कांफ्रेंस में सबसे पहले चर्चा रोड सेफ्टी और रोड एक्सीडेंट को लेकर हुई. इसमें डब्ल्यूएचओ की ताज़ा रिपोर्ट भी जारी की गयी.
चोट की रोकथाम और सुरक्षा को बढ़ावा देने को लेकर 15वां विश्व सुरक्षा सम्मेलन नई दिल्ली में आयोजित किया जा रहा है. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार, विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) और द जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के सहयोग हो रहे इस कार्यकर्म का फोकस रोड एक्सीडेंट से हो रही मौतें, डूबने से हो रही मौतें, जलने और ऊंचाई से गिर कर हो रहे हादसों को वैश्विक स्तर पर हाईलाइट करना है. इसमें WHO ने रोड एक्सीडेंट, डूब कर हो रही मौतें, जलने और ऊंचाई से गिरकर हो रही मौत को लेकर रिपोर्ट भी जारी किया है.
कांफ्रेंस में क्या हुआ?
कांफ्रेंस में सबसे पहले चर्चा रोड सेफ्टी और रोड एक्सीडेंट को लेकर हुई. इसमें डब्ल्यूएचओ की ताज़ा रिपोर्ट भी जारी की गयी, जिसमे बताया गया कि दक्षिण पूर्व एशिया में सड़क यातायात में होने वाली मौतों में से 66 प्रतिशत मौतें पैदल चलने वालों, दोपहिया सवारों और साइकिल चालकों की होती हैं, जबकि भारत में सबसे अधिक मौत दोपहिया और तिपहिया सवारों की होती हैं.
रिपोर्ट में क्या बताया गया?
WHO के अनुसार, विश्व स्तर पर, सड़क यातायात में होने वाली मौतों में से 30 प्रतिशत में दोपहिया और तीन पहिया वाहनों के उपयोगकर्ता शामिल होते हैं. चार पहिया वाहनों में सवार लोगों की मृत्यु में 25 प्रतिशत और पैदल चलने वालों की संख्या 21 प्रतिशत है. साइकिल चालकों की मौत का प्रतिशत 5 है. बाकी 19 प्रतिशत में बड़े वाहन, भारी मालवाहक वाहन और अन्य या अज्ञात उपयोगकर्ता प्रकार के लोग शामिल हैं.
रिपोर्ट में बताया गया है कि डब्ल्यूएचओ के दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र में, सड़क यातायात से होने वाली मौतों में चालित दोपहिया और तिपहिया वाहनों के उपयोगकर्ताओं का हिस्सा 46 प्रतिशत, चार पहिया वाहनों के सवारों का 12 प्रतिशत, पैदल यात्रियों का 17 प्रतिशत, साइकिल चालकों का 3 प्रतिशत और अन्य का 22 प्रतिशत हिस्सा है. स्टेटस रिपोर्ट में बताया गया कि भारत में 45.1 प्रतिशत, मालदीव 100 प्रतिशत, म्यांमार में 47 प्रतिशत और थाईलैंड में 51.4 प्रतिशत में सभी सड़क उपयोगकर्ता केटेगरी में दोपहिया और तिपहिया वाहनों के चालकों या सवारों का अनुपात सबसे अधिक है. WHO ने कहा कि दक्षिण एशियाई क्षेत्र के किसी भी देश ने अपने अनुमानित सड़क यातायात मौतों को 50 प्रतिशत तक कम करने का टारगेट हासिल नहीं किया है.
रिपोर्ट को लेकर डब्ल्यूएचओ के स्वास्थ्य सामाजिक निर्धारक विभाग के निदेशक एटियेन क्रुग ने कहा, “इस घटनाओं में सबसे अधिक युवा वर्ग के लोग प्रभावित हो रहे हैं. ऐसे में अब हमें कोई बड़ा कदम उठाना पड़ेगा. रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि हमें अच्छे कानून बनाना पड़ेगा और उसका पालन भी करना होगा. हमें अच्छा हेलमेट पहनना होगा, शराब पीकर गाड़ी नहीं चलानी होगी और स्पीड भी कम करना होगा. हमें पता है कि क्या करना है लेकिन जो भी करना है उसे अभी करना होगा.”
घटनाओं में कैसे आएगी कमी?
डॉक्टर मैथ्यू वर्गीस ने कहा, “अभी तक जो विचार रहा था उसके मुताबिक कहा जाता था कि जिसको चोट लगी है, उसने गलती की है. ऐसी मानसिकता जिन देशों में आय (पैसा) ज्यादा है वहां भी थी. लेकिन 60 के दशक के बाद उन देशों के लोगों ने भी देखा कि ऐसी चीजों से घटनाएं कम नहीं हो सकती. इसलिए वहां बदलाव हुए.” उन्होंने आगे कहा, “हमें गाड़ियों के लिए नहीं बल्कि लोगों के लिए सड़क बनाना है. हमें सड़कों की डिजाइन पर भी काम करना चाहिए और ऐसा वातावरण बनाना चाहिए जिससे हादसे कम हो.”
उन्होंने कहा कि आज के टेक्नोलॉजी के युग में पूरे देश में एक यूनिफाइड नंबर होना चाहिए, जिससे जिसके पास जो भी समस्या हो वह एक नंबर पर कॉल करके बता सके. हमारा नारा “वन नेशन वन नंबर” होना चाहिए. इससे यह फायदा होगा कि जहां भी घटना होगी वहां पर इस नंबर पर कॉल करके तुरंत फोन करके सूचना मिल जाएगी और इलाज भी हो जाएगा.”
आईआईटी दिल्ली की प्रोफेसर गीतम तिवारी ने क्या कहा?
आईआईटी दिल्ली की प्रोफेसर गीतम तिवारी ने कहा, ” अगर हमें घटनाओं को कम करना है तो जो दूसरे देश कर रहे हैं उसको फॉलो करना होगा. ग्लोबल स्टेटस रिपोर्ट में बताया गया है कि 50 देश ऐसे हैं जहां पर 30 परसेंट रोड पर होने वाली हादसों में कमी आई है. लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि हमारे देश में ऐसा नहीं हुआ है. भारत में भी पांच राज्य ऐसे हैं जहां पर पिछले 5 से 6 सालों में सड़क पर होने वाली मौतों में कमी आई है. हमें देखना होगा कि जिन राज्यों में कमी आई है वहां क्या अच्छा हुआ है, क्या रणनीति अपनाई गई है और बाकी राज्यों को उसे कॉपी करना होगा.”
कॉन्फ्रेंस के दौरान डूब कर करने वाले लोगों के बारे में भी चर्चा हुई. इस दौरान दुनिया भर से आए देश के एक्सपर्ट्स ने अपने-अपने देश में हो रही घटनाओं का जिक्र किया और कैसे इसको रोका जा सकता है उस पर चर्चा की.
जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ में इंजरी विभाग की प्रमुख जगनूर ने कहा कि डूब कर मरने वाली घटनाएं साइलेंट एपिडेमिक की तरह है. उन्होंने कहा कि इसके मामले सही से रिपोर्ट नहीं किये जा रहे हैं, जिसकी वजह से इसको काम करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा पा रहा है. कॉन्फ्रेंस में हिंसा की रोकथाम को लेकर भी रणनीति पर चर्चा की गई, जिसमें वैश्विक स्तर पर डोमेस्टिक वायलेंस, चाइल्ड एब्यूज और स्कूल वायलेंस के पर्सपेक्टिव पर बात की गई. इसमें नशे के बाद हिंसा करना भी शामिल है.
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