जॉन्डिस हर उम्र के लोगों में हो सकता है लेकिन बात अगर शिशु की आती है तो इसे एक आम बात माना जाता है. कहा जाता है की यह ज्यादातर मामलों में खुद ही ठीक हो जाता है, लेकिन इसपर डॉक्टर क्या कहते हैं जानिए…
अक्सर आपने देखा होगा कि नवजात शिशुओं में पीलिया यानि जॉन्डिस की समस्या देखने को मिलती है. कई बार यह जन्म के कुछ महीने बाद या कई बार यह जन्म से ही होती है. माना जाता है कि लिवर के पूरी तरह से विकसित न होने पर इस तरह की समस्या आती है. आखिर शिशुओं में ये समस्या क्यों देखने को मिलती है? कई बच्चों में जन्म के बाद से ही इसके लक्षण नजर आने लगते हैं. ऐसे में बच्चों की स्किन पीली पड़ जाती है. वैसे तो जॉन्डिस हर उम्र के लोगों में हो सकता है लेकिन बात अगर शिशु की आती है तो इसे एक आम बात माना जाता है. कहा जाता है की यह ज्यादातर मामलों में खुद ही ठीक हो जाता है.
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स्तनपान से भी हो सकता है पीलिया:
इसको लेकर हमने एमडी मेडिसिन में कंसल्टिंग फिजिशियन डॉ. उर्वंश मेहता से बात की. उन्होंने कहा, छोटे बच्चों में पीलिया अक्सर स्तनपान से भी विकसित होता है. ये जन्म के पहले ही दिन ज्यादातर देखने को मिलता है. ऐसे में बच्चों को इलाज की जरूरत होती है जिसमें हम फोटोथेरेपी देते हैं. बचाव की बात करें तो गर्भावस्था के दौरान महिला को अपनी सेहत का खास ख्याल रखना चाहिए.
बिल्कुल भी न करें नजरअंदाज:
डॉ. उर्वंश ने आगे बताया कि वैसे तो पीलिया धीरे-धीरे अपने आप ठीक हो जाता है मगर मैं सलाह दूंगा कि इसे बिल्कुल भी नजरअंदाज न करें. शीघ्र ही अपने बच्चों का इलाज कराए, क्योंकि समय के साथ इसका इलाज अच्छे से हो सकता है.
डॉ मेहता के मुताबिक समस्या को नजरअंदाज कर आगे बढ़ना समाधान नहीं. कई बार बच्चों की इस समस्या को अनदेखा कर दिया जाता है, जिसके चलते कई अस्पतालों में मेडिकल इमरजेंसी के साथ बच्चों को लाया जाता है. ऐसे में बच्चों को बचाना मुश्किल हो जाता है इसलिए अपने बच्चे के पीलिया को कभी नजरअंदाज न करें.
बिलीरुबिन जमने के कारण होता है पीलिया:
डॉ बताते हैं कि पीलिया की वजह बिलीरुबिन होता है. नवजात शिशु में पीलिया बिलीरुबिन के जमने के कारण होता है. कुछ नवजात शिशुओं में जन्म के समय रेड सेल्स की संख्या बहुत ज्यादा होती है जो बार-बार बदलती रहती हैं, जिसके चलते बच्चे का लिवर अच्छे से विकसित नहीं हो पाता जिससे पीलिया की समस्या होती है. माना जाता है कि बच्चों के लिवर को विकसित होने में कम से कम दो हफ्ते का समय लगता है.
जब बच्चा दो हफ्ते का होता है तो उसके बाद लिवर का थोड़ा-थोड़ा विकास होना शुरू हो जाता है. वैसे तो इस समस्या की ज्यादातर इलाज की जरूरत नहीं होती, यह 10 से 15 दिनों के अंदर खुद-ब-खुद ठीक हो जाता है लेकिन कभी-कभी कई बच्चों में यह 15 दिन से ज्यादा समय तक भी रह सकता है, जिसके बाद उन्हें इलाज की जरूरत पड़ती है.
20 में से एक बच्चे को होती है इलाज की जरूरत:
रिपोर्ट्स की माने तो नवजात शिशुओं में केवल 20 में से लगभग एक बच्चे को पीलिया के उपचार की जरूरत होती है. जन्म के समय बढ़े बिलीरुबिन लेवल दिमाग को हानि हो सकता है जिसे केर्निकटेरस के नाम से जाना जाता है.
अगर इसके लक्षणों की बात करें तो जन्म के समय बच्चे का यूरिन गहरा पीले रंग का नजर आता है वहीं अगर बच्चे के मल की बात करें तो वह भी हल्के पीले रंग का होता है. यह लक्षण आमतौर पर जन्म के 2 से 3 दिनों के भीतर दिखाई देते हैं.
एक स्टडी में यह बात सामने आई है कि यह ज्यादातर उन बच्चों में पाया जाता है जिनका समय से पहले जन्म होता है या उन बच्चों में जिनका अपनी मां के साथ ब्लड मेल नहीं खाता.
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