाणी और दूरदर्शन में सुरक्षित हैं. आज हम लोगों के बीच वह नहीं रहीं लेकिन उनका मुस्कुराता हुआ चेहरा उनकी मधुर आवाज और उनके मीठे व्यक्तित्व से हम सभी बराबर उनको याद करते रहेंगे. हम कलाकारों के बीच में उनका स्थान बहुत महत्वपूर्ण हमेशा था हमेशा रहेगा.
 
उनके असमय जाने का दुख सभी कलाकारों को है. मुझे व्यक्तिगत रूप से क्योंकि अपनी बेटी की शादी में सुप्रसिद्ध नाल वादक अर्जुन चौधरी के माध्यम से उन्होंने कार्ड भिजवाया था और मैं उस शादी में गया था. एक तरह से अंतिम मुलाकात वही है.वह हम लोग के हृदय में हमेशा निवास करेंगी. उनके गाए हुए लोकगीत हमेशा दुनिया भर में गूंजते रहेंगे. विनम्र भाव से मैं उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा हूं. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे और उनके परिवार को यह असहनीय दुख सहने की शक्ति दे. ओम शांति ओम शांति ओम शांति।।।

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