डॉ. मनमोहन सिंह ने इस बजट में विदेशी कंपनियों को देश में अपना व्यापार जमाने के लिए एंट्री की इजाजत दी. साथ ही कई नियमों में बदलाव भी किया गया. 1991 को ऐतिहासिक बजट वाला साल भी कहा जाता है.
भारत के पहले सिख प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह को भारत में बड़े आर्थिक सुधार का जनक माना जाता है. पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में तत्कालीन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने 1991 में आर्थिक उदारीकरण का दौर शुरू किया था. इस कदम ने प्रभावी रूप से ‘लाइसेंस राज’ का युग खत्म कर दिया. 1991 के उदारीकरण बजट को अभूतपूर्व उपलब्धि माना जाता है. इससे आर्थिक सुधारों के एक नए युग की शुरुआत हुई थी. इस दूरदर्शी कदम ने देश में क्रांति ला दी, मध्यम वर्ग को सशक्त बनाया और लाखों लोगों को गरीबी और हाशिए से ऊपर उठाया.
विशेषज्ञ मानते हैं कि 1991 के बजट ने भारत के विकास को गति दी. अपने पहले ही बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत को एक नई दुनिया में पहुंचा दिया. इस दौरान नई औद्योगिक नीति का अनावरण किया गया, जिसने परिवर्तन के साथ निरंतरता पर आधारित भारत के आर्थिक परिवर्तन को प्रेरित किया.
डॉ. मनमोहन सिंह ने इस बजट में विदेशी कंपनियों को देश में अपना व्यापार जमाने के लिए एंट्री की इजाजत दी. साथ ही कई नियमों में बदलाव भी किया गया. 1991 को ऐतिहासिक बजट वाला साल भी कहा जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस बजट से देश की इकोनॉमिक ग्रोथ की रफ्तार को तेज करने का काम किया गया. मनमोहन सिंह ने इस बजट में लाइसेंसी राज को खत्म किया था और आर्थिक उदारीकरण के युद की शुरुआत की थी.
मनमोहन सिंह द्वारा पेश किए गए आर्थिक सुधारों ने कंपनी कानून और व्यापार व्यवहार अधिनियम (MRTP) सहित कई कानूनों को उदार बना दिया. 1991 में विदेशी मुद्रा भंडार संकट का सामना करते हुए नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली सरकार ने तीन परिवर्तनकारी आर्थिक सुधार – वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण पेश किए थे.
1990 में इकोनॉमी की हालत खराब थी. देश तमाम मोर्चे पर जूझ रहा था. उस दौरान मनमोहन सिंह आर्थिक उदारीकरण की रूपरेखा लेकर आए. भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व बाजार से जोड़ने के बाद उन्होंने आयात और निर्यात के नियम भी सरल किए. इससे लाइसेंस और परमिट गुजरे वक्त की बात होकर रह गई. घाटे में चलने वाले पीएसयू के लिए अलग से नीतियां बनाईं और अर्थव्यवस्था पटरी पर लौटी.
डॉ. मनमोहन सिंह ने 2004 से 2014 तक प्रधानमंत्री पद का कार्यभार संभाला था. वो सिर्फ देश के प्रधानमंत्री ही नहीं रहे हैं, बल्कि कई अहम पदों पर भी काबिज रहे.
पूर्व पीएम राजीव गांधी की सरकार में वो 1985 से 1987 तक भारतीय योजना आयोग के प्रमुख के पद पर भी रहे. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के साथ भी काम किया. इसके अलावा वह 1982 से 1985 तक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर भी रहे. इस दौरान उन्होंने बैंकिंग क्षेत्र में कई सुधार किए. जिसके लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है.
साल 1987 से 1990 तक डॉ. मनमोहन सिंह ने संयुक्त राष्ट्र में दक्षिण आयोग के महासचिव के तौर पर जिम्मा संभाला. मनमोहन सिंह साल 1991 में असम से राज्यसभा सदस्य निर्वाचित हुए. वह साल 1995, 2001, 2007 और 2013 में फिर उच्च सदन के सदस्य रहे. साल 1998 से 2004 तक जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार थी, तब मनमोहन सिंह राज्यसभा में विपक्ष के नेता थे.
मनमोहन सिंह को साल 1987 में भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से नवाजा गया. इसके अलावा उन्हें 1995 में जवाहरलाल नेहरू बर्थ सेंटेनरी अवॉर्ड ऑफ द इंडियन साइंस कांग्रेस,1993 में वर्ष के सर्वश्रेष्ठ वित्त मंत्री के लिए एशिया मनी अवॉर्ड, 1956 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी का एडम स्मिथ पुरस्कार जैसे कई सम्मान से सम्मानित किया गया. इसके साथ ही उन्हें कैम्ब्रिज और ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी सहित कई विश्वविद्यालयों की ओर से मानद उपाधियां दी गई.
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