बॉलीवुड में विलेन्स की जबरदस्त भरमार है. ऐसी बहुत ही कम फिल्में होती हैं जो बिना विलेन के पूरी हो जाए. थोड़े बदलावों के बाद फिल्मों में प्रोटागोनिस्ट होने लगे हैं तो एंटागोनिस्ट भी दिखाई देते हैं जो भले ही पारंपरिक विलेन जैसे न दिखे लेकिन उनका किरदार निगेटिव शेड में होता है.
बॉलीवुड में विलेन्स की जबरदस्त भरमार है. ऐसी बहुत ही कम फिल्में होती हैं जो बिना विलेन के पूरी हो जाए. थोड़े बदलावों के बाद फिल्मों में प्रोटागोनिस्ट होने लगे हैं तो एंटागोनिस्ट भी दिखाई देते हैं जो भले ही पारंपरिक विलेन जैसे न दिखे लेकिन उनका किरदार निगेटिव शेड में होता है. आमतौर पर ये एरिया मेल डोमिनेंस वाला रहा है. लेकिन कुछ एक्ट्रेस भी ऐसी रही हैं जो फीमेल एंटागोनिस्ट या फीमेल विलेन के रूप में जबरदस्त हिट रही हैं. उन्हीं में से एक एक्ट्रेस ऐसी थी जिसका फिल्मी करियर तो बतौर हीरोइन शुरू हुआ. फिर एक हादसे की वजह वो विलेन बनने पर मजबूर हो गईं.
कौन थी वो एक्ट्रेस?
हम जिस एक्ट्रेस की बात कर रहे हैं वो एक्ट्रेस हैं ललिता पवार. ललिता पवार ने अपने फिल्मी करियर में करीब 700 फिल्मों में काम किया साल 1928 से लेकर 1997 तक वो फिल्मी दुनिया में एक्टिव रहीं. हिंदी सिनेमा की पहले अबोली फिल्म राजा हरीशचंद्र से उन्होंने काम करना शुरू किया. बहुत सी ऐसी मूक फिल्में हैं जिसमें ललिता पवार बतौर एक्ट्रेस नजर आईँ. 1932 में रिलीज हुई एक फिल्म कैलाश को ललिता पवार ने को प्रड्यूस भी किया और खुद उसमें एक्टिंग भी की. लेकिन जंग ए आजादी नाम की एक फिल्म में उनके साथ ऐसा हादसा हुआ कि वो ताउम्र विलेन के रोल या सपोर्टिंग रोल करने पर मजबूर हो गईं.
एक चांटे ने बदली जिंदगी
साल 1942 में ललिता पवार भगवान दादा के साथ जग ए आजादी मूवी में शूट कर रही थीं. एक सीन के लिए भगवान दादा ने ललिता पवार को इतनी जोर से थप्पड़ मारा कि ललिता पवार के चेहरे को लकवा मार गया और उनकी एक आंख की नस भी फट गई. जिसका इलाज तीन साल तक चला. लेकिन आंख पूरी तरह ठीक नहीं हो पाई. तीन साल के गैप के बाद ललिता पवार फिल्मी पर्दे पर लौटीं. लेकिन फिर उन्हें हीरोइन्स वाले रोल नहीं मिले. मजबूरन उन्हें निगेटिव किरदार चुनने पड़े. इन किरदारों में भी उन्होंने ऐसी जान डाली कि वो सबसे खूंखार लेडी विलेन मानी जाती हैं. जिनकी आवाज सुनकर एक्ट्रेस थरथर कांपा करती थीं.
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