संभल के जिला मजिस्ट्रेट राजेंद्र पेंसिया ने कहा कि इस स्थल पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से सर्वेक्षण कराने की संभावना पर विचार किया जा रहा है, और यदि आवश्यक हुआ तो एएसआई से अनुरोध किया जा सकता है.
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के संभल में एक के बाद एक खुलासे हो रहे हैं. शाही जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हुई हिंसा के बाद प्रशासन की तरफ से एक के बाद एक खुलासे हो रहे हैं. प्रशासन ने हाल ही में एक प्राचीन शिव मंदिर की खोज की, जो कथित तौर पर 1978 से बंद था. इस बीच चंदौसी में शनिवार को राजस्व विभाग ने एक जमीन की खुदाई की तो उसके नीचे एक विशालकाय बावड़ी मिली है.
संभल के जिला मजिस्ट्रेट राजेंद्र पेंसिया ने कहा कि इस स्थल पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) से सर्वेक्षण कराने की संभावना पर विचार किया जा रहा है, और यदि आवश्यक हुआ तो एएसआई से अनुरोध किया जा सकता है. मीडिया से बात करते हुए पेंसिया ने कहा, “यह स्थल पहले तालाब के रूप में पंजीकृत था. बावड़ी की ऊपरी मंजिल ईंटों से बनी है, जबकि दूसरी और तीसरी मंजिल संगमरमर की है। उन्होंने कहा कि संरचना में चार कमरे और एक बावड़ी भी है. ”
सवा सौ से डेढ़ सौ वर्ष पुरानी है बावड़ी: जिलाधिकारी
जिलाधिकारी राजेंद्र पेसियां ने बताया कि खतौनी के अंदर पॉइंट 040 अर्थात 400 वर्ग मीटर क्षेत्र है. वह बावली तालाब के रूप में यहां दर्ज है. स्थानीय लोग बताते है कि बिलारी के राजा के नाना के समय बावड़ी बनी थी। इसका सेकंड और थर्ड फ्लोर मार्बल से बना है. ऊपर का तल ईटों से बना हुआ है. इसमें एक कूप भी है और लगभग चार कक्ष भी बने हुए हैं. धीरे धीरे मिट्टी निकाल रहे हैं ताकि इसकी संरचना को किसी भी प्रकार की कोई हानि न हो. वर्तमान में इसका 210 वर्ग मीटर एरिया ही लग रहा है, शेष क्षेत्रफल कब्जे में है. कम से कम सवा सौ से डेढ़ सौ वर्ष पुरानी बावड़ी हो सकती है.
#WATCH | Uttar Pradesh | Visuals from the Chandausi area of Sambhal where excavation work was carried out yesterday at an age-old Baori by the Sambhal administration pic.twitter.com/ILqA8t3WPW
— ANI (@ANI) December 23, 2024
सनातन सेवक संघ के राज्य प्रचार प्रमुख कौशल किशोर ने संभल जिला प्रशासन को इलाके में एक शाही बावड़ी के अस्तित्व के बारे में बताया था. जिसके बाद खुदाई शुरू की गई थी.
1857 से जुड़े हैं तार?
बावड़ी को लेकर दावे किए जा रहे हैं कि इसका निर्माण 1857 में हुआ था. इसके अंदर 12 कमरे, एक कुआं वो सुरंग है.अब तक के खुदाई में 4 कमरे स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं. 2 जेसीबी की मदद से खुदाई का कार्य जारी है. हालांकि ढांचे को कोई नुकसान न हो इसके लिए बेहद सावधानी बरती जा रही है.
बावड़ी क्या होता है?
बावड़ी (जिसे बाउरी, बावली, या वाव भी कहा जाता है) एक पारंपरिक जल संरचना है, जिसे प्राचीन भारत में पानी के संरक्षण और भंडारण के लिए बनाया जाता था. यह सीढ़ीनुमा कुएं की तरह होती है, जिसमें लोग सीढ़ियों के जरिए पानी तक पहुंच सकते हैं. यह भारतीय स्थापत्य और जल प्रबंधन प्रणाली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है.बारिश के पानी को संग्रहित करने के लिए भी इनका उपयोग होता था.बावड़ी पानी को सहेजने का एक कुशल तरीका था, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां पानी की कमी थी. यह केवल जल भंडारण का स्थान नहीं, बल्कि एक सामाजिक और धार्मिक केंद्र भी हुआ करता था. गर्मियों में यह जगह ठंडक का अहसास देती थी.समय के साथ बावड़ियों का उपयोग कम हो गया, लेकिन आज ये ऐतिहासिक धरोहर और पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है.
सीएम योगी का क्या है संभल प्लान?
बताते चलें कि योगी आदित्यनाथ सरकार संभल को लेकर एक मास्टर प्लान तैयार कर रही है. NDTV को इस प्लान के बारे में कुछ जानकारी मिली है. इस प्लान में संभल के एक तीर्थ स्थल बनाने की तैयारी है. मान्यता ये रही है कि संबलगढ में ही भगवान कल्कि का अवतार होगा. प्लान में जो कुंए और तालाब पाट दिए गए थे उनका जीर्णोद्धार होगा. गजेटियर के मुताबिक़ संभल में 19 कुंए थे.. यहां तालाब या सरोवर को ही तीर्थ मानने की परंपरा रही है. गजेटियर के मुताबिक़ संभल में 68 तालाब थे. इन सबकी पहचान कर इनका जीर्णोद्धार करने की योजना है. कहते हैं कि जिसका अंतिम संस्कार संभल में होता हैं उसे मुक्ति मिलती है.
संभल के चारों कोनों पर श्मशान है. जिन पर अतिक्रमण हो चुका है. इनका भी काया कल्प किया जाएगा. जो मंदिर संभल में हैं उन सबका विकास करने की योजना है. संभल में हिंदू खेड़ा नाम से एक कॉलोनी है. पहले यहां हिंदू परिवार रहा करते थे. पर आज यहां सिर्फ़ मुस्लिम समाज के लोग रहते हैं. यही हाल दीपा सराय कॉलोनी का है. कल मुरादाबाद के कमिश्नर ने मंगल के सरकारी वकीलों की बैठक बुलाई हैं. इसमें 1978 के दंगे से जुड़ी फाइल मंगाई गई हैं.
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