अबू मोहम्मद अल-जुलानी ने असद परिवार की 50 साल पुरानी हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंका है. आइये जानते है कि कौन है अबू मोहम्मद अल जुलानी?
Syria Civil War : सीरिया की जंग खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी, लेकिन अचानक अबू मोहम्मद अल-जुलानी (Abu Mohammad Al Julani) ने ऐसा दांव खेला कि पूरा खेल ही पलट गया. दमिश्क का पतन हुआ, बशर अल-असद का राज खत्म हुआ और अब जुलानी सीरिया का चेहरा बनता दिख रहा है, लेकिन ये जुलानी कौन है? क्या ये वही है जिसने कभी अल-कायदा के झंडे तले लड़ाई लड़ी थी? और अब ये नेता बनने की कोशिश कर रहा है? जुलानी का असली चेहरा क्या है? क्या वो एक कट्टरपंथी आतंकी है, या एक चालाक नेता जो अपनी रियाया को एक नई पहचान दिलाना चाहता है? चलिए, समझते हैं कि अबू मोहम्मद अल-जुलानी की कहानी क्या है और कैसे वो सीरिया के पॉलिटिकल नक्शे पर सबसे बड़ा नाम बन चुका है.
कुछ दिन पहले, अबू मोहम्मद अल-जुलानी अलेप्पो के ऐतिहासिक किले की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए नजर आया. खाकी कपड़ों में, बिना हथियारों वाले गार्ड्स के साथ. पीछे हजारों समर्थकों की भीड़. ये तस्वीर उस जिहादी नेता की थी जिसने हाल ही में सीरिया के सबसे बड़े शहर अलेप्पो को अपने कब्जे में लिया था और कुछ ही दिनों में हमा, होम्स और आखिरकार दमिश्क पर भी कब्जा कर लिया. असद परिवार की 50 साल पुरानी हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंका, लेकिन 13 साल से जमी हुई लड़ाई में ये अचानक कैसे हुआ? दरअसल, असद की सेना का हाल पहले ही खस्ता था. रूस और ईरान के सपोर्ट के बावजूद उनकी सेना बिखर गई, लेकिन जुलानी ने सिर्फ जंग पर फोकस नहीं किया. उसने सालों से हर कदम सोच-समझकर उठाया था.
जुलानी का ‘जुल्म के खिलाफ’ लड़ने का फैसला
1982 का साल था. सीरिया की राजधानी दमिश्क के एक मिडिल-क्लास सुन्नी परिवार में अहमद हुसैन अल-शारा उर्फ अबू मोहम्मद अल जुलानी का जन्म हुआ. उसका परिवार एक मिडिल-क्लास अरब परिवार था. पिता एक इंजीनियर थे और परिवार सऊदी अरब की अरामको कंपनी के करीब रहता था. सऊदी अरब में बिताया शुरुआती बचपन जुलानी के अंदर धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों की गहरी छाप छोड़ गया. वो पढ़ाई में अच्छा था और अपने साथियों के बीच एक होशियार लड़के के तौर पर जाना जाता था. लेकिन कुछ ऐसा था, जो उसे बाकी बच्चों से अलग बनाता था. यह था उसकी गहरी धार्मिकता और इतिहास में रुचि, लेकिन उसके परिवार पर सीरिया की राजनीति का गहरा असर था.
जुलानी जब पैदा हुआ, उस वक्त सीरिया की राजनीति उथल-पुथल में थी. बशर अल-असद के पिता हाफिज अल-असद की सरकार ने मुस्लिम ब्रदरहुड के खिलाफ 1982 में होम्स और हमा में एक बड़ा नरसंहार किया था. हजारों लोगों की मौत हुई, और इसने सीरिया की धार्मिक और राजनीतिक धारा को हमेशा के लिए बदल दिया. यही वो वक्त था जब जुलानी के परिवार और उनके जैसे कई अन्य सुन्नी मुसलमानों के बीच असद सरकार के खिलाफ गुस्सा पैदा हुआ.
1990 के दशक में जुलानी का परिवार दमिश्क लौटा. जुलानी का जीवन बदलने वाला था. 2000 में, दूसरा इंतिफ़ादा यानी फिलिस्तीन का विद्रोह शुरू हुआ. इसने जुलानी के दिल और दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी. उस वक्त वो महज़ 17-18 साल का था. उसने फैसला किया कि वो ‘जुल्म के खिलाफ’ लड़ेगा.
जुलानी के विचारों को ‘कैम्प-बुका’ में मिली धार
फिर आया 2003. अमेरिका ने इराक पर हमला किया तो पूरे अरब जगत में गुस्से की लहर दौड़ गई. उस समय जुलानी 21 साल का था. उसने खुद को ‘सुन्नी मुस्लिमों’ की रक्षा करने वाले मुजाहिदीन के तौर पर देखने का फैसला किया. और जुलानी ने अपना बैग पैक किया. दमिश्क से बस पकड़ी और सीधे बगदाद पहुंच गया. लेकिन ये कोई साधारण सफर नहीं था. बगदाद में वो अमेरिकी फौज के खिलाफ लड़ने वाले विद्रोही गुटों में शामिल हो गया. इराक में जुलानी का नाम एक छोटे लड़ाके के तौर पर जाना जाने लगा. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. अमेरिकी फौज ने उसे पकड़ लिया और ‘कैम्प बुका’ में बंद कर दिया.
अब सवाल ये है कि कैम्प बुका क्या था? कैम्प बुका दक्षिणी इराक में एक अमेरिकी जेल थी, जहां ISIS, अल-कायदा और अन्य जिहादी गुटों के बड़े-बड़े नेता कैद थे. इस जेल को ‘आतंकवादियों का विश्वविद्यालय’ कहा जाता है. यहां पर जुलानी ने अपने दिमाग और अपने विचारों को और धारदार बनाया. उसने अल-कायदा के नेताओं के साथ अपने संबंध मजबूत किए, खासतौर पर अबू बक्र अल-बगदादी के साथ. उसने कुख्यात आतंकियों के साथ दोस्ती की और उनके प्लान सुने और एक नई विचारधारा विकसित की.
कट्टरपंथी से ज्यादा राष्ट्रवादी के रूप में पेश किया
2011 में सीरिया में बगावत शुरू हुई. अरब स्प्रिंग का असर सीरिया तक पहुंचा और जुलानी ने कैम्प बुका से रिहा होकर सीरिया लौटने का फैसला किया. उनके पास पैसे थे, लोग थे और एक मिशन था—अल-कायदा के लिए सीरिया में अपनी जगह बनाना. यहीं से उसकी असली यात्रा शुरू होती है. सीरिया लौटने के बाद जुलानी ने अल-कायदा के समर्थन से एक नए संगठन की नींव रखी. इस गुट का नाम था अल-नुसरा फ्रंट. इस गुट का मकसद साफ था, असद सरकार को गिराना और सीरिया में इस्लामिक शासन स्थापित करना. आत्मघाती हमलों से लेकर सीरियाई सेना पर घातक हमलों के जरिये अल-नुसरा फ्रंट ने पूरे देश में खौफ पैदा कर दिया.
जुलानी ने संगठन को ‘लोकल सीरियाई विद्रोह’ का चेहरा बनाना शुरू कर दिया, लेकिन जुलानी ने जल्द ही महसूस किया कि सिर्फ आतंक से वो अपना मिशन पूरा नहीं कर सकता. जुलानी ने अल-कायदा और ISIS से खुद को दूर कर लिया. 2013 में उसने अबू बक्र अल-बगदादी से दूरी बना ली. उसने खुद को एक “कट्टरपंथी से ज्यादा एक राष्ट्रवादी” के तौर पर पेश किया.
आतंक के सौदागर से राजनीतिक ताकत तक
अब जुलानी ने सिर्फ बंदूक और हिंसा का सहारा नहीं लिया. उसने सियासत की बिसात पर ऐसी चालें चलीं जो बड़े-बड़े नेता नहीं समझ सके. सीरिया के सियासी नक्शे पर बड़ा उलटफेर तब हुआ जब 2017 में जुलानी ने एक बड़ा कदम उठाया. उसने अपने संगठन को पूरी तरह से नया रूप दिया. उसने अपने गुट का नाम बदलकर हयात तहरीर अल-शाम यानी HTS रख दिया. इस बदलाव का मकसद था—गुट को एक आतंकवादी संगठन से एक ‘राजनीतिक ताकत’ में बदलना. उसने सीरिया के विद्रोही इलाकों में स्कूल, अस्पताल और लोकल प्रशासन की स्थापना की.
गुट के कट्टरपंथी लोगों को बाहर कर दिया. एक तरह से उसने अपने संगठन को ‘इस्लामिक’ के साथ-साथ ‘प्रोग्रेसिव’ भी दिखाने की कोशिश की. HTS ने रूस और पश्चिमी देशों के साथ सीधा संवाद शुरू किया. जुलानी ने ये संदेश दिया कि वो अब सिर्फ एक ‘आतंकी’ नहीं बल्कि एक ‘राजनीतिक नेता’ है. फिर आई वो ऐतिहासिक तारीख—अलेप्पो के पतन की.
जुलानी ने जब अलेप्पो का किला फतह किया, तो ये सिर्फ एक जीत नहीं थी, बल्कि एक इशारा था कि अब असद सरकार की गिनती के दिन बचे हैं. फिर आई रविवार की सुबह. दमिश्क का पतन हुआ. असद सरकार, जिसे रूस और ईरान जैसे ताकतवर देश समर्थन दे रहे थे, वो महज़ कुछ घंटों में ढेर हो गई. ये कोई चमत्कार नहीं था. ये थी जुलानी की ‘कूटनीति’.
जुलानी आतंकी है या एक नेता?
उसने सिर्फ हथियारों से लड़ाई नहीं लड़ी. उन्होंने वहां की जनजातियों से बात की, अल्पसंख्यकों का भरोसा जीता. और सबसे चौंकाने वाली बात—उन्होंने रूस से ये तक कहा कि अगर वो सीरिया को फिर से खड़ा करना चाहते हैं, तो HTS उनके साथ मिलकर काम कर सकता है. हालांकि अब सवाल ये उठता है कि क्या जुलानी एक आतंकी है या एक नेता? उसके बारे में कई विरोधाभासी बातें हैं. कुछ लोग कहते हैं कि वो एक कट्टरपंथी हैं. वहीं HTS के बदले स्वरूप को देखकर कुछ लोग उसे सीरिया का ‘भविष्य’ भी मानते हैं. लेकिन एक बात तो साफ है—जुलानी ने सियासत और जंग दोनों का ऐसा मेल तैयार किया है जो शायद ही पहले किसी ने देखा हो.
अब देखना ये होगा कि क्या जुलानी और पश्चिमी देशों के बीच संबंध कैसे होते हैं? ये सवाल इसलिए क्योंकि अमेरिका ने HTS को आतंकी संगठन करार दिया है. और जुलानी के सिर पर 10 मिलियन डॉलर (यानी लगभग 83 करोड़ रुपये) का इनाम भी रखा हुआ है. इससे जुलानी के पश्चिमी देशों से रिश्ते बनाने और सीरिया का नेतृत्व करने के सपनों में मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं. जुलानी एक ऐसा शख्स है जिसने अपनी रणनीति, सूझ-बूझ और चालाकी से सीरिया का सियासी नक्शा पलट दिया. लेकिन उसका आगे का सफर कैसा रहेगा? ये तो वक्त ही बताएगा.
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