एमसीडी चुनावों से पहले राजधानी के तीन लैंडफिल स्थल प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गए थे. भलस्वा के लोगों को अफसोस है कि चुनाव के बाद उन्हें कोई महत्वपूर्ण बदलाव देखने को नहीं मिला.
दिसंबर 2022 के एमसीडी चुनावों के दौरान किए गए वादों ने दिल्ली के उत्तर-पश्चिम जिले में कचरे के विशाल पहाड़ की ढलान पर स्थित भलस्वा गांव के लोगों के बीच बेहतर जीवन की उम्मीदें फिर से जगा दी थीं. तब से दो वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन भलस्वा के लोग बढ़ती हुई स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के बीच बदतर हालात का सामना कर रहे हैं.
दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के चुनावों से पहले आम आदमी पार्टी (आप) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दोनों ने राजधानी के तीन लैंडफिल स्थलों को प्रमुख चुनावी मुद्दा बना दिया था. लेकिन, भलस्वा के लोगों को अफसोस है कि चुनाव के बाद उन्हें कोई महत्वपूर्ण बदलाव देखने को नहीं मिला क्योंकि राजनीतिक दलों के सारे वादे धरे के धरे रह गए.
भलस्वा में रहने वाले अंकित कुमार (22) ने अपने क्षेत्र की समस्याओं के बारे में कहा, ‘‘हम कई वर्षों से इस समस्या से जूझ रहे हैं. यहां कोई भी सुरक्षित नहीं है, यहां तक कि जानवर भी नहीं. गायों के पेट में केवल प्लास्टिक है.”
अंकित हाल ही में ‘तपेदिक’ (टीबी) से ठीक हुए हैं.
नेताओं के वादों पर जताई निराशा
क्षेत्र के पर्यावरण और स्वास्थ्य संबंधी खतरों की ओर इशारा करते हुए अंकित कुमार ने कहा, ‘‘साल भर में हमारे परिवार में कोई न कोई बीमार पड़ ही जाता है. चुनाव के समय नेताओं ने बड़े-बड़े वादे किए थे, जिन्हें चुनाव के तुरंत बाद वह भूल गए. हाल ही में पानी की एक पाइपलाइन बिछाई गई है, लेकिन यही एकमात्र बदलाव है जो दिखाई दे रहा है.”
भलस्वा के दृश्य स्वयं ही सब कुछ बयां कर रहे हैं – कचरे के ढेर के किनारे बने मकान, कचरे के ढेर पर खेलते बच्चे और भोजन की तलाश में आसमान में चक्कर लगाते हुए पक्षी.
यद्यपि साइट पर भारी मशीनरी काम करती देखी जा सकती है, लेकिन लोगों का दावा है कि यह सफाई के एक स्थायी प्रयास से बहुत दूर है.
अधिकारियों को उदासीनता पर उठाया सवाल
साठ वर्षीय पूनम देवी के लिए यह लैंडफिल स्थल अधिकारियों की उदासीनता की निरंतर याद दिलाता है.
पूनम देवी ने कहा, ‘‘हमने चुनावों के बाद कोई कठोर कदम उठाते नहीं देखा. वे इरादे तो बहुत बड़े दिखाते हैं, लेकिन एक इंच भी काम नहीं करते.”
एक दर्दनाक घटना को याद करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘दो साल पहले कूड़े के पहाड़ का एक हिस्सा ढह गया और मेरा पूरा घर उसमें दब गया.”
इसी तरह की चिंताओं को दोहराते हुए, स्थानीय निवासी रीता (45) ने कहा कि उनकी छह दिन की पोती उस समय फंस गई जब कूड़े के पहाड़ का एक हिस्सा ढह गया.
रीता ने कहा ‘‘हमने उसे खुद बचाया; कोई भी मदद के लिए आगे नहीं आया. राजनेता बड़े-बड़े वादे करते हैं, लेकिन ज़मीन पर कुछ भी नहीं बदलता. हम कब तक अपने घरों में बंद रहेंगे? हमें अपनी रोज़ी-रोटी कमाने के लिए बाहर निकलना होगा.”
लैंडफिल की खतरनाक ढलानों पर खेलते हैं बच्चे
भलस्वा गाँव के बच्चे भी एक गंभीर वास्तविकता का सामना करते हैं. क्षेत्र में कोई उचित खेल का मैदान नहीं होने के कारण, वे अक्सर लैंडफिल की खतरनाक ढलानों पर खेलते हैं.
नौ वर्षीय अरहान ने कहा ‘‘हम कूड़े के पहाड़ पर खेलते हैं क्योंकि यहाँ का पार्क भी कचरे से भरा हुआ है. हमें यहाँ फेंकी गई ईंटों और कांच से चोट तो लगती है.”
एक अन्य जोखिम पर प्रकाश डालते हुए 10 वर्षीय अब्दुल रहमान ने कहा, ‘‘पार्क कूड़े और बिजली के तारों से भरा हुआ है. मेरे कुछ दोस्त तारों की वजह से घायल हो गए. यहाँ हमारे लिए कुछ नहीं है.”
पर्यावरणविदों ने भी जताई है चिंता
पर्यावरणविदों ने भी स्थिति पर चिंता जताई है. पर्यावरण कार्यकर्ता भावरीन कंधारी ने कहा, ‘‘लैंडफिल के इतने करीब रहने के गंभीर परिणाम होते हैं. जहरीला धुआँ, दूषित पानी और अनियंत्रित डंपिंग न केवल निवासियों को बल्कि आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र को भी नुकसान पहुँचा रहे हैं.”
राष्ट्रीय राजधानी में विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं, लेकिन भलस्वा के निवासी किसी भी वास्तविक बदलाव को लेकर संशय में हैं.
रीता ने कहा, ‘‘एक राजनीतिक पार्टी चुनाव जीतेगी, सरकार बनाएगी और फिर घर बैठ जाएगी.”
भलस्वा के झुग्गी-झोपड़ी निवासी इलाके में बढ़ते संकटों को दूर करने के लिए तत्काल कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.
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