चीन और ताइवान दो विपरीत ध्रुवों पर खड़े नजर आते हैं. जहां ताइवान एक लोकतंत्र है, वहीं चीन एक साम्यवादी देश है. हाल के दिनों में चीन ने ताइवान पर दबाव बढ़ा दिया है.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने साल का अंत ताइवान पर धमकी के साथ किया है. उन्होंने कहा कि चीन के साथ “पुन: एकीकरण को कोई नहीं रोक सकता” है. उन्होंने नए साल की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए यह कहा. बीजिंग लंबे वक्त से यह कहता रहा है कि पूरा ताइवान चीन का हिस्सा है. उसने ताइवान के चारों ओर वायु सेना और नौसेना अभ्यास के जरिए एक बार फिर बिलकुल साफ और मजबूत संकेत दिया है.
चीन और ताइवान दो विपरीत ध्रुवों पर खड़े नजर आते हैं. जहां ताइवान एक लोकतंत्र है, वहीं चीन एक साम्यवादी देश है. हाल के दिनों में चीन ने ताइवान पर दबाव बढ़ा दिया है और इस देश को दुनिया के अन्य इलाकों से अलग करने के लिए हर संभव कोशिश की है.
चीन बढ़ा रहा है ताइवान पर दबाव
मई में ताइवान के लोकतांत्रिक चुनाव के बाद राष्ट्रपति लाई चिंग-ते के सत्ता में आने के बाद से चीन ने भी तीन दौर के प्रमुख सैन्य अभ्यास किए हैं. चुनाव से नाराज बीजिंग ने कहा है कि वह ताइवान को अपने नियंत्रण में लाने के लिए बल प्रयोग नहीं छोड़ेगा. इस महीने की शुरुआत में चीन ने सैन्य अभ्यास किया था. ताइवान के अधिकारियों के अनुसार, यह पिछले कुछ सालों में सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास था. हालांकि बीजिंग इस युद्धाभ्यास पर चुप रहा है. चीन ने कई बार ताइवान के हवाई क्षेत्र का भी उल्लंघन किया है.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने नए साल के भाषण में कहा, “ताइवान जलडमरूमध्य के दोनों किनारों के चीन के लोग एक ही परिवार हैं. कोई भी हमारे रक्त संबंधों को नहीं तोड़ सकता है और न ही कोई मातृभूमि के पुनर्मिलन की ऐतिहासिक प्रवृत्ति को रोक सकता है.” जिनपिंग की टिप्पणियां ऐसे महत्वपूर्ण वक्त पर आई हैं, जब डोनाल्ड ट्रंप तीन सप्ताह बाद अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभालने वाले हैं.
अमेरिका का करीबी है ताइवान
ताइवान, चीन और अमेरिका के बीच विवाद का प्रमुख बिंदु है. साथ ही एशिया में अमेरिका का रणनीतिक सहयोगी भी है. वहीं अमेरिका, ताइवान का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता भी है. साम्यवाद पर लोकतंत्र की रक्षा करना भी अमेरिका का सैद्धांतिक निर्णय रहा है और रूस के साथ शीतयुद्ध पूरी तरह से इसी सैद्धांतिक रुख पर आधारित था.
चीन और ताइवान को ताइवान जलडमरूमध्य अलग करता है. यह एक जलमार्ग है जो दोनों देशों के बीच दक्षिण चीन सागर को पूर्वी चीन सागर से जोड़ता है.
कुछ वक्त लोकतांत्रिक राष्ट्र था चीन
कम्युनिस्ट पार्टी के अध्यक्ष माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्ट क्रांति से पहले चीन कुछ वक्त एक लोकतांत्रिक राष्ट्र था. उस वक्त रिपब्लिक ऑफ चाइना (अब ताइवान का आधिकारिक नाम) के नाम से पहचाने जाने वाले क्षेत्र में तीन राष्ट्रपति थे. 1912 में मांचू के नेतृत्व वाले किंग राजवंश के पतन के बाद रिपब्लिक ऑफ चाइना संप्रभु राष्ट्र बन गया और इसी के साथ चीन में शाही साम्राज्य समाप्त हो गया.
1912 और 1949 के बीच चीन ने चार सरकारों को देखा. 1912 में अस्थायी या अंतरिम सरकार, 1912 से 1928 तक बेयांग सरकार, जिसका नेतृत्व सेना ने किया; कुओमितांग के नेतृत्व में 1925 से 1948 तक राष्ट्रवादी सरकार और 1948 से 1949 तक संवैधानिक सरकार. चीन में गृहयुद्ध के कारण संवैधानिक सरकार को उखाड़ फेंका गया. चेयरमैन माओ के नेतृत्व में कम्युनिस्ट पार्टी ने सरकार को उखाड़ फेंका, जो बाद में तिब्बत और शिनजियांग तक भी फैल गई. इसके बाद संवैधानिक सरकार के नेताओं को ताइवान भागना पड़ा.
ताइवान भागने के लिए मजबूर होना पड़ा
1920 के दशक के मध्य और 1930 के दशक के अंत के बीच कुओमितांग ने मूल रूप से चीन (वर्तमान में तिब्बत के कब्जे वाले राष्ट्र के बिना और फिर पश्चिम में शिनजियांग [पूर्वी तुर्किस्तान गणराज्य का हिस्सा) और पूर्व में सोवियत नियंत्रित मंचूरिया के क्षेत्रों – शेष रूस और मंगोलिया को वर्तमान उत्तर कोरिया से अलग करने वाला क्षेत्र) को एकीकृत किया था. रूस-जापान युद्ध के कारण 1905 में रूस ने दक्षिणी मंचूरिया जापान को सौंप दिया और इसके दशकों बाद 1931 में जापान ने पूरे मंचूरिया पर कब्जा कर लिया. इसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान ने चीन पर आक्रमण किया.
कुओमितांग का नेतृत्व चियांग काई-शेक ने किया था, जो माओत्से तुंग की क्रांति तक रिपब्लिक ऑफ चाइना के राष्ट्रपति चुने गए, जिससे उन्हें और उनकी कुओमितांग पार्टी को 1948 में ताइवान भागने के लिए मजबूर होना पड़ा और 1949 में निर्वासित सरकार की स्थापना हुई. 1971 तक चियांग काई-शेक की सरकार को चीन की वैध सरकार के रूप में मान्यता दी गई. यह चियांग काई-शेक का रिपब्लिक ऑफ चाइना (ताइवान) था, जिसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मूल रूप से स्थायी सीट मिली थी.
ताइवान आज एक लोकतंत्र है, लेकिन पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के दबाव के कारण दुनिया के कई देशों के इसके साथ राजनयिक संबंध नहीं हैं, जिसका नेतृत्व 1949 से चेयरमैन माओ की पार्टी कर रही थी और अब जिसका नेतृत्व शी जिनपिंग कर रहे हैं.
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