एक समय में कश्मीर कई मुगल बादशाहों की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी. इसके बाद, इसने अंग्रेजों को भी आकर्षित किया. डोगरा राजा की नीति के अनुसार,अंग्रेज कश्मीर में ज़मीन नहीं खरीद सकते थे. लेकिन उन्होंने हाउसबोट बनाना शुरू कर दिया. आज डल झील पर 1000 से ज्यादा हाउसबोट्स हैं.
श्रीनगर की डल झील के बीचों बीच एक पूरा शहर बसता है, जो रात को सोता नहीं है. क्योंकि देर रात तक पर्यटक इस झील के किनारे पर आते रहते है और शिकारे वाले इन्हें उनकी हाउस बोट तक लेकर जाते रहते हैं. झील के अंदर कई हज़ारों हाउस बोट्स हैं जो इस शहर की रोज़ी रोटी का ज़रिया भी हैं. हालांकि इन दिनों अमरनाथ यात्रा के बाद टूरिस्ट का आना कम हो गया है. हाउस बोट्स चलाने वाले लोगों का मानना है की चुनाव के बाद एक बार फिर पर्यटक वापस घाटी आयेंगे क्योंकि कुछ बुकिंग्स आनी शुरू हो गई है.
वैसे झील को चार चांद उसके आस पास बिखरी हुई प्रकृति भी लगाती है. चारों ओर से घेरे हुए मुगल उद्यान और तीनों तरफ बर्फ से ढके पहाड़ों का घेरा देखते ही बनता है. सर्दियों के दौरान, तापमान -शून्य डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है और झील जम जाती है. पर झील की खूबसूरती झील में ही है. उस झील पर एक पूरी दुनिया बसी है. आप कह सकते हैं कि झील पर एक पूरा छोटा सा शहर बसा है. और इसके लिए आपको उसके करीब आना होगा!झील के ऊपर ‘तैरते’ बाजार में आपको हर वो समान मिल जाएगा जो एक आम शहर में मिलता है, खाने पीने का पहनने का कुछ भी.
दरअसल, कश्मीर कई मुगल बादशाहों की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी. इसके बाद, इसने अंग्रेजों को भी आकर्षित किया. डोगरा राजा की नीति के अनुसार, अंग्रेज कश्मीर में ज़मीन नहीं खरीद सकते थे. लेकिन उन्होंने एक खामी ढूंढ़ी और हाउसबोट बनाना शुरू कर दिया क्योंकि उस समय कोई भी ऐसा कानून नहीं था, जो कहे कि कि वे पानी पर नहीं रह सकते. तबसे ही डल झील पर हाउस बोट्स के बनने का सिलसिला शुरू हुआ. आज की तारीख में इस झील पर एक हजार से ज्यादा हाउस बोट्स हैं.
झील के अंदर तैरते हुए बगीचे भी हैं जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘राड’कहा जाता है. इन बगीचों की भी अपनी कहानी है. कई बार ऐसे भी मामले सामने आए हैं कि रातों रात लोगों के खेत चोरी हो गए हों. नेहरू पोस्ट जो इन की पुलिस पोस्ट है, वहां कई मामले इस तरह के पुलिस रिकॉर्ड भी मिले हैं.
कश्मीर में इन दिनों मौसम बदल रहा है. दो दिन से हल्की बुंदा-बांदी ही रही है, जिसके चलते हवा में ठंडक से आ गई है. इस बदलती हुई फ़िज़ा का असर सियासत पर भी दिख रहा है. इन दिनों झील खिल खिला रही है. बारिश की बूंदे लहरों को और मस्त बना रही है. इन दिनों दल झील में कमल खूब खिला हुआ है. अगस्त और जुलाई में आप खूबसूरत कमलों से सजे तैरते हुए बगीचों को देख सकते हैं.
आजकल चुनाव का बिगुल बज चुका है, इसीलिए झील के आसपास रहने वाले स्थानीय निवासी भी मुद्दों पर बात कर रहे हैं. इस चुनाव में इनके लिए झील की सफ़ाई और रोज़गार दो बहुत बड़े मुद्दे है. दरअसल, किसी भी शहर का भविष्य वहां के युवा वर्ग पर निर्भर होता है. जम्मू कश्मीर की बात करें तो यहां लगभग 79 फ़ीसदी आबादी ऐसी है जो 35 साल की उमर से कम है. इसीलिए शायद रोज़गार एक बड़ा मुद्दा है.
ज़्यादातर राजनीतिक दल जानते हैं कि इस बार युवा वर्ग का वोट उनकी नैया को पार लगा सकता है. इसीलिए ज़्यादा फ़ोकस उन पर हो रहा है. नेशनल कॉन्फ़्रेंस और पीडीपी का कहना है की अगर वो सत्ता में आयेंगे तो कश्मीरी युवाओं के ऊपर जितने गलत केस किए हैं उन्हें वापस लिया जाएगा.
डल झील पर रहने वाले लोग भी कहते हैं कि अगर नौजवानों को अपने इलाक़ों में नौकरी मिल जाए तो वो ये इलाक़ा छोड़ कर नहीं जाएंगे और अपने परिवार के साथ रहेंगे. डल झील पर मंजूर भई ने चुनाव को लेकर कहा कि मेरे बच्चों ने पीएचडी की हुई है लेकिन नौकरी नहीं है. और ऐसे जब बच्चा घर से निकल जाता है तो वापिस नहीं आता.
वहीं, मकसूद जो खुद भी डल झील के पास ही रहते हैं का कहना है कि तीस साल पहले ये झील इतनी साफ़ थी की हम इसका पानी भी पीते थे लेकिन आज ये इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि हम इसके पानी को हाथ लगाने से भी डरने लगे हैं.
वैसे ये बात सही है झील में इन सिंक गन्दगी बढ़ गई है.पर्यावरणविद्धों व अन्य कई संगठनों का आरोप है कि हाउसबोट से निकलने वाली गंदगी ही डल और नगीन झील के पारिस्थितिक संतुलन को बिगाड़ रही है,झील में प्रदूषण को बढा रही है. डल और नगीन झील में लगभग 1200 छोटे बड़े हाउसबोट हैं. इनमें से लगभग 900 ही पंजीकृत बताए जाते हैं.
हालांकि प्रशासन का ये भी कहना है की आने वाले समय में झील में अन्य हाउसबोटों,झील के भीतरी हिस्सों में स्थिति बस्तियों और नगीन झील में भी बायो डाइजेस्टर लगाए जाएंगे. यह पूरी तरह पर्यावरण के अनुकूल है और बायो डाइजेस्टर का आकार भी ज्यादा बड़ा नहीं है. यह हाउसबोट के पतवार क्षेत्र में ही हैं. बायो डाइजेस्टर हाउसबोट व घरों से निकलने वाले अपिष्ट को डल झील में जाने से रोकने में समर्थ हैं.
उन्होंने कहा कि तेलबल इलाका सिर्फ इसलिए पहले चुना गया है क्योंकि इस क्षेत्र में कई घरों का सीवरेज सीधा डल में आ रहा था.जब भी हल्की बुंदा बंदी होती है तो पानी का स्तर दो से तीन फीट बढ़ जाता है.इतिहास गवाह है की डल झील में पानी कई बार चढ़ा और उतारा है. इस झील को लेकर सियासत तो हुई लेकिन समाधान किसी ने नहीं ढूंढ़े इस बार 2024 के चुनावों में अब ये भी उम्मीद कर रही है की ना सिर्फ़ कश्मीर के हालत बदलेंगे बल्कि झील के भी अच्छे दिन आएंगे.
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