वैश्विक समुद्री बर्फ क्या होता है? इसका कम होना खतरनाक सिग्नल क्यों है? C3S ने अपनी रिपोर्ट में क्या बताया है?
धरती पर लगातार खतरे की घंटी बज रही है. धरती चीख-चीख कर इंसानों को कह रही कि वक्त रहते मुझे बचा लो. इसके सिग्नल एक के बाद एक करके हमारे सामने भी आ रहे हैं. एक और सिग्नल आया है. अब वैज्ञानिकों ने कहा है कि फरवरी के महीने में वैश्विक समुद्री बर्फ रिकॉर्ड निचले स्तर पर गिर गई है. यह बता रहा कि धरती किस खतरनाक हद तक गर्म हो गई है और आगे भी यह होती ही जा रही है.
यूरोपीय यूनियन की कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (C3S) ने गुरुवार, 6 मार्च को कहा कि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के आसपास मौजूद बर्फ का मिलाकर क्षेत्र फरवरी की शुरुआत में न्यूनतम दैनिक स्तर पर पहुंच गया. द गार्डियन की रिपोर्ट के अनुसार C3S की डिप्टी डायरेक्टर सामन्था बर्गेस ने कहा, “गर्म होती दुनिया के परिणामों में से एक समुद्री बर्फ का पिघलना है… दोनों ध्रुवों पर समुद्री बर्फ की रिकॉर्ड या लगभग रिकॉर्ड कमी ने वैश्विक समुद्री बर्फ आवरण को आजतक के न्यूनतम स्तर पर पहुंचा दिया है.”
फरवरी में वैश्विक समुद्री बर्फ अबतक के इतिहास में सबसे निचले स्तर पर आ गया. (ग्राफ- C3S)
चलिए आपको यहां आसान शब्दों में बताते हैं कि वैश्विक समुद्री बर्फ क्या होता है? इसका कम होना खतरनाक सिग्नल क्यों है? C3S ने अपनी रिपोर्ट में क्या बताया है?
वैश्विक समुद्री बर्फ क्या होता है?
समुद्री बर्फ का वही मतलब है जो इसके नाम को सुनकर हमारे दिमाग में आता है- समुद्र का वह हिस्सा जो जमकर बर्फ में बदल गया है. विश्व मौसम विज्ञान संगठन की वेबसाइट के अनुसार समुद्री जल के जमने पर उसकी सतह पर समुद्री बर्फ बनती है. समुद्री जल में नमक होता है और इस वजह से इसका फ्रीजिंग प्वाइंट (वह तापमान जिसपर जम जाए) मीठे पानी की तुलना में कम होता है (लगभग -1.8°C, या 28.8°F). समुद्री बर्फ हिमखंड यानी आइसबर्फ से अलग होती है. हिमखंड जमीन पर बनी बर्फ से उत्पन्न होते हैं. वहीं समुद्री बर्फ समुद्र में बनती है और पूरी तरह से समुद्र में पिघल जाती है.
अब धरती के दोनों पोल (ध्रुव) पर मौजूद सभी समुद्री बर्फ को मिलाकर वैश्विक समुद्री बर्फ कहते हैं.
वैश्विक समुद्री बर्फ का पिघलना या कम होना खतरनाक क्यों है?
समुद्री बर्फ पृथ्वी की जलवायु प्रणाली (क्लाइमेट सिस्टम) का एक महत्वपूर्ण घटक है. यह सतह की गर्मी, नमी, विकिरण और मीठे पानी के प्रवाह को प्रभावित करती है. “थर्मल कंबल” के रूप में काम करते हुए, यह समुद्र और वायुमंडल के बीच गर्मी और नमी के आदान-प्रदान को सीमित करता है. इसकी परावर्तक सतह (अल्बेडो) गर्मी के अवशोषण को कम करती है, जो गर्मी को नियंत्रित करती है.
इसलिए अगर समुद्री बर्फ की मात्रा में कमी होगी तो ध्रुवों के पास ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव बढ़ जाता है. समुद्री बर्फ का कम होना या बढ़ना जलवायु की सेहत का इंडिकेटर है. अगर समुद्री बर्फ तेजी से पिघल रही है, तो यह बताता है कि धरती का तापमान बढ़ रहा है.
C3S ने अपनी रिपोर्ट में और क्या बताया है?
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