Why Naga Sadhus Carry Weapons : नागा साधुओं के पास मौजूद अस्त्र, जैसे- त्रिशूल, तलवार और भाला का गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है. विशेष रूप से त्रिशूल भगवान शिव का प्रिय अस्त्र माना जाता है, जो शक्ति, सृष्टि और विनाश का प्रतीक है.
Why Naga Sadhus Carry Weapons : महाकुंभ का महापर्व अपने समापन की ओर बढ़ रहा है. कुछ ही दिनों में संगम तट पर सजा यह भव्य मेला समाप्त हो जाएगा, लेकिन श्रद्धालुओं की आस्था और भक्ति की लौ अब भी जल रही है. इसी भावना को ध्यान में रखते हुए हम महाकुंभ 2025 से जुड़ी हर जरूरी जानकारी आप तक पहुंचा रहे हैं. आपने अक्सर नागा (Spiritual significance of Naga Sadhus) साधुओं को त्रिशूल, तलवार और भाला लिए देखा होगा. यह देखकर आपके मन में भी यह सवाल उठता (Spiritual significance of Naga Sadhus) होगा कि संन्यास का रास्ता अपनाने के बावजूद वे हथियारों को (Significance of Naga Sadhu Weapons) अपने पास क्यों रखते हैं, जबकि आमतौर पर साधुओं का इनसे कोई संबंध नहीं माना जाता. तो आइए हम बताते हैं कि नागा साधु ऐसा क्यों करते हैं.
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ये है सबसे बड़ी वजह
दरअसल, नागा साधुओं के हथियार रखने के पीछे गहरी धार्मिक और ऐतिहासिक मान्यता है. वे भगवान शिव के भक्त होते हैं, और धर्म की रक्षा के उद्देश्य से आदि शंकराचार्य ने नागा साधुओं और अखाड़ों की स्थापना की थी. इसलिए, नागा साधु अपने अस्त्र-शस्त्र को धर्म की रक्षा और आत्मरक्षा का प्रतीक मानते हैं. उनका उद्देश्य किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं, बल्कि धर्म और सत्य की रक्षा करना होता है.
क्या है अस्त्र-शस्त्र का महत्व – Significance of Weapons
नागा साधुओं के पास मौजूद अस्त्र, जैसे- त्रिशूल, तलवार और भाला का गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है. विशेष रूप से त्रिशूल भगवान शिव का प्रिय अस्त्र माना जाता है, जो शक्ति, सृष्टि और विनाश का प्रतीक है. यह भगवान शिव की दिव्य शक्ति और उनके आध्यात्मिक प्रभाव के बारे में बताता है. तलवार और भाला वीरता और साहस का प्रतीक माने जाते हैं. ये अस्त्र उन नागा साधुओं के शौर्य और बलिदान का प्रतीक हैं, जो धर्म और समाज की रक्षा के लिए आगे रहते हैं. नागा साधु इन्हें केवल आत्मरक्षा के उद्देश्य से धारण करते हैं, ताकि जरूरत पड़ने पर वे अपनी और धर्म की रक्षा कर सकें.
नागा साधु क्यों नहीं पहनते कपड़े? Why Naga Sadhus Don’t wear Clothes
नागा साधु बनने की प्रक्रिया बहुत कठिन होती है, जिसमें व्यक्ति को कई वर्षों तक कठोर परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है. नागा साधु बनने से पहले, साधकों को 17 पिंडदान करने होते हैं, आठ पिछले जन्मों के, आठ इस जन्म के और एक खुद का पिंडदान. आमतौर पर पिंडदान मृत्यु के बाद किया जाता है, लेकिन नागा साधु इसे जीवित रहते ही पूरा करते हैं.
वहीं, वस्त्र धारण न करने के पीछे उनकी गहरी आध्यात्मिक मान्यता है. उनका विश्वास है कि हर प्राणी जिस स्वरूप में जन्म लेता है, उसे उसी स्वरूप में ही इस संसार से विदा होना चाहिए. वे सांसारिक मोह-माया से मुक्त रहने को ही वास्तविक साधना मानते हैं. ऐसी मान्यता है कि नागा साधु सनातन धर्म के रक्षक हैं और आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं.
नागा साधु क्यों करते हैं 17 श्रृंगार – Naga Sadhu 17 Shringar
नई दुल्हन जहां सौभाग्य और समृद्धि के लिए सोलह श्रृंगार करती है, वहीं नागा साधु अपने नश्वर शरीर को शिव की शक्ति से जोड़ने के लिए सत्रह श्रृंगार करते हैं. साधुओं का मानना है कि आम व्यक्ति मृत्यु के बाद शव में बदल जाता है, जबकि वे खुद को जीते-जी शव स्वरूप मानते हैं. इसलिए, सत्रह श्रृंगार के माध्यम से वे अपने शरीर रूपी शव को शिव की शक्ति से जोड़ते हैं.
17 श्रृंगार में क्या होता है शामिल – Importance of Naga Sadhu 17 Shringar
नागा साधुओं के सत्रह श्रृंगार में भभूत का लेप, चंदन का तिलक, पंचमुखी से लेकर एकमुखी रुद्राक्ष की माला, काजल, फूलों की माला, पैरों में धातु के कड़े, हाथ में चिमटा और डमरू, विभिन्न अस्त्र-शस्त्र, कमंडल और सिर पर जटाओं का सौंदर्य शामिल होता है. इसके अलावा, हर उंगली में ग्रहों और धातुओं से जुड़े नग-नगीने, पंचकेश, कड़ा, रोली और अलग-अलग तरह के लेप एवं कुण्डल धारण कर वे स्वयं को साक्षात पृथ्वी पर शिव के रूप में स्थापित करते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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