शांति सैनिक संयुक्त राष्ट्र का एक ऐसा अंग है, जिसे हिंसाग्रस्त देशों में शांति बहाल करने के लिए तैनात किया जाता है. इसमें संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के सैनिक, पुलिस और आम नागरिक शामिल होते हैं. यह उन इलाकों में तैनात किए जाते हैं, जहां कोई अन्य देश या संस्था शांति स्थापित नहीं कर सकती है
बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा (Bangladesh Violence) की घटनाओं का भारत में विरोध बढ़ता जा रहा है. बांग्लादेश में इस्कॉन से जुड़े रहे चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के बाद माहौल और बिगड़ा है. कट्टरपंथियों के हिंदू समुदाय पर हमले बढ़े हैं. ऐसे में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के बांग्लादेश में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन (United Nations Peace Mission) तैनात करने की गुजारिश की है. वहीं, कांग्रेस के तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने ममता बनर्जी को जवाब देते हुए कहा कि शायद उन्हें UN शांति सेना के बारे में पता नहीं है.
आइए जानते हैं आखिर क्या है संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन? किसी देश में शांति सेना कब भेजी जा सकती है? ये कैसे काम करती है:-
पहले जानिए ममता बनर्जी ने क्या कहा?
ममता बनर्जी ने सोमवार को पश्चिम बंगाल के विधानसभा में बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा, “अगर जरूरत हो तो बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से बात करने के बाद एक अंतरराष्ट्रीय शांति सेना बांग्लादेश भेजी जाए, जिससे वहां सामान्य स्थिति बहाल करने में मदद मिल सके.” बनर्जी ने ये भी मांग की थी कि विदेश मंत्री को संसद में मौजूदा स्थिति पर देश के रुख को साफ करना चाहिए.
शशि थरूर ने क्या दिया जवाब?
शशि थरूर ने कहा, “मुझे पता नहीं है कि वह (ममता बनर्जी) संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों की भूमिका को पूरी तरह समझती हैं या नहीं. मैंने कई साल तक संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों के रूप में काम किया है. मैं आपको बता सकता हूं कि संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों को किसी देश के अंदर बहुत कम ही भेजा जाता है. जब तक कोई देश इसकी अपील नहीं करता, तब तक ऐसा नहीं किया जाता. कोई देश जब पूरी तरह से ढह जाता है, तभी शांति सैनिकों को भेजा जाता है. इसके लिए भी उस देश की सरकार को आग्रह करना पड़ता है. मैं पूरी तरह से सहमत हूं कि हमें इस बात पर नज़र रखनी होगी कि क्या हो रहा है”.
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क्या है संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन?
संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन एक ऐसी पहल है, जिसका मकसद विश्व में शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना है. यह मिशन संयुक्त राष्ट्र के शांति संचालन और संचालन सहायता विभागों के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास है. ये मेजबान देशों को युद्ध से शांति की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित और मदद करता है.
कब शुरू हुआ था पहला मिशन?
संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन का पहला मिशन मई 1948 में स्थापित किया गया था. इसे संयुक्त राष्ट्र ट्रूस पर्यवेक्षण संगठन (UNTSO) कहा जाता है. इसका मकसद इजरायल और उसके अरब पड़ोसियों के बीच युद्धविराम समझौते की निगरानी करना था.
शांति सैनिक किसे कहते हैं?
शांति सैनिक संयुक्त राष्ट्र का एक ऐसा अंग है, जिसे हिंसाग्रस्त देशों में शांति बहाल करने के लिए तैनात किया जाता है. इसमें संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के सैनिक, पुलिस और आम नागरिक शामिल होते हैं. यह उन इलाकों में तैनात किए जाते हैं, जहां कोई अन्य देश या संस्था शांति स्थापित नहीं कर सकती है. हालांकि, इसके लिए उन्हें जटिल अंतरराष्ट्रीय राजनीति, संसाधनों और अपने अभियान के प्रबंधन की चुनौतियों से भी जूझना पड़ता है.
क्या भारत शांति मिशन से जुड़ा है?
हां. भारत संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन से 24 अक्टूबर 1945 से जुड़ा हुआ है. यह वही दिन है जब भारत ने संयुक्त राष्ट्र में अपनी सदस्यता हासिल की थी. भारत को 2025-2026 के लिए संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना आयोग (PBC) के सदस्य के रूप में फिर से चुना गया है. आयोग में भारत का वर्तमान कार्यकाल 31 दिसंबर को समाप्त हो रहा था. PBC में 31 सदस्य देश हैं, जो संयुक्त राष्ट्र महासभा, सुरक्षा परिषद और आर्थिक व सामाजिक परिषद से चुने जाते हैं. संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में शीर्ष वित्तीय योगदान देने वाले देश और शीर्ष सैन्य योगदान देने वाले देश भी इसके सदस्य हैं.
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संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में भारत का कितना योगदान?
भारत ने संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. भारत ने अब तक ऐसे शांति अभियानों में लगभग 2,75,000 सैनिकों का योगदान दिया है. वर्तमान में भारत के लगभग 6,000 सैन्य और पुलिसकर्मी अबेई, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, साइप्रस, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, लेबनान, पश्चिम एशिया, सोमालिया, दक्षिण सूडान और पश्चिमी सहारा में तैनात हैं.
शांति अभियानों में लगभग 180 भारतीय शांति सैनिकों ने कर्तव्य निर्वहन के दौरान सर्वोच्च बलिदान दिया है, जो योगदानकर्ता के रूप में किसी अन्य देश के मुकाबले अब तक की सबसे ज्यादा संख्या है.
कब से काम कर रही है शांति सेना?
UN की शांति सेना 1991 से लगातार काम कर रही है. उन्हें युद्ध से देशों में पैदा हो रहे व्यापक मुद्दों से निपटने की जरूरत होती है. इन मुद्दों में पुलिस, न्याय और सशस्त्र समूहों का निरस्त्रीकरण शामिल है, ताकि संघर्ष के बाद वैध और स्थायी सरकार बनायी जा सके.
कौन लेता है किसी देश में शांति सेना भेजने का फैसला?
किसी देश में शांति सैनिकों को भेजने का फैसला संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद करती है. फिर संयुक्त राष्ट्र सचिवालय पर इस अभियान के लिए विस्तारपूर्वक रणनीति बनाई जाती है. संयुक्त राष्ट्र सचिवालय पर ही इसे लागू करने की जिम्मेदारी होती है.
शांति सेना में कौन होते हैं शामिल?
शांति सेना में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के लोग शामिल हो सकते हैं. सदस्य देशों से सैन्य और पुलिस कर्मियों के रूप में योगदान देने की अपील की जाती है. इसके लिए उन्हें यूनाइटेड नेशंस फंड से सैलरी दी जाती है. यह कई विकासशील देशों की सशस्त्र सेनाओं के लिए इनकम का एक सोर्स होता है. संयुक्त राष्ट्र के स्थायी सदस्य देश अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और रूस अपनी अलग सशस्त्र सेनाएं भी शांति सेना में भेज सकते हैं.
अभी सबसे ज्यादा शांति सैनिक कहां तैनात?
UN की रिपोर्ट के मुताबिक, संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन का 94% हिस्सा अभी अफ्री और मिडिल ईस्ट में तैनात है. 1990 के दशक की शुरुआत से अधिकांश शांति सैनिकों को उप-सहारा अफ्रीका, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में तैनात किया गया है. 2016 में संयुक्त राष्ट्र ने इन दो क्षेत्रों में 94% शांतिरक्षक कर्मियों को तैनात किया था.
शांति सेना के सामने कैसी चुनौतियां?
शांति सेना के सामने कई चुनौतियां हैं, जो उनके मिशन और उद्देश्यों को प्रभावित कर सकती हैं. इनमें से कुछ प्रमुख चुनौतियां हैं:-
– राजनीतिक अस्थिरता: शांति सेना अक्सर राजनीतिक अस्थिरता वाले क्षेत्रों में काम करती है, जहां संघर्ष और हिंसा की संभावना अधिक होती है.
– संसाधनों की कमी: शांति सेना को अक्सर संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ता है, जैसे धन, उपकरण और प्रशिक्षित कर्मियों की कमी.
– सांस्कृतिक और भाषाई बाधाएं: शांति सेना अक्सर विभिन्न सांस्कृतिक और भाषाई पृष्ठभूमि वाले क्षेत्रों में काम करती है, जो संचार और सहयोग में बाधाएं पैदा कर सकती हैं.
– सुरक्षा चुनौतियां: शांति सेना के सदस्य अक्सर सुरक्षा चुनौतियों का सामना करते हैं, जैसे हिंसा, अपहरण और हमले.
– वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव: शांति सेना को वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव का सामना भी करना होता है. जैसे अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा, शांति सेना के मिशन और उद्देश्यों को प्रभावित कर सकता है.
–संयुक्त राष्ट्र सचिवालय के पास अधिकारों की कमी: संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग 2011 के बाद से कम हो गया है. भारत और चीन जैसे कुछ प्रभावशाली देश संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा अभियानों के विस्तारित रूप को लेकर उदासीन हैं. पश्चिमी देशों से भी पूरा सहयोग नहीं मिल रहा है.
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