Unknown Facts About Languages: भाषाओं में भी ख़ासतौर पर उन भाषाओं के जल्दी विलुप्त होने का ख़तरा है, जिनकी कोई लिपि नहीं है. इन भाषाओं के साथ चिंता की बात ये है कि इन्हें बोलने वाले लोग ही गिने चुने रह गए हैं.
Unknown Facts About Languages: भारत में सैकड़ों मातृभाषाएं हमारी हज़ारों साल से चली आ रही विविध संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती हैं, एक समृद्ध इतिहास का परिचय कराती हैं, एक जीवंत समाज को बयान करती हैं, लेकिन अफ़सोस आज स्थिति ये है कि हमारी कई भाषाएं धीरे-धीरे मरती जा रही हैं. लुप्त होती जा रही हैं. उन्हें बोलने वाले बस गिने-चुने ही रह गए हैं.
आप हैरान होंगे ये जानकर कि भारत में 19,500 मातृभाषाएं हैं. इसीलिए कहा जाता है कि यहां कोस-कोस पर बदले पानी, तीन कोस पर वाणी. यानी यहां हर कोस पर पानी बदल जाता है और तीन कोस पर भाषा, बोली बदल जाती है. ये बताता है कि कितनी विविधता हमारे देश में है.
क्या आपको पता है
हर साल क़रीब चार भाषाएं लुप्त हो रहीं
ये तो बस कुछ उदाहरण थे. भारत में और भी कई भाषाएं हैं, जो इनसे भी ज़्यादा संकट में हैं. अगर यही स्थिति रही तो आने वाले समय में कोई उनका नामलेवा भी नहीं बचेगा. यही सबसे बड़ी चिंता है कि भारत में भाषाओं की विविधता का ये संसार धीरे-धीरे सिमटता जा रहा है. कई भाषाएं ख़ासतौर पर जनजातीय इलाकों की भाषाओं को बोलने वाले तो बस इक्का-दुक्का लोग ही रह गए हैं. भारत में भाषाओं के लुप्त होने का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि हर साल क़रीब चार भाषाएं लुप्त हो रहीं हैं.
जिनकी लिपि नहीं, उन्हें ज्यादा खतरा
भाषाओं में भी ख़ासतौर पर उन भाषाओं के जल्दी विलुप्त होने का ख़तरा है, जिनकी कोई लिपि नहीं है. इन भाषाओं के साथ चिंता की बात ये है कि इन्हें बोलने वाले लोग ही गिने चुने रह गए हैं. जैसे कई आदिवासी समाजों की भाषाओं-बोलियों की तो स्थिति ये है कि अगर उस आदिवासी समुदाय के कुछ वरिष्ठ लोग गुज़र गए तो वो भाषा भी उनके साथ ख़त्म हो जाएगी और ऐसा हो भी रहा है. जबकि इन भाषाओं में उन स्थानीय आदिवासी लोगों की समृद्ध संस्कृति और परंपराओं का रिकॉर्ड होता है. भाषा ख़त्म होने के साथ वो सब भी ख़त्म हो जाता है. उस जानकारी को हासिल करने के स्रोत बहुत ही कम रह जाते हैं. हम एक बड़े समृद्ध संसार को समेटने से वंचित रह जाते हैं.
भाषाएं भारत के इतिहास को देखने का एक आईना भी हैं. भारत के विराट भूगोल में बसने वाले हमारे समाजों के अंदर झांकने की कुंजी हैं. भाषाएं भारत की ख़ूबसूरत परंपराओं की वाहक हैं. जहां पांच हज़ार साल पुरानी तमिल भाषा भारत का गौरव है, वहीं सबसे अधिक बोली जाने वाली हिंदी देश के तमाम भाषा भाषी लोगों और इलाकों के बीच एक पुल का काम करती है.
इनके अलावा भी बांग्ला, मराठी, तेलुगू, मलयालम, कन्नड़, ओड़िया, पंजाबी, गुजराती, अवधी, मैथिली, डोगरी ऐसी तमाम भाषाएं, किसके नाम लें, किसके न लें… ये सभी भाषाएं हमें समृद्ध बनाती हैं, इनका साहित्य हमें रोशनी दिखाता है और ये भाषाएं आपस में किसी माला की तरह गुंथी हुई भी होती हैं. एक भाषा के शब्द कब किसी दूसरी भाषा के हो जाते हैं, पता ही नहीं लगता. समय के साथ भाषाओं का ये गुम्फन उन्हें और संपन्न और चमकीला बनाता है, लेकिन इन भाषाओं के बीच झगड़े कराने वाले छोटे दिल इस बड़ी बात को नहीं समझ पाते.
अक्सर हमारे राजनेताओं की संकीर्ण सोच इन भाषाओं की विराटता और विविधता के आगे बौनी साबित होती रही है. भाषाओं के नाम पर झगड़ा करने वाले ये समझ ही नहीं पाते कि हर भाषा की अपनी अहमियत, अपनी विरासत है, एक विराट इतिहास है, जो भारत को भारत बनाता है. बस चिंता है तो विलुप्ति की ओर बढ़ी रही भाषाओं के भविष्य की. पूर्वोत्तर राज्यों, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के अलावा देश के कई अन्य जनजातीयों की भाषाएं सबसे ज़्यादा ख़तरे में हैं.
क्यों भाषाएं समाप्त हो रहीं
इसके कारण भी कई हैं. जैसे-जैसे कथित आधुनिकीकरण हो रहा है, लोग शहरी इलाकों में बढ़ रहे हैं. युवा पीढ़ियां उन भाषाओं को अपना रही हैं, जो पहले से काफ़ी प्रभावी हैं और नए इलाकों के समाज से उन्हें जोड़ती हैं. अपनी और अपने पुरखों की मातृभाषाओं से दूर होती जा रही हैं. इसके अलावा जिन भाषाओं में नौकरियों की संभावनाएं ज़्यादा हैं, वो प्रभावी साबित हो रही हैं और बाकी भाषाएं उसकी क़ीमत चुका रही हैं. जैसे हिंदी और अंग्रेज़ी के प्रभुत्व के चलते कई भाषाएं कमज़ोर पड़ जा रही हैं. यही नहीं नए दौर के साथ लोग भी अपने बच्चों को अपनी विरासत से जुड़ी दुधबोली भाषाएं नहीं सिखा रहे हैं.
मातृभाषाओं को संजोना, आगे की पीढ़ियों तक उनका प्रसार करना वक़्त की ज़रूरत है. इसकी अहमियत समझते हुए ही साल 2000 से हर साल 21 फरवरी को दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के तौर पर मनाया जाता है. 1999 में यूनेस्को ने दुनिया में भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को बढ़ाने के लिए 21 फरवरी को एक ख़ास दिन के तौर पर मनाने का फ़ैसला किया. दुनिया की बात करें तो भाषाओं की डायरेक्टरी Ethnologue के मुताबिक, दुनिया में 7,111 जीवित भाषाएं हैं, जो आज भी इस्तेमाल हो रही हैं, लोगों द्वारा बोली जाती हैं. चीनी, स्पेनिश, अंग्रेज़ी, हिंदी और अरबी सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषाएं हैं. दुनिया की 40% से ज़्यादा आबादी इन पांच भाषाओं को बोलती है.
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