एकनाथ शिंदे: बालासाहेब के करीबी, उद्धव से विद्रोह के बाद बने CM, अब लाड़ला भाई का मिला टैग​

 विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ महागठबंधन की प्रचंड जीत में शिंदे की महत्वपूर्ण भूमिका रही और उनकी सरकार द्वारा महिलाओं के लिए लाई गयी लाडकी बहिन योजना पांसा पलटने वाली साबित हुई. यह योजना महिलाओं के बीच इतनी लोकप्रिय हुई कि शिवसेना नेता को ‘लाडका भाऊ’ भी कहा जाने लगा.

वर्ष 2022 में शिवसेना से बगावत करने वाले वरिष्ठ नेता एकनाथ संभाजी शिंदे ने महाराष्ट्र में एक तेजतर्रार व कर्मठ नेता की छवि हासिल की है जिसे उन्होंने महायुति सरकार के नेतृत्व के दौरान ढाई साल के अपने मुख्यमंत्री के कार्यकाल में आकार दिया.

शिंदे (60) ने बृहस्पतिवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता देवेन्द्र फडणवीस के नेतृत्व वाली नयी सरकार में उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली. उनके (शिंदे के) कुछ उत्साही समर्थक भले ही इसे ‘पदावनति’ बता रहे हों, लेकिन कभी ऑटो-रिक्शा चालक रहे शिंदे हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के दमदार प्रदर्शन के आधार पर यह दावा कर सकते हैं कि वही शिवसेना की विरासत के वास्तविक उत्तराधिकारी हैं.नवंबर में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिंदे ठाणे जिले के कोपरी-पचपखाड़ी से विधायक चुने गए और उन्होंने पार्टी को भी शानदार जीत दिलाई. शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने 81 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिनमें से 57 पर जीत हासिल की. वहीं, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली प्रतिद्वंद्वी शिवसेना (उबाठा) का प्रदर्शन बहुत खराब रहा और वह केवल 20 सीट जीत सकी.मुख्यमंत्री के अपने कार्यकाल (30 जून, 2022 से चार दिसबंर, 2024) में शिंदे ने हमेशा उपलब्ध रहने वाले नेता के तौर पर छवि बनाई और मुंबई तटीय सड़क, मुंबई ट्रांस हार्बर लिंक (अटल सेतु, मेट्रो रेल, नवी मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, मुंबई-नागपुर समृद्धि महामार्ग और धारावी पुनर्विकास जैसी बड़ी परियोजनाओं को आगे बढ़ाया.

विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ महागठबंधन की प्रचंड जीत में शिंदे की महत्वपूर्ण भूमिका रही और उनकी सरकार द्वारा महिलाओं के लिए लाई गयी लाडकी बहिन योजना पांसा पलटने वाली साबित हुई. यह योजना महिलाओं के बीच इतनी लोकप्रिय हुई कि शिवसेना नेता को ‘लाडका भाऊ’ भी कहा जाने लगा.

ठाणे जिले से अपना राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले शिवसेना नेता की सबसे बड़ी खूबी लोगों और पार्टी कार्यकर्ताओं तक उनकी पहुंच थी.

शिंदे ने जून 2022 में मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत की तो उनका यह कदम अपने राजनीतिक करियर को खतरे में डालने वाला प्रतीत हुआ, लेकिन ढाई साल बाद वह बेहद मजबूत होकर उभरे. उन्होंने खुद को न केवल सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन में महत्वपूर्ण नेता के रूप में स्थापित किया, बल्कि महाराष्ट्र की बेहद प्रभावशाली हस्तियों में भी शुमार हुए.

कभी मुंबई से सटे ठाणे शहर में ऑटो चालक के रूप में काम करने वाले शिंदे ने राजनीति में कदम रखने के बाद बेहद कम समय में ठाणे-पालघर क्षेत्र में शिवसेना के प्रमुख नेता के तौर पर अपनी पहचान बनायी. उन्हें जनता से जुड़े मुद्दों को आक्रामक तरीके से उठाने के लिए जाना जाता था.

नौ फरवरी 1964 को जन्मे शिंदे ने स्नातक की शिक्षा पूरी होने से पहले ही पढ़ाई छोड़ दी और राज्य में उभर रही शिवसेना में शामिल हो गए. मूलरूप से पश्चिमी महाराष्ट्र के सतारा जिले से ताल्लुक रखने वाले शिंदे ने ठाणे जिले को अपना कार्यक्षेत्र बनाया.

पार्टी की हिंदुत्ववादी विचारधारा और बाल ठाकरे के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर शिंदे ने शिवसेना का दामन थाम लिया. वह कहते हैं कि महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी तरक्की के लिए वह शिवसेना और इसके संस्थापक, दिवंगत बाल ठाकरे के ऋणी हैं.

शिवसेना में शामिल होने के बाद उन्हें पार्टी के मजबूत नेता आनंद दिघे का मार्गदर्शन मिला. 2001 में दिघे की आकस्मिक मृत्यु के बाद उन्होंने ठाणे-पालघर क्षेत्र में पार्टी को मजबूत किया.शिंदे 1997 में ठाणे नगर निगम में पार्षद चुने गए थे और इसके बाद वह 2004 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर पहली बार विधायक बने. 2005 में उन्हें शिवसेना का ठाणे जिला प्रमुख बनाया गया . शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे कल्याण सीट से लोकसभा सदस्य हैं.शिंदे को 2014 में कुछ समय के लिए राज्य विधानसभा में विपक्ष का नेता नियुक्त किया गया था. शिवसेना द्वारा देवेंद्र फडणवीस मंत्रिमंडल में शामिल नहीं होने के फैसले के बाद उन्होंने यह पद संभाला.शिंदे के प्रभाव में तब इजाफा हुआ जब 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना ने भाजपा के साथ हाथ मिलाया और फडणवीस के नेतृत्व में सरकार बनाई जिसमें वह मंत्री रहे.शिंदे तत्कालीन मुख्यमंत्री फडणवीस (2014-19) के करीब आए और उनकी घनिष्ठता चर्चा का विषय बन गयी और ठाणे नगर निगम को छोड़कर, भाजपा ने 2016 में शिवसेना के खिलाफ महाराष्ट्र के सभी नगरीय निकायों के चुनाव लड़े.जब शिवसेना ने भाजपा से नाता तोड़ लिया और 2019 के अंत में रांकपा और कांग्रेस के साथ महा विकास आघाडी (एमवीए) सरकार बनाई, तो वह कैबिनेट मंत्री बने.

कोविड-19 महामारी के दौरान, राकांपा के पास स्वास्थ्य मंत्रालय होने के बावजूद, शिंदे-नियंत्रित महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम ने कोरोना वायरस के रोगियों के इलाज के लिए मुंबई और उसके उपनगरों में स्वास्थ्य केंद्र स्थापित किए.शिंदे को जमीन से जुड़ा नेता माना जाता है, क्योंकि वह पार्टी कार्यकर्ताओं और सहकर्मियों के लिए हमेशा उपलब्ध रहते हैं.
 

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