झारखंड में BJP और JMM का कितना नुकसान करेंगे जयराम महतो, क्या है उनकी पॉलिटिक्स​

 रोजगार और स्थानीयता का मुद्दा उठाकर जयराम महतो ने बड़ी संख्या में युवाओं को अपनी ओर किया है. लोकसभा चुनाव में मिले वोटों ने विधानसभा चुनाव में महतो का हौंसला बुलंद कर दिया है. लेकिन उनकी मेहनत कितना रंग लाती है, इसका पता 23 नवंबर को चल पाएगा, जब मतगणना होगी.

झारखंड का सत्ता संग्राम शुरू हो चुका है. सभी दल अपनी-अपनी गोटियां बिठाने में लगे हुए हैं. इस बार का भी मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ महागठबंधन और एनडीए के बीच माना जा रहा है. इन दोनों गठबंधनों को चुनौती देने के लिए कुछ छोटे दल भी चुनाव मैदान में हैं.इन छोटे दलों में से एक है झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेकेएलएम). जेकेएलएम झारखंड में महागठबंधन और एनडीए दोनों के लिए चुनौती बनकर खड़ा है. जेकेएलएम ने अब तक अपने 51 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है. 

जेकेएलएम का नेतृत्व करते हैं जयराम महतो. वो कुड़मी जाति के हैं. झारखंड में कुड़मी जाति की आबादी 15 फीसदी से अधिक बताई जाती है.यह राज्य में 26 फीसदी से अधिक आदिवासियों के बाद सबसे बड़ा जातीय समूह है. जेकेएलएम ने अपने इरादे लोकसभा चुनाव में ही साफ कर दिए थे. जेकेएलएम ने लोकसभा चुनाव में राज्य की 14 में से आठ सीटों पर चुनाव लड़ा था. जेकेएलएम की इन सीटों पर अपनी तगड़ी मौजूदगी दर्ज कराई थी. जेकेएलएम ने जिन सीटों पर चुनाव लड़ा था, उनमें रांची, हजारीबाग,गिरीडीह, कोडरमा और धनबाद. 

लोकसभा चुनाव में जेकेएलएम का प्रदर्शन

रांची सीट पर बीजेपी ने कांग्रेस को एक लाख 20 हजार से अधिक वोटों से हराया था.इस सीट पर जेकेएलएम के देवेंद्र नाथ महतो को 1 लाख  32 हजार से अधिक वोट मिले थे.जेकेएलएम प्रमुख जयराम महतो ने गिरिडीह सीट से चुनाव लड़ा था. वहां उन्होंने तीन लाख 47 हजार 322 वोट हासिल किए थे. वहीं दूसरे नंबर पर रहे झारखंड मुक्ति मोर्चा के मथुरा प्रसाद महतो को तीन लाख 70 हजार 259 वोट मिले थे.लोकसभा चुनाव में जयराम महतो ने गिरिडीह सीट में आने वाली गोमिया और डुमरी में झारखंड मुक्तिमोर्चा और बीजेपी के उम्मीदवारों से अधिक वोट हासिल किए थे.  साल 2019 के विधानसभा चुनाव में ये दोनों सीटें झारखंड मुक्ति मोर्चा ने जीती थीं.

लोकसभा चुनाव में जेकेएलएम भले ही कोई सीट नहीं जीत पाई थी, लेकिन उसने हर सीट पर अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराई थी.जेकेएलएम ने जिस तरह का प्रदर्शन लोकसभा चुनाव में किया, वैसा ही अगर विधानसभा चुनाव में किया तो दोनों गठबंधनों के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है. रांची के पत्रकार मोहम्मद सरताज आलम कहते हैं कि जयराम महतो के झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा ने अगर अच्छा प्रदर्शन किया तो, इसका नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ेगा, क्योंकि यह मोर्चा सुदेश महतो के आल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) का ही वोट काटेगा.इससे झारखंड में बीजेपी का वही हाल हो सकता है, जो हरियाणा में कांग्रेस का हुआ है. आजसू झारखंड में बीजेपी की सहयोगी है. बीजेपी ने 2019 का विधानसभा चुनाव अलग-अलग लड़ा था. इसमें बीजेपी को 33.8 फीसदी वोट और 25 सीटें मिली थीं. वहीं आजसू ने 8.2 फीसदी वोट हासिल किए थे और दो सीटें जीती थीं.   

जयराम महतो की दावेदारी

जयराम महतो ने गिरिडीह की डुमरी सीट से दावेदारी कर रहे हैं. इसके अलावा उन्होंने एक और सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा की है, लेकिन पार्टी ने अभी तक उनकी दूसरी सीट का ऐलान नहीं किया है. साल 2019 के चुनाव में डुमरी सीट झारखंड मुक्ति मोर्चा की बेबी देवी ने जीती थी. उन्होंने आल झारखंड यूनियन की यशोदा देवी को 17 हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया था.

झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा के उम्मीदवारों की सूची

जयराम महतो झारखंड की राजनीति में सुदेश महतो के आल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) के लिए चुनौती हैं. जयराम अच्छे वक्ता हैं. उनकी युवाओं में अपील बहुत अधिक है. नौकरी, स्थानीयता और 1932 के खतियान का मुद्दा उठाकर वो युवाओं को अपनी तरफ कर रहे हैं. सुदेश महतो और जयराम महतो दोनों ही छात्र राजनीति से ही आए हैं.इसलिए दोनों ही युवाओं से जुड़े मुद्दों को तरजीह देते हैं. सरताज कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के दलित नेता चंद्रशेखर जिस तरह से राजनीति के क्षितिज पर उभर हैं, उसी तरह का उभार जयराम महतो का भी हो रहा है. 

कुर्मी या कुड़मी

जयराम महतो कुड़मी जाति के हैं.दिसंबर 1994 में पैदा हुए जयराम धनबाद के रहने वाले हैं.उन्होंने धनबाद के कोयलांचल विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री ली है.महतो जिस कुड़मी जाति से आते हैं,उसके रीति-रिवाज बहुत हद तक आदिवासियों से मिलते-जुलते हैं.लेकिन ये लोग अब अपने आपको कुर्मी मानने लगे हैं. कुड़मी जाति झारखंड में अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल है. इस जाति की आबादी झारखंड में 15 फीसदी से अधिक है. जयराम की नजर भी इसी वोट बैंक पर है. वह लोगों से आम बोलचाल की भाषा में संपर्क करते हैं. युवाओं के सामने वो रोजगार और स्थानीयता का मुद्दा उठाते हैं.

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