औद्योगिक शराब मामले में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ कल सुनाएगी फैसला ​

 सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) औद्योगिक शराब मामले (Industrial Liquor Case) में बुधवार को फैसला सुनाएगा. इसके बाद औद्योगिक शराब को लेकर कई सवालों के जवाब मिल जाएंगे.

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) बुधवार को औद्योगिक शराब मामले (Industrial Liquor Case) को लेकर फैसला सुनाएगा. 9 जजों के संविधान पीठ ने छह दिनों सुनवाई के बाद 18 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रखा था. क्या औद्योगिक शराब को राज्य विधानमंडल की कानून बनाने की शक्तियों के तहत ‘नशीली शराब’ माना जाए? क्या औद्योगिक शराब को नशीली शराब की श्रेणी में रखा जाए? और क्या नशीली शराब की तरह औद्योगिक शराब पर भी राज्य सरकार का नियंत्रण हो सकता है? ऐसे सारे सवालों के जवाब बुधवार को  संविधान पीठ के फैसले के बाद मिल जाएंगे. 

इस संविधान पीठ में  सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़,  जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस अभय एस ओक, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस उज्जल भुइयां, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल हैं. 

2007 में नौ न्‍यायाधीशों को भेजा गया था मामला

उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 की धारा 18जी की व्याख्या से संबंधित यह मामला 2007 में नौ न्यायाधीशों की पीठ को भेजा गया था. 

अधिनियम की यह धारा केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करने की अनुमति देती है कि अनुसूचित उद्योगों से संबंधित कुछ उत्पादों को उचित रूप से वितरित किया जाए और ये उचित मूल्य पर उपलब्ध हों. वे इन उत्पादों की आपूर्ति, वितरण और व्यापार को नियंत्रित करने के लिए एक आधिकारिक अधिसूचना जारी करके ऐसा कर सकते हैं. 

राज्‍य विधायिका के पास हैं यह शक्तियां

हालांकि, संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची III की प्रविष्टि 33 के अनुसार, राज्य विधायिका के पास संघ नियंत्रण के तहत उद्योगों और इसी तरह के आयातित सामानों के उत्पादों के व्यापार, उत्पादन और वितरण को विनियमित करने की शक्ति है. 

यह तर्क दिया गया कि सिंथेटिक्स एंड केमिकल लिमिटेड बनाम यूपी राज्य मामले में सात न्यायाधीशों की पीठ राज्य की समवर्ती शक्तियों के साथ धारा 18जी के हस्तक्षेप को संबोधित करने में विफल रही थी. 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि 1951 अधिनियम की धारा 18-जी की व्याख्या के संबंध में सिंथेटिक्स एंड केमिकल मामले (सुप्रा) में निर्णय को कायम रहने की अनुमति दी जाती है, तो यह सूची III की प्रविष्टि 33 (ए) के प्रावधानों को निरर्थक  बना देगा. इसके बाद मामला नौ जजों की बेंच के पास भेजा गया. 

गौरतलब है कि प्रविष्टि 33 सूची III के साथ ही प्रविष्टि 8 सूची II भी ‘नशीली शराब’ के संबंध में राज्य को विनियमन शक्तियां प्रदान करती है. प्रविष्टि 8 सूची II के अनुसार, राज्य के पास नशीली शराब को लेकर कानून बनाने की शक्तियां हैं यानी नशीली शराब का उत्पादन, निर्माण, कब्जा, परिवहन, खरीद और बिक्री शामिल हैं. 

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