हमारी सोसाइटी में चुनाव है!​

 हमारी सोसाइटी का चुनाव दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र और लोकसभा चुनाव से अव्वल नहीं तो कम भी नहीं है. मैं तो कहूंगा कि इन चुनावों पर भारी है हमारी सोसाइटी का चुनाव. यहां भी वह सारे रंग हैं, जो मौजूदा राजनीति में चुनावों के वक्त हमें देखने को मिलते हैं.

दिल्ली में अभी-अभी चुनाव हुए. नई सरकार भी बन गई. उससे पहले हमने महाराष्ट्र और हरियाणा को देखा और उससे ठीक पहले लोकसभा चुनाव को. अब बारी है हमारी सोसाइटी के चुनाव की. अगर आप सोच रहे हैं कि इतने बड़े-बड़े चुनावों से अदना-सी सोसाइटी के चुनाव को क्यों जोड़ना, तो फिर आप भूल कर रहे हैं. क्योंकि हमारी सोसाइटी का चुनाव दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र और लोकसभा चुनाव से अव्वल नहीं तो कम भी नहीं है. मैं तो कहूंगा कि इन चुनावों पर भारी है हमारी सोसाइटी का चुनाव. यहां भी वह सारे रंग हैं, जो मौजूदा राजनीति में चुनावों के वक्त हमें देखने को मिलते हैं.

अब अगर आप पुरातन सामाजिक मान्यताओं, नातों, रिश्तो में यकीन करने वाले लोग हैं, तो इस रंग को ‘बदरंग’ कहने के लिए स्वतंत्र हैं. चलिए, रंग-बदरंग के विमर्श से निकलते हैं. सोसाइटी के चुनाव की झलकियों से गुजरते हैं. हालात से साक्षात्कार करते हैं. क्योंकि हमारी सोसाइटी में चुनाव है और ये 10 रिपोर्ट आपके लिए खास है. 

रिपोर्ट- 1
जैसा कि तमाम चुनावों में होता है, एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप की बौछार है. आक्षेप है. कटाक्ष है. माहौल में राजनीति घनघोर है. जो अपने खेमे में नहीं है उसकी कुशल-क्षेम पूछने का भी नहीं दौर है. हमारी सोसाइटी में चुनाव है. 

रिपोर्ट- 2
चुनाव है तो स्वाभाविक समर्थन और विरोध है. लेकिन समर्थन और विरोध के खेल में भी हद पार है. स्वस्थ समर्थन और विरोध की तो रहने ही दीजिए, यहां हर कोई कुछ भी कहने को आजाद है. हमारी सोसाइटी में चुनाव है.

रिपोर्ट- 3
जो सत्ता में थे, उनसे बहुत सवाल है. हिसाब की दरकार है. जो सत्ता के दावेदार हैं, कहते हैं कि उनके पास चमत्कार है. उनके एजेंडे में भविष्य का बखान है. भूत में जो हुआ उस पर विलाप है. कुल मिलाकर दिलचस्प यह प्रलाप है. हमारी सोसाइटी में चुनाव है. 

रिपोर्ट- 4
जो सत्ता में थे उनके खेमे के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी की खबर है. कहते हैं कि पूरी सोसाइटी इससे बाखबर है. इसी वजह से नए दावेदारों में चहल-पहल है. हमारी सोसाइटी में चुनाव है.

रिपोर्ट- 5
पिछली सत्ता के दो दशक लंबी चलने पर भी सवाल है. बहुत बवाल है. लोकतंत्र का मांगा जा रहा हिसाब है. कहानी बहुत कुछ और है. हमारी सोसाइटी में चुनाव है.

रिपोर्ट- 6
यहां भी क्षेत्रवाद है. यहां भी प्रांतवाद है. कुछ लोग तो कह रहे हैं कि यहां तो और भी कुछ-कुछ बात है. अंग्रेजों- मुगलों तक हो रही बात है. गजब का उन्माद है. ‘बंटोगे तो कटोगे’ का संदेश देने की कोशिश साफ है. कुल मिलाकर खूब वाद-विवाद है. राजनीति में कोई नहीं अपवाद है. हमारी सोसाइटी में चुनाव है.

रिपोर्ट- 7
वैसे चुनावों में यह सब नॉर्मल है और इन दिनों न्यू नॉर्मल तो पुराने नॉर्मल से बहुत कुछ एबनॉर्मल है. नॉर्मल बनाम न्यू नॉर्मल बनाम एबनॉर्मल के इस खेल में बहुत कुछ घालमेल है. हमारी सोसाइटी में चुनाव है.

रिपोर्ट- 8
राष्ट्रीय और राज्य के चुनावों की तरह करप्शन के आरोप खूब हैं. सत्ता बदलते ही उजागर कर देने की गूंज है. अच्छी-खासी कड़वाहट है. कुल मिलाकर स्थिति भयावह है. हमारी सोसाइटी में चुनाव है.

रिपोर्ट- 9
साफ-सफाई अच्छी नहीं होने का आरोप है. भवन के मेंटेनेंस में कोताही है. पेड़-पौधों की देखभाल में लापरवाही है. सुरक्षा के मोर्चे पर भी कमजोरी भारी है. यकीनन सोसाइटी के अच्‍छे नहीं हालात हैं. इसीलिए एक-दूसरे की लानत-मलामत है. हमारी सोसाइटी में चुनाव है. 
 
रिपोर्ट- 10
वोटर लिस्ट को लेकर यहां भी सवाल है. बहुत बवाल है. ऑनलाइन वोटिंग की भी डिमांड है. रेजिडेंट्स के नंबर की मांग है. लेकिन कहते हैं कि लिस्ट गायब है. अपनों को खबर देने, दूसरों को छोड़ देने का कथित गोलमाल है. कुल मिलाकर स्यापे हजार हैं. हमारी सोसाइटी में चुनाव है.

अश्विनी कुमार एनडीटीवी इंडिया में कार्यरत हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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