हाल ही में वैज्ञानिकों ने इंसानी शरीर में ऐसी रहस्यमयी संरचनाओं को खोजा है, जिन्हें “ओबेलिस्क” (Obelisks) नाम दिया गया है. ये संरचनाएं अब तक वैज्ञानिकों की नजरों से छिपी हुई थीं और इनकी खोज ने कई नए सवाल खड़े कर दिए हैं.
हर बार जब हमें लगता है कि हमने इंसानी शरीर (Human Body) को पूरी तरह समझ लिया है, तो कुछ नए और चौंकाने वाली खोज सामने आ जाती हैं. हाल ही में वैज्ञानिकों ने इंसानी शरीर में ऐसी रहस्यमयी संरचनाओं को खोजा है, जिन्हें “ओबेलिस्क” (Obelisks) नाम दिया गया है. ये संरचनाएं अब तक वैज्ञानिकों की नजरों से छिपी हुई थीं और इनकी खोज ने कई नए सवाल खड़े कर दिए हैं.
क्या हैं ओबेलिस्क (What Is Obelisks)?
ओबेलिस्क वायरस किसी सामान्य माइक्रोब्स (Microbes) जैसे नहीं हैं. ये आकार में बहुत छोटे हैं और अलग तरह की संरचना रखते हैं. इनका नाम इनकी अनोखी आकृति (Unique Shape) के कारण रखा गया है.
इस खोज में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के नोबेल पुरस्कार विजेता एंड्रू फायर की अहम भूमिका रही है. उन्हीं के नेतृत्व में ये रिसर्च की गई. रिसर्च में बड़े पैमाने पर जेनेटिक डेटा (Genetic Data) का एनालिसिस किया और ऐसी संरचनाएं पाई जो किसी भी ज्ञात जीव से मेल नहीं खाती थीं.
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आरएनए से कनेक्शन
ओबेलिस्क RNA बेस्ड संरचनाएं (RNA-based Entities) हैं. RNA का मतलब राइबोन्यूक्लिक एसिड (Ribonucleic Acid) से है. ये हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि यह DNA में मौजूद जेनेटिक निर्देशों (Genetic Instructions) को प्रोटीन में बदलने का काम करता है, जो हमारे शरीर को बनाते और रिपेयर करते हैं. ओबेलिस्क इंसानी शरीर के अलग-अलग हिस्सों में मिले हैं, जैसे मुंह के बैक्टीरिया और इंटेस्टाइन में मौजूद बैक्टीरिया में. वैज्ञानिकों को इनमें हजारों अलग-अलग वैरायटीज मिली हैं.
एवोल्यूशन से जुड़े सवाल (Evolutionary Questions)
ओबेलिस्क की खोज ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या ये वायरस RNA-based life forms से विकसित हुए हैं या ये पहले से थे और समय के साथ उन्होंने अपनी कुछ खासियतें खो दी हैं. इनकी मौजूदगी ने जीवन की उत्पत्ति से जुड़ी बहस को और गहरा बना दिया है.
ह्यूमन हेल्थ पर असर अब तक साफ नहीं
ओबेलिस्क का ह्यूमन हेल्थ (Human Health) पर क्या प्रभाव पड़ता है. यह अभी तक साफ नहीं है. ये बैक्टीरिया के व्यवहार (Bacterial Behavior) को प्रभावित कर सकते हैं और संभव है कि इसका हमारे शरीर पर अप्रत्यक्ष असर (indirect impact) हो, लेकिन इसका कोई पक्का सबूत फिलहाल नहीं मिला है.
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रिसर्च की चुनौती:
इन संरचनाओं को खोजने के लिए वैज्ञानिकों ने बड़े पैमाने पर जेनेटिक डेटा का विश्लेषण किया और नए कंप्यूटेशनल टूल्स का इस्तेमाल किया. यह सुनिश्चित करने के लिए कई फिल्टरिंग तकनीकों का उपयोग किया गया कि यह महज डेटा की गड़बड़ी न हो. यह खोज दिखाती है कि इंसानी शरीर सिर्फ अंगों और टिश्यूज तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सूक्ष्मजीवों का एक विशाल और जटिल संसार भी मौजूद है. ओबेलिस्क इस बात का उदाहरण हैं कि जब वैज्ञानिक नई तकनीकों से डेटा को देखते हैं, तो क्या-क्या नई खोजें हो सकती हैं.
भविष्य में ऐसी और भी संरचनाओं की खोज हो सकती है, जो जीवन और इसके मूलभूत तत्वों को समझने की हमारी परिभाषा को बदल देंगी. फिलहाल, वैज्ञानिक इन रहस्यमयी “ओबेलिस्क” पर रिसर्च कर रहे हैं और इनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाने की कोशिश में हैं.
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