September 19, 2024
आर्टिफिशियल रेन पर क्या चाहती है दिल्ली सरकार? भारत में पहली बार कब हुआ? कीमत से लेकर जानिए हर डिटेल

आर्टिफिशियल रेन पर क्या चाहती है दिल्ली सरकार? भारत में पहली बार कब हुआ? कीमत से लेकर जानिए हर डिटेल​

Artificial Rain Cost : कैसा हो आपका मन करे और बारिश हो जाए और मन करे तो बंद. ऐसा संभव है. क्लाउड सीडिंग के जरिए ऐसा किया जा सकता है. जानें क्या है इसका तरीका और कीमत...

Artificial Rain Cost : कैसा हो आपका मन करे और बारिश हो जाए और मन करे तो बंद. ऐसा संभव है. क्लाउड सीडिंग के जरिए ऐसा किया जा सकता है. जानें क्या है इसका तरीका और कीमत…

Artificial Rain Concept : दिल्ली (Delhi Government) के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय (Gopal Rai) ने रविवार को केंद्र सरकार से सर्दियों के दौरान कृत्रिम बारिश (Artificial Rain) की अनुमति देने का आग्रह किया. सर्दियों में दिल्ली में वायु गुणवत्ता का स्तर गिर जाता है. इसीलिए दिल्ली सरकार ने पिछले साल ही कृत्रिम बारिश कराने के प्रयास किए थे. पिछले साल आईआईटी-कानपुर ने एक प्रस्ताव पेश किया था कि दिल्ली में कृत्रिम वर्षा के लिए क्लाउड सीडिंग किया जा सकता है. इसके लिए फाइनेंस और सिक्योरिटी क्लियरेंस की आवश्यकता होती है. गोपाल राय ने बताया कि पिछले साल समय बहुत कम था, इसलिए अनुमति नहीं मिल सकी थी. इस बार हमने विशेषज्ञों के साथ बैठक की है और केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को पत्र लिखकर मदद मांगी है. उन्होंने बताया कि कृत्रिम वर्षा के प्रस्ताव पर चर्चा के लिए केंद्रीय एजेंसियों और आईआईटी कानपुर के विशेषज्ञों के साथ बैठक का पत्र में अनुरोध किया गया है. हम सभी जानते हैं कि ये अनुमतियां देना अकेले दिल्ली सरकार के हाथ में नहीं है. दिल्ली सरकार को जो भी अनुमति देनी चाहिए, हम उसे देने के लिए तैयार हैं.

भारत में क्या कभी हुआ है?

भारत में कृत्रिम वर्षा कराई जा चुकी है. गंभीर सूखे के कारण तमिलनाडु सरकार ने वर्ष 1983, 1984-87 और 1993-94 के दौरान क्लाउड सीडिंग ऑपरेशन चलाया था. वर्ष 2003 और 2004 में कर्नाटक सरकार ने क्लाउड सीडिंग की शुरुआत की. उसी वर्ष महाराष्ट्र में यूएस आधारित वेदर मॉडिफिकेशन इंक के माध्यम से क्लाउड सीडिंग ऑपरेशन किया गया था. कंपनी सृष्टि एविएशन अपने क्लाउड सीडिंग ऑपरेशन के लिए दो सेसना 340 विमानों के साथ एयर डिफेंस में सक्रिय रूप से शामिल है.

चीन कितना आगे?

सबसे बड़ी क्लाउड सीडिंग सिस्टम पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (China) में है. उनका मानना ​​है कि वह अपनी राजधानी बीजिंग सहित कई तेजी से सूखे वाले क्षेत्रों में बारिश की मात्रा को इससे बढ़ा सकते हैं. जहां बारिश की जरूरत होती है, वहां वह इसके जरिए बारिश करा लेते हैं. हालांकि, इसके चलते उसके पड़ोसी उस पर उनके बादल चुराने का आरोप भी लगाते हैं. चीन ने 2008 ओलंपिक खेलों से ठीक पहले बीजिंग में क्लाउड सीडिंग का उपयोग किया था. फरवरी 2009 में, चीन ने चार महीने के सूखे के बाद कृत्रिम रूप से बर्फबारी कराने के लिए बीजिंग के ऊपर आयोडाइड की छड़ें विस्फोटित कीं, और बर्फबारी को बढ़ाने के लिए उत्तरी चीन के अन्य क्षेत्रों में आयोडाइड की छड़ें विस्फोटित कीं. इसके बाद बीजिंग में बर्फबारी लगभग तीन दिनों तक चली और इसके कारण बीजिंग के आसपास की 12 मुख्य सड़कें बंद हो गईं. अक्टूबर 2009 के अंत में बीजिंग ने दावा किया कि क्लाउड सीडिंग के कारण 1987 के बाद पहली बार वहां बर्फबारी हुई है. सिंघुआ विश्वविद्यालय के शोध पत्र के अनुसार, चीनी मौसम अधिकारियों ने 1 जुलाई, 2021 को यह सुनिश्चित करने के लिए क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल किया कि आसमान साफ ​​रहे और वायु प्रदूषण कम हो. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने 1 जुलाई को एक प्रमुख उत्सव के साथ अपनी शताब्दी मनाई. यह जश्न तियानमेन चौक पर हुआ. चीनी सरकार ने उत्सव कार्यक्रम से एक रात पहले बारिश कराने के लिए क्लाउड सीडिंग तकनीक का इस्तेमाल किया. इस वर्षा से PM2.5 प्रदूषण की मात्रा दो-तिहाई से अधिक कम हो गई. इससे उस समय हवा की गुणवत्ता को “मध्यम” से “अच्छी” में सुधारने में मदद मिली.

कैसे होती है कृषिम वर्षा?

आर्टिफिशियल रेन कराने के लिए साइंटिस्ट सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड और सूखी बर्फ (ठोस कार्बन डाइऑक्साइड) शामिल करने के साथ ही टेबल नमक जैसी हीड्रोस्कोपिक सामग्री को बादलों में छोड़ते हैं. मगर यह तभी हो सकता है जब 40 प्रतिशत बादल आसमान में मौजूद हों. गैस में फैलने वाले तरल प्रोपेन का भी उपयोग किया जाता है. यह सिल्वर आयोडाइड की तुलना में उच्च तापमान पर बर्फ के क्रिस्टल का उत्पादन कर सकता है. क्लाउड सीडिंग के जरिए बादलों के भीतर तापमान -20 और -7 डिग्री सेल्सियस तापमान किया जाता है. क्लाउड सीडिंग रसायनों को विमान से या जमीन से जेनरेटर या एंटी-एयरक्राफ्ट गन या रॉकेट से दागे गए कनस्तर द्वारा फैलाया जा सकता है. विमान से छोड़ने के लिए, सिल्वर आयोडाइड फ्लेयर्स को और फैलाया जाता है क्योंकि एक विमान बादल के प्रवाह के माध्यम से उड़ता है. जमीन से छोड़े जाने के बाद बारीक कणों को वायु धाराओं द्वारा नीचे और ऊपर की ओर ले जाया जाता है. इसी प्रक्रिया को क्लाउड सीडिंग कहा जाता है.

कितना होता है खर्च?

दिल्ली जैसे शहर में अगर बारिश करानी हो तो इसका खर्च 15 से 20 लाख रुपये खर्च आ सकता है. अब देखना यह है कि केंद्र सरकार दिल्ली में कृत्रिम बारिश कराने की इजाजत देती है या नहीं. इसके बाद ही पता चल पाएगा कि इससे कितना फायदा हुआ और कितना खर्च आया.

क्या नेचर के लिए सही?

क्लाउड सीडिंग की उपयोगिता वैज्ञानिकों के बीच बहस का विषय बनी हुई है. इस तरह से बारिश कराने का एक लंबा इतिहास है. प्रारंभिक प्रयोग 1940 के दशक में हुए थे, और इसका उपयोग कृषि लाभ, जल आपूर्ति वृद्धि और कार्यक्रम योजना सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया गया. 2021 से, संयुक्त अरब अमीरात इलेक्ट्रिक-चार्ज उत्सर्जन उपकरणों और अनुकूलित सेंसर के पेलोड से लैस ड्रोन का उपयोग कर रहा है. ये कम ऊंचाई पर उड़ते हैं और हवा के अणुओं को इलेक्ट्रिक चार्ज प्रदान करते हैं. 2003 में, यूएस नेशनल रिसर्च काउंसिल (एनआरसी) ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें कहा गया, “विज्ञान दावे के साथ यह कहने में असमर्थ है कि सीडिंग तकनीक सकारात्मक प्रभाव पैदा करती है. पहले क्लाउड सीडिंग के बाद 55 वर्षों में पर्याप्त प्रगति हुई है.” 2010 के तेल अवीव विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में दावा किया गया है कि सिल्वर आयोडाइड और जमे हुए कार्बन डाइऑक्साइड जैसी सामग्रियों के साथ वर्षा में सुधार के लिए क्लाउड सीडिंग की आम प्रथा का वर्षा की मात्रा पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है.

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