जम्मू-कश्मीर में क्या किंगमेकर बनेंगे राशिद इंजीनियर?​

 Jammu-Kashmir Assembly Election 2024: राशिद की लोकप्रियता किस हद तक है इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि जेल से बाहर आने के बाद उत्तरी कश्मीर में शायद ही कोई ऐसा शख्स हो, जिसने ये सवाल उठाया हो कि राशिद को चुनाव प्रचार के लिए 22 दिनों की जमानत क्यों मिली.

जम्मू-कश्मीर में आज तीसरे और आखिरी चरण की वोटिंग (Jammu0Kashmir Assembly Elections 2024) हो रही है. 40 सीटों पर 415 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला होना है. इन उम्मीदवारों में एक खास नाम भी शामिल है. वो नाम है राशिद इंजीनियर का. वही राशिद इंजीनियर (Rashid Engineer) जो पिछले 5 सालों से दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद थे, लेकिन फिर भी लोकसभा चुनाव जीत गए. विधानसभा चुनाव से पहले वह जमानत पर जेल से बाहर आ गए हैं. जम्मू की 24 और कश्मीर की जिन सीटों पर वोट डाले जा रहे हैं, उनमें राशिद इंजीनियर के प्रभाव वाली 16 सीटें भी शामिल हैं. ऐसे में सवाल ये भी है कि क्या राशिद इन चुनावों में किंगमेकर बनकर उभरेंगे. हालांकि कई लोग उनको वोट कटवा के रूप में भी देख रहे हैं.

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क्या ‘एक्स-फैक्टर’ बनकर उभरेंगे राशिद

राशिद इंजीनियर की लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है, यही वजह है कि उमर की नेशनल कॉन्फ्रेंस से लेकर महबूबा की पीडीपी तक, घाटी की क्षेत्रीय पार्टियां राशिद की अवामी इत्तेहाद पार्टी से डरी हुई जरूर हैं. उत्तरी कश्मीर में आज हो रहा चुनाव यह तय करेगा कि क्या राशिद जम्मू-कश्मीर में “एक्स-फैक्टर” बनकर उभरेंगे.  

आखिरी चरण का चुनाव यह तय करेगा कि अनुच्छेद 370 के बाद जम्मू-कश्मीर में कौन सरकार बनाएगा. बीजेपी छोटे दलों के साथ मिलकर आंकड़ा जुटाने की कोशिश में है तो वहीं एनसी और पीडीपी अपनी-अपनी जीत की आस लगाए बैठे हैं.

कौन हैं राशिद इंजीनियर?

राशिद इंजीनियर का असली नाम शेख रशीद है.वह साल 2019 से जिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद थे.विधानसभा चुनाव से पहले उनको जमानत मिल गई.  राशिद इंजीनियर बारामूला से सांसद हैं. उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा था.2024 लोकसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला को हराया.राशिद इंजीनियर उत्तर कश्मीर की राजनीति में जाना-माना नाम हैं.राशिद केंद्र शासित प्रदेश के पूर्व विधायक भी हैं.राशिद 5 सालों से UAPA के तहत दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद थे.राशिद आवामी इत्तेदाह पार्टी के संस्थापक सदस्य हैं.राशिद को 2019 में NIA ने टेरर फंडिंग मामले में गिरफ्तार किया था.

राशिद इन 16 सीटों पर कर पाएंगे कमाल?

आखिरी चरण में राशिद इंजीनियर के प्रभाव वाली 16 सीटें कश्मीर के बारामूला, बांदीपोरा और कुपवाड़ा जिलों की हैं. पिछले हफ्ते राशिद इंजीनियर का कारवां उस निर्वाचन क्षेत्र में पहुंचा था, जिसने उनको जेल में होने के बावजूद भी बारामूला लोकसभा सीट से जीत दिलवाई. राशिद की वजह से ही लोकसभा चुनाव में उमर अब्दुल्ला और सज्जाद लोन को करारी हार का मुंह देखना पड़ा था.

5 साल से जेल में बंद, फिर भी हौसले बुलंद

जमानत पर छूटने के बाद राशिद ने श्रीनगर में कहा था कि ‘कश्मीर और कश्मीरियों की जीत निश्चित है. 5 पांच अगस्त 2019 को पीएम मोदी द्वारा लिया गया फैसला (जम्मू कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे का समापन) हमें किसी भी हाल में मंजूर नहीं है. चाहे हमें जेल में डाल दो या कहीं और भेज दो, हमें पूरा विश्वास है कि हम जीतेंगे.’ जेल से छूटे राशिद के हौसले उतने ही बुलंद दिखे थे. वह कश्मीरियों को ये संदेश दे रहे थे कि कश्मीर की ताकत कम नहीं हुई है और वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखेंगे.    

विरोधियों के लिए खतरा हैं राशिद इंजीनियर?

राशिद और उनकी अवामी इत्तेहाद पार्टी कश्मीर में मजबूती के साथ चुनावी मैदान में हैं. ये बात उनके विरोधयों को परेशान कर रही है. पीडीपी और एनसी का आरोप है कि मुख्यधारा की पार्टियों में सेंध लगाने और कश्मीर के वोटों को बांटवे के लिए बीजेपी ने रणनीति के तहत राशिद इंजीनियर को चुनावी मैदान में उतारा है. 

राशिद की लोकप्रियता किस हद तक है इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि जेल से बाहर आने के बाद उत्तरी कश्मीर में शायद ही कोई ऐसा शख्स हो, जिसने ये सवाल उठाया हो कि राशिद को चुनाव प्रचार के लिए 22 दिनों की जमानत क्यों मिली. हालांकि उनको संसद में हिस्सा लेने की परमिशन नहीं है. 

राशिद के सामने टिक पाएंगे ये दिग्गज?

उत्तरी कश्मीर में कई निर्दलीय भी मजबूती के साथ चुनावी मैदान में हैं, जिनमें बारामूला में पीडीपी से बागी हुए मुजफ्फर बेग का नाम है. वहीं पीसी के अलावा कुछ जमात-ए-इस्लामी समर्थित उम्मीदवार भी राशिद को कड़ी टक्कर दे रहे हैं. राशिद के भाई उनकी पूर्व विधानसभा सीट लंगेट से चुनाव लड़ रहे हैं. एनसी भी चुनाव जीतने के लिए पूरा दमखम लगा रही है.

क्या हैं कश्मीर के चुनावी मुद्दे?

बेरोजगारी युवाओं और बुजुर्गों के बीच चिंता का मुख्य कराण है.धारा 370 और “धर्मनिरपेक्षता” भी कश्मीर में भावनात्मक मुद्दा है.  

राशिद  का कोई समर्थक, कोई विरोधी

कोई कह रहा है कि राशिद बेनकाब हो गए हैं तो कोई उनका कट्टर समर्थक है, तो कोई एनसी पर ही दाव लगा रहा है. टीओआई के मुताबिक, संग्रामा में एक मामूली ढाबा चलाने वाले शौकत तांत्रे  एआईपी के वकील मुरासलीन का समर्थन कर रहे हैं. उनका कहना है कि राशिद अच्छे हैं. वहीं एक कंपनी में काम करने वाले  इंजीनियर शाकिर भट कह रहे हैं कि चुनाव में एनसी मजबूत है. 

एक रिटायर्ड 70 साल के शख्स ने कहा, मैंने 2024 के लोकसभा चुनावों में पहली बार वोट किया. राशिद और उनके बच्चों के इमोशनल अभियान ने युवाओं को प्रभावित किया.”सिंचाई विभाग से रिटायर्ड 67 साल के इंजीनियर ने कहा कि राशिद को बीजेपी के शिकार के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन स्थानीय चुनावों में वह सीटें हार जाएंगे. उन्होंने इस पर भी शक जताया कि  उनको अचानक जेल से क्यों रिहा किया गया.उत्तरी कश्मीर ने लोकसभा चुनाव में राशिद को जमकर समर्थन किया था.  लेकिन उनकी रिहाई से लोगों के मन में शक पैदा होने लगा है. इसका असर उनके वोटर्स पर देखा जा सकता है.

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