स्त्रीधन दहेज से इस तरह से अलग है कि यह महिला को स्वेच्छा से उसकी शादी से पहले या बाद में दिया गया गिफ्ट है. इसमें कोई जबरदस्ती नहीं की गई है. ये गिफ्ट्स स्नेह के प्रतीक के हैं. इसलिए स्त्री का अपने स्त्रीधन पर पूरा अधिकार है.
कई महिलाएं ससुराल पक्ष की ओर से प्रताड़ना का शिकार होने या किन्हीं वजहों से शादी नाकाम रहने के बाद घर से अलग हो जाती हैं. कई मामलों में ये तलाक में भी बदल जाता है. ऐसी स्थिति में शादी के समय महिला को दिया गया ‘स्त्रीधन’ आमतौर पर ससुराल पक्ष की ओर से ही रख लिया जाता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की स्पष्ट व्याख्या कर इस पर महिला का ही अधिकार बताया है.
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसले में कहा है कि ‘स्त्रीधन’ पर सिर्फ और सिर्फ महिला का ही अधिकार है. ‘स्त्रीधन’ पर किसी और का हक नहीं है. चाहें वो कपड़े हों या गहने सब कुछ महिला का है. तलाक के बाद भी इस पर महिला का ही हक है. लड़की के पिता का भी इस पर कोई अधिकार नहीं है. ‘स्त्रीधन’ लड़की के ससुर से वापस नहीं मांगा जा सकता.
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शीर्ष अदालत ने क्यों दिया ये फैसला?
पी. वीरभद्र राव नाम के शख्स ने अपनी बेटी की शादी दिसंबर 1999 में की थी. शादी के बाद कपल अमेरिका चला गया. 16 साल बाद बेटी ने तलाक की अर्जी दी. फरवरी 2016 में अमेरिका के मिजूरी राज्य की एक अदालत ने आपसी सहमति से तलाक दे दिया. तलाक के समय दोनों पक्षों के बीच एक समझौते के तहत सारी प्रॉपर्टी का बंटवारा कर दिया गया था. इसके बाद, महिला ने मई 2018 में दोबारा शादी कर ली. तीन साल बाद पी. वीरभद्र राव ने अपनी बेटी के ससुराल वालों के खिलाफ हैदराबाद में ‘स्त्रीधन’ वापस मांगने के लिए एक FIR दर्ज कराई. ससुराल पक्ष ने FIR रद्द करवाने के लिए तेलंगाना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली.
इसके बाद ससुराल पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की. जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने ससुराल पक्ष के खिलाफ मामला रद्द कर दिया. बेंच ने कहा कि पिता को अपनी बेटी के ‘स्त्रीधन’ को वापस मांगने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वह पूरी तरह से बेटी की संपत्ति है.
अदालत ने कहा, “पिता ने दो दशक बाद अर्जी दी है. स्त्रीधन दिए जाने का कोई सबूत नहीं है. यहां तक कि तलाक के समय भी स्त्रीधन का जिक्र नहीं था.” सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “स्त्रीधन पर किसी और का हक नहीं है. कपड़े, गहने और सबकुछ महिला के हैं. तलाक के बाद भी इनपर महिला का ही हक है. लड़की के पिता का भी इसमें अधिकार नहीं है.”
आइए जानते हैं क्या है स्त्रीधन? इसमें क्या-क्या शामिल होता है? इसे कौन कंट्रोल कर सकता है? स्त्रीधन को लेकर क्या कहता है हिंदू मैरिज एक्ट:-
क्या होता है स्त्रीधन?
सुप्रीम कोर्ट की वकील प्रज्ञा पी सिंह के मुताबिक, स्त्रीधन शब्द संस्कृत से आया है. स्त्री का मतलब नारी या महिला और धन का मतलब प्रॉपर्टी या संपत्ति. महिला को शादी से पहले, शादी के दौरान या शादी के बाद मिली हुईं चीजें स्त्रीधन में आती हैं. इसमें माता-पिता, रिश्तेदारों और दोस्तों से मिले तोहफे, सोने-चांदी, हीरे के जेवर, कैश, कोई प्रॉपर्टी या फ्लैट, घर, कार, कीमती स्टोन, बर्तन, कपड़े, जरूरत का सामान शामिल होता है. सास-ससुर द्वारा पहनाए गए गहने और गिफ्ट्स भी स्त्रीधन हैं. महिलाओं को बच्चे के जन्म के समय और पति की मौत के दौरान जो भी चीजें तोहफे में मिलती हैं, वह सभी स्त्रीधन है. महिला का स्त्रीधन उसकी पूर्ण संपत्ति है. उसे अपनी मर्जी से खर्च करने का पूरा अधिकार है.
स्त्रीधन दहेज से किस तरह अलग है?
हिंदू मैरिज एक्ट के मुताबिक, स्त्रीधन दहेज से इस तरह से अलग है कि यह महिला को स्वेच्छा से उसकी शादी से पहले या बाद में दिया गया गिफ्ट है. इसमें कोई जबरदस्ती नहीं की गई है. ये गिफ्ट्स स्नेह के प्रतीक के हैं. इसलिए स्त्री का अपने स्त्रीधन पर पूरा अधिकार है.
क्या स्त्रीधन पर पति का होता है कंट्रोल?
वकील प्रज्ञा पी सिंह के मुताबिक, पत्नी के स्त्रीधन पर पति का कंट्रोल नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट ने भी एक फैसले में कहा है कि पति मुसीबत के समय स्त्रीधन का इस्तेमाल तो कर सकता है, लेकिन बाद में उसे लौटाना उसका नैतिक दायित्व है. कोर्ट ने यह फैसला एक व्यक्ति को उसकी पत्नी के खोए हुए गोल्ड के बदले में 25 लाख रुपये देने का निर्देश देते हुए सुनाया था.
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स्त्रीधन को लेकर क्या कहता है हिंदू मैरिज एक्ट?
हिंदू महिला का स्त्रीधन का अधिकार हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14 और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 27 के तहत सुरक्षित है. इसमें उसे अपनी शादी में मिले तोहफे और संपत्ति को हासिल करने का पूरा अधिकार है. अगर महिला का स्त्रीधन पति या ससुराल वालों ने अपने पास रखा हुआ है, तो उन्हें ट्रस्टी माना जाएगा और जब भी महिला उनकी मांग करेगी, तो वे महिला को उसका स्त्रीधन लौटाने के लिए बाध्य हैं.
स्त्रीधन पर महिला के क्या अधिकार हैं?
-किसी भी महिला का स्त्रीधन उसकी विशिष्ट संपत्ति होती है. इसपर हक जताने या इसे कंट्रोल करने का किसी दूसरे के पास ये अधिकार नहीं है.
-महिला को अपने स्त्रीधन को अपने पास या लॉकर में रखने का अधिकार है. वो इसे अपने कंट्रोल में रख सकती हैं. अपने हिसाब से और अपनी मर्जी से इनका इस्तेमाल कर सकती है. इस अधिकार को कोई उससे छीन नहीं सकता.
-अगर किन्हीं कारणों से महिला अपना ससुराल छोड़कर जाती है, तो वह अपना स्त्रीधन अपने साथ लेकर जा सकती है. ऐसा करने से उसे कोई नहीं रोक सकता.
-अगर पति या ससुरालवाले महिला को स्त्रीधन ले जाने से रोकता है, तो महिला अपने स्त्रीधन के लिए पुलिस में शिकायत दर्ज कर सकती है. पुलिस को इसपर कार्रवाई करनी होगी.
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महिला अपने स्त्रीधन को कैसे सेफ रख सकती है?
-महिलाओं को अपने स्त्रीधन की एक लिस्ट बनानी चाहिए. इसमें अलग-अलग कैटेगरी रखनी चाहिए. जैसे जेवर, संपत्ति, कीमती सामान, सेविंग और इंवेस्टमेंट. लिस्ट में स्त्रीधन की संख्या लिखनी चाहिए.
-महिला को अपना स्त्रीधन ऐसी जगह रखना चाहिए, जहां सिर्फ उसका कंट्रोल हो. जैसे अपना लॉकर, बैंक का लॉकर.
-महिला को अपना स्त्रीधन ऐसे किसी के पास नहीं रखना चाहिए, जिसपर उसे यकीन न हो.
-अगर महिला को लगता है कि उसका स्त्रीधन उसके ससुराल में सेफ नहीं है, तो वो उसे अपने माता-पिता या ऐसे किसी को रखने के लिए दे सकती है, जिसपर उसे पूरा यकीन हो. लेकिन वक्त आने पर अगर महिला ने अपना स्त्रीधन मांगा तो माता-पिता या दूसरे रिश्तेदार को ये वापस करना ही पड़ेगा.
स्त्रीधन का कब इस्तेमाल कर सकती है महिला?
प्रज्ञा बी पारिजात के मुताबिक, एक महिला अपने स्त्रीधन को अपने जीवनकाल के दौरान या उसके बाद बेचने या किसी को देने का पूरा अधिकार रखती है. पति या ससुराल वाले उसकी इच्छा के खिलाफ स्त्रीधन को उससे छीन नहीं सकते. घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 12 महिलाओं को उन मामलों में स्त्रीधन का अधिकार प्रदान करती है.
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