क्या शिंदे और फडणवीस में सबकुछ ठीक चल रहा है? जानिए महाराष्ट्र की राजनीति की पूरी कहानी​

 महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे का यह बयान राज्य की राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है. बीते पंद्रह दिनों में, शिंदे ने दो बार ऐसा बयान दिया है. हालांकि उनकी पार्टी शिव सेना का कहना है कि शिंदे का निशाना उनके प्रतिद्वंद्वी उद्धव ठाकरे हैं, लेकिन राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि शिंदे की कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना है

महाराष्ट्र की महायुति सरकार में चल रही अंदरूनी कलह अब खुलकर सामने आ गयी है. राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से उपमुख्यमंत्री एकनाथ फडणवीस पहले से ही नाराज चल रहे थे. अब कृषि उत्पादों की खरीद फरोख्त के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी के मुद्दे पर फडणवीस सरकार की ओर से लिये गये फैसले ने शिंदे के जले पर नमक का काम किया है. महाराष्ट्र में महायुति की सरकार ढाई महीने पहले ही बनी है और तबसे लगातार शिंदे और फडणवीस के बीच तनातनी की खबरें राज्य के सियासी गलियारों में छायी हुईं हैं.

पूरा मामला समझिए

महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे का यह बयान राज्य की राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गया है. बीते पंद्रह दिनों में, शिंदे ने दो बार ऐसा बयान दिया है. हालांकि उनकी पार्टी शिव सेना का कहना है कि शिंदे का निशाना उनके प्रतिद्वंद्वी उद्धव ठाकरे हैं, लेकिन राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि शिंदे की कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना है. उनके इस बयान को मुख्यमंत्री फडणवीस के साथ चल रही मौजूदा तनातनी के संदर्भ में देखा जा रहा है.

इस खींचतान के सिलसिले में अब नया अध्याय जुड गया है कृषि उत्पाद को लेकर शिंदे सरकार के कार्यकाल में शुरू की गयी एमएसपी योजना के रूप में.फडणवीस सरकार ने किसानों से फसल खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) योजना में अनियमितताएं पायीं हैं  जिसे पिछली शिंदे सरकार द्वारा चलाया गया था. इसमें नोडल एजेंसियों की नियुक्ति में भ्रष्टाचार के आरोप भी शामिल हैं.

इसके अलावा जांच के बिना एजेंसियों की नियुक्ति और पक्षपात के आरोप भी लगाए गए हैं. इनमें से कुछ एजेंसियों का नेतृत्व तत्कालीन सत्तासीम राजनेताओं ने किया था.फडणवीस ने अब योजना पर विस्तृत नीति तैयार करने के लिए एक पैनल के गठन का आदेश दिया है.यह फैसला शिंदे सेना को अखर रहा है क्योंकि इससे बतौर मुख्यमंत्री शिंदे का कार्यकाल दागी नजर आता है, हालांकि सार्वजनिक तौर पर उनकी पार्टी का कहना है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ फडणवीस सरकार की जांच का वो समर्थन करती है.

इस जांच ने एक तरफ जहां शिंदे वाली शिव सेना को असहज किया है तो वहीं दूसरी तरफ विपक्षी दल शिव सेना (यूबीटी) को चुटकी लेना का एक मौका दे दिया.

(पिछले साल नवंबर में चुनाव नतीजे आने के बाद से ही शिंदे की महायुति गठबंधन में नाराजगी की खबरें सामने आ रही हैं.सरकार बनने के बाद शायद ही कोई सप्ताह बीता हो जब शिंदे की नाराजगी की खबरें न आयीं हों.हालांकि भाजपा सरकार विधानसभा चुनावों में अपने संख्याबल के कारण सुरक्षित है, और शिंदे की नाराजगी इसकी स्थिरता पर असर नहीं डालेगी, लेकिन गठबंधन के दो घटक दलों के बीच संघर्ष अच्छी तस्वीर नहीं प्रस्तुत कर रहा है.

शिव सेना और बीजेपी के बीच सबकुछ ठीक नहीं है, इसका संकेत देती दूसरी तस्वीर देखनवे मिली ठाणे में.ठाणे एकनाथ शिंदे का गढ है और वे यहां से विधायक भी हैं, लेकिन बीजेपी से मंत्री गणेश नाईक ने ठाणे में जनता दरबार लगा कर शिंदे को असहज कर दिया.अब बदले में शिंदे सेना से मंत्री प्रताप सरनाईक बीजेपी के गढ पालघर में जनता दरबार लगाएंगे.
 

राजनीति में हमेशा किसी एक का वर्चस्व नहीं रहता.समय बदलता रहता है.पहले…मै भी पंद्रह सालों तक इस जिले का प्रभारी मंत्री रह चुका हूं.

शिंदे की नाराजगी के कई कारण रहे.पहले वे मुख्यमंत्री पद न मिलने के कारण नाराज हुए, फिर गृह मंत्रालय न मिलने से खफा हो गये.इसके बाद जब प्रभारी मंत्रियों की लिस्ट जोरी हुई तो नासिक और रायगड के प्रभारी मंत्रियों का पद अपनी पार्टी को न मिलने से नाराज हो गये.फडणवीस ने बतौर शिंदे के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान लिये गये कई फैसलों को पलट दिया और कुछ फैसलों पर अनियमितता के शक पर जांच बिठा दी.शिव सेना के हिस्से में आये मंत्रालयों में भी फडणवीस ने अपने पसंदीदा अफसरों की नियुकित कर दी जो शिंदे सेना को अखर गया.

शिव सेना के कार्यकर्ताओं में बढ़ती भावना है कि पार्टी को गठबंधन में न्याय नहीं मिल रहा है.शिंदे महत्वपूर्ण बैठकों और सरकारी समारोहों में अनुपस्थित रहकर लगातार अपनी नाराजगी प्रकट कर रहे हैं.आरोप ये भी लग रहा है कि शिंदे स्वतंत्र रूप से अधिकारियों और मंत्रियों के साथ बैठक करके एक “समानांतर सरकार” चलाने का प्रयास कर रहे हैं.रौनक 

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