अधिकारियों के अनुसार, साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय ने एक शाखा परिसर खोलने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था, जिसे यूजीसी की स्थायी समिति ने नियमों के अनुसार आशय पत्र जारी करने के लिए मंजूरी दे दी है. समिति में भारत और विदेश के जाने-माने शिक्षाविद शामिल हैं.
ब्रिटेन का साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत भारत में अपना परिसर स्थापित करने वाला पहला विदेशी विश्वविद्यालय बन गया है. यह घोषणा केंद्र सरकार ने बृहस्पतिवार को की. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने 2023 में भारत में विदेशी उच्च शिक्षण संस्थानों के परिसरों की स्थापना और संचालन विनियमों की घोषणा की थी. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यहां एक कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के प्रतिनिधियों को आशय पत्र (एलओआई) सौंपा.
साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय ने एक बयान में कहा कि उसका दिल्ली-एनसीआर परिसर देश में शिक्षा, अनुसंधान और ज्ञान के आदान-प्रदान तथा उद्यम गतिविधियों को बढ़ावा देगा.
अधिकारियों के अनुसार, साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय ने एक शाखा परिसर खोलने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था, जिसे यूजीसी की स्थायी समिति ने नियमों के अनुसार आशय पत्र जारी करने के लिए मंजूरी दे दी है. समिति में भारत और विदेश के जाने-माने शिक्षाविद शामिल हैं.
यूजीसी अध्यक्ष जगदीश कुमार ने कहा, ‘साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के भारत परिसर द्वारा प्रदान की जाने वाली डिग्रियां मेजबान विश्वविद्यालय के समान ही होंगी. भारत में साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के शाखा परिसर में पेश किए जाने वाले कार्यक्रमों में समान शैक्षणिक और गुणवत्ता मानक होंगे.’
उन्होंने कहा, ‘साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के भारतीय परिसर में शैक्षणिक कार्यक्रम जुलाई 2025 में शुरू होने की उम्मीद है. पेश किए जाने वाले पाठ्यक्रम बिजनेस एंड मैनेजमेंट, कंप्यूटिंग, कानून, इंजीनियरिंग, कला एवं डिजाइन, जैव विज्ञान और जीवन विज्ञान पर केंद्रित विषयों में होंगे.’
ऑस्ट्रेलिया का डीकिन विश्वविद्यालय और वॉलोन्गॉन्ग विश्वविद्यालय ने गुजरात के गिफ्ट सिटी में पहले ही अपने परिसर स्थापित कर लिए हैं. हालांकि, साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय यूजीसी मानदंडों के तहत भारत में कैंपस (परिसर) स्थापित करने वाला पहला विदेशी विश्वविद्यालय होगा. साउथेम्प्टन यूनिवर्सिटी ब्रिटेन में अग्रणी रसेल ग्रुप ऑफ यूनिवर्सिटीज का संस्थापक सदस्य है.
विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि यह घटनाक्रम भारत के शैक्षिक मानकों को उच्चतम वैश्विक स्तर तक बढ़ाने और भारत-ब्रिटेन के बीच शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग पर कदम को दर्शाता है. उन्होंने कहा, ‘मुझे विश्वास है कि इस तरह के प्रयास हमारे युवाओं को काम के लिए तैयार करेंगे और वैश्विक समझ और सहयोग की भावना को बढ़ावा देंगे.’ मंत्री ने इस पहल पर प्रकाश डाला कि इससे शैक्षिक क्षेत्र में ‘ब्रांड इंडिया’ की मजबूत छाप स्थापित करने में मदद मिलेगी.
जयशंकर ने कहा कि भारत आज शिक्षा को देश और दुनिया के बीच अधिक गहन जुड़ाव को गति देने के लिए एक ‘महत्वपूर्ण साधन’ के रूप में देखता है.
केंद्रीय मंत्री जयशंकर ने कहा, ‘आज का कार्यक्रम भारत और ब्रिटेन के बीच मजबूत और बहुआयामी द्विपक्षीय संबंधों का प्रमाण भी है… इस प्रगति के केंद्र में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 है.’ उन्होंने कहा कि एनईपी 2020 एक ऐसी नीति है जो ‘अंतरराष्ट्रीयकरण की वकालत करती है’ और इसका उद्देश्य भारत को ‘शिक्षा में वैश्विक केंद्र’ के रूप में स्थापित करना है.
जयशंकर ने कहा कि यह महज एक नीति नहीं है, बल्कि यह वास्तव में भारत में शिक्षा के भविष्य के लिए एक दृष्टिकोण है, जो ‘हमारे मानकों को उच्चतम वैश्विक स्तर तक बढ़ाने की आकांक्षा रखता है.’ उन्होंने कहा कि शिक्षा में सहयोग ‘भारत-ब्रिटेन खाका 2030 का एक प्रमुख पथ’ रहा है. उन्होंने कहा, ‘हमने दोनों देशों के बीच शैक्षणिक योग्यता की पारस्परिक मान्यता पर समझौता किया है.” दोनों सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से घोषित युवा पेशेवर योजना (वाईपीएस) दोनों देशों के युवा स्नातकों को एक-दूसरे के संस्थानों से सीखने और लाभ उठाने का अनूठा अवसर प्रदान करती है.
केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस घटनाक्रम को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी), 2020 में परिकल्पित ‘स्वदेश में अंतरराष्ट्रीयकरण’ के लक्ष्य को साकार करने की दिशा में एक कदम बताया.
उन्होंने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘मुझे खुशी है कि विश्व स्तर पर प्रसिद्ध कई उच्च शिक्षा संस्थान (एचईआई) शीर्ष भारतीय संस्थानों के साथ बहुआयामी सहयोग के साथ-साथ भविष्य के वैश्विक शिक्षा और प्रतिभा केंद्र के रूप में भारत की क्षमता का दोहन करने के लिए गहरी रुचि दिखा रहे हैं.’
मंत्री ने कहा, ‘भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों और विदेशों में भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों के परिसरों की स्थापना केवल शैक्षिक अवसरों का विस्तार करने के बारे में नहीं है, यह अनुसंधान, ज्ञान के आदान-प्रदान और वैश्विक सहयोग का एक जीवंत तंत्र बनाने के बारे में है. विभिन्न देशों के शैक्षणिक संस्थानों की जिम्मेदारी है कि वे वैश्विक लोकाचार वाले ‘वैश्विक नागरिक’ तैयार करें जो वैश्विक चुनौतियों का समाधान प्रदान कर सकें.’
साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के अध्यक्ष और कुलपति मार्क ई. स्मिथ ने कहा कि भारत के साथ जुड़े बिना 21वीं सदी में कोई भी विश्वविद्यालय वास्तव में वैश्विक नहीं हो सकता है.
उन्होंने कहा, ‘‘हमारा इरादा एक ऐसा परिसर स्थापित करना है जो शिक्षा, शोध और ज्ञान के आदान-प्रदान तथा उद्यम में साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय की विश्वस्तरीय गतिविधियों को एक साथ लाकर भारत और विश्वविद्यालय को सामाजिक मूल्य और आर्थिक प्रभाव प्रदान करे, साथ ही उभरती वैश्विक महाशक्ति भारत की सभी प्रतिभाओं को भी साथ लाए.”
स्मिथ ने कहा, ‘‘इस नए परिसर के माध्यम से, साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय भारत सरकार के परिवर्तनकारी एजेंडे के एक महत्वपूर्ण तत्व को पूरा करने में मदद करेगा, तथा भारतीय युवाओं की क्षमता, प्रतिभा और क्षमताओं का दोहन करने में अपनी भूमिका निभाएगा.”
विश्वविद्यालय के उपाध्यक्ष एंड्रयू एथरटन ने कहा कि वे विशेषज्ञ और हस्तांतरणीय कौशल वाले विश्वस्तरीय स्नातक तैयार करेंगे.
एथरटन ने कहा, ‘साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय दिल्ली-एनसीआर (परिसर) भारत में पहला व्यापक अंतरराष्ट्रीय परिसर होगा. यह अकादमिक सहयोग को बढ़ावा देगा और भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली में एक अंतरराष्ट्रीय आयाम लाएगा, जिससे देश में शीर्ष 100 डिग्री के लिए अध्ययन के अवसर खुलेंगे.’
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