चीन-पाक को क्यों लगी मिर्ची? जानिए तीसरे देश में तालिबान और मालदीव से भारत की बातचीत के मायने​

 अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे को 3 साल हो चुके हैं. अभी तक तालिबानी हुकूमत को किसी भी देश से डिप्लोमेटिक मान्यता नहीं मिली है. 2021 के बाद से भारत सरकार भी लगातार तालिबान से संपर्क बनाए हुए है, लेकिन उसने भी डिप्लोमेटिक मान्यता नहीं दी है.

भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने बुधवार को दुबई में तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी के साथ हाई लेवल मीटिंग की. यह किसी भारतीय विदेश सचिव और तालिबान के किसी सीनियर अधिकारी के बीच पहली आधिकारिक रूप से स्वीकृत बैठक थी. अफगानिस्तान ने भारत को अपना अहम क्षेत्रिय पार्टनर बताया है. यह मीटिंग ऐसे समय में हुई है, जब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के संबंध बेहद तनावपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं. 

अगस्त 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने के बाद पहली बार इतनी अहम बैठक हुई है. भारत ने तालिबान की सरकार को मान्यता नहीं दी है, लेकिन तालिबान सरकार के साथ रिश्ते बना रखे हैं. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि किसी तीसरे देश में जाकर भारत तालिबान के साथ बातचीत क्यों कर रहा है? पाकिस्तान और अफगानिस्तान में चल रही तनातनी के बाद तालिबान के साथ भारत की बातचीत के क्या मायने हैं-

दरअसल, हाल के दिनों में तालिबान और पाकिस्तान के रिश्ते बहुत बिगड़े हैं. दोनों तरफ से एक-दूसरे पर हमले हुए हैं. ऐसे में भारत के लिए अफगानिस्तान में अपनी मौजूदगी फिर से मजबूत करने का बढ़िया मौका है. खास कर तब जब बैठक के दौरान तालिबान पक्ष ने भारत की सुरक्षा चिंताओं को माना. 

क्या था मीटिंग का एजेंडा?
इस मीटिंग का एजेंडा काफी बड़ा था. मीटिंग में दो तरफ़ा राजनयिक रिश्ते, मानवीय सहायता, आपसी कारोबार, खेल और सांस्कृतिक रिश्ते, बिजनेस, ट्रेड, स्पोर्ट्स, कल्चरल रिलेशन, रीजनल सिक्योरिटी पर चर्चा हुई. इस मीटिंग में ईरान के चाबहार पोर्ट समेत अलग-अलग इलाकों में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने के मुद्दे पर भी चर्चा की गई.

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अफगान मंत्री ने जताया आभार
इस बीच अफगान मंत्री ने संकट के समय मदद करने के लिए भारत का शुक्रिया अदा किया. जबकि भारत की तरफ से कहा गया कि वह आने वाले वक्त में भी अफगान लोगों की विकास से जुड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार है.

विदेश सचिव ने सांस्कृतिक संबंधों पर दिया जोर
भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने इस बात पर जोर दिया कि भारत अफगानिस्तान के साथ अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को बहुत ज्यादा महत्व देता है. दोनों देशों ने अपने स्पोर्ट्स रिलेशन को भी मजबूत करने पर सहमति जताई. खासकर क्रिकेट, जिसे दोनों देशों में काफी ज्यादा पसंद किया जाता है.

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे को 3 साल हो चुके हैं. अभी तक तालिबानी हुकूमत को किसी भी देश से डिप्लोमेटिक मान्यता नहीं मिली है. 2021 के बाद से भारत सरकार भी लगातार तालिबान से संपर्क बनाए हुए है, लेकिन उसने भी डिप्लोमेटिक मान्यता नहीं दी है.

कैसे हैं भारत और अफगानिस्तान के रिश्ते?
-भारत और अफगानिस्तान के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रिश्ते हमेशा से ही मजबूत रहे हैं. 
-भारत ने अफगानिस्तान की कई योजनाओं में करीब 3 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है. 
-अफगानिस्तान की नई संसद को भारत ने बनाया है. 
-कई बांधों और सड़कों का निर्माण भी कराया गया है. 
-भारत ईरान के चाबहार पोर्ट के निर्माण से जुड़ा हुआ है.

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भारत के लिए कितना अहम है चाबहार पोर्ट?
-ये पोर्ट भारत और अफगानिस्तान के कारोबारी रिश्तों के लिए भी बहुत ही अहम है, क्योंकि ये पाकिस्तान को बायपाल करके अफगानिस्तान तक पहुंचने के लिए वैकल्पिक रास्ता देता है. इससे अफगानिस्तान और दूसरे कुछ देशों के साथ कारोबार के लिए भारत को अपने पड़ोसी पाकिस्तान की तरफ नहीं देखना होगा.
-चाबहार पोर्ट के इस्तेमाल के लिए भारत को अमेरिकी प्रतिबंधों से छूट मिली थी, लेकिन अब ट्रंप के आने के पहले पाबंदियों की तलवार फिर लटक रही है. 

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चीन को भी मिलेगा जवाब
अफगानिस्तान में चीन भी लगातार अपनी नजर बनाए हुए है. तालिबान के आने के बाद से वो अफगानिस्तान का सबसे बड़ा सहयोगी बनकर उभरा है. चीन उन पहले देशों में से है, जिन्होंने काबुल में अपना राजदूत नियुक्त किया है. चीन की नजर अफगानिस्तान के कुदरती संसाधनों पर है. इसीलिए उसने वहां की कई परियोजनाओं में भारी निवेश किया है. ऐसे में अफगानिस्तान में बढ़ती चीनी गतिविधियों के लिहाज से भी भारत की वहां मौजूदगी काफी अहम है.

तालिबान के दोस्त से दुश्मन कैसे बना पाकिस्तान? 
दरअसल, बीते कुछ सालों से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्ते तनावपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं. पाकिस्तान का कहना है कि उसके देश में हुए कई आतंकवादी हमले अफगान धरती से किए गए हैं. वह काबुल पर विशेष तौर से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) को पनाह देने का आरोप लगा रहा है. जबकि अफगानिस्तान इस्लामबाद के तमाम आरोपों को खारिज करता रहा है. अब तालिबान-भारत की मुलाकात से पड़ोसी मुल्क को मिर्ची लगना लाजिमी है.

भारत ने की थी अफगानिस्तान पर पाकिस्तान के हमलों की निंदा
वैसे यह दूसरा मौका जब भारत और तालिबान की नजदीकियों का संकेत मिला है. इस हफ्ते की शुरुआत में ही नई दिल्ली ने अफगानिस्तान पर पाकिस्तान की हालिया एयर स्ट्राइक की निंदा की थी. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने सोमवार को कहा था, “हमने महिलाओं और बच्चों सहित अफगान नागरिकों पर हवाई हमलों की मीडिया रिपोर्टों पर ध्यान दिया है, जिसमें कई जानें चली गई हैं. हम निर्दोष नागरिकों पर किसी भी हमले की स्पष्ट रूप से निंदा करते हैं. अपनी आंतरिक नाकामियों के लिए अपने पड़ोसियों को दोषी ठहराना पाकिस्तान की पुरानी आदत है.”

अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया, “अफगानिस्तान की संतुलित और अर्थव्यवस्था-केंद्रित विदेश नीति के अनुरूप, इस्लामिक अमीरात का लक्ष्य एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय और आर्थिक भागीदार के रूप में भारत के साथ राजनीतिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत करना है.”

मालदीव ने भी टेके घुटने
वहीं, भारत के साथ लंबे समय से चल रही तनातनी के बाद आखिर मालदीव झुकता हुआ क्यों नजर आ रहा है? इंडिया आउट कैंपेन के बाद भारतीय सेलिब्रेटीज ने मालदीव का बॉयकॉट किया था. जिसके बाद इस देश को तगड़ा आर्थिक झटका लगा है. ऐसे में ये देश बैकफुट पर आ गया है. अब राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू और उनके मंत्री भारत की ओर दोस्ती का हाथ क्यों बढ़ा रहे हैं. पहले मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला खलील ने भारत का दौरा किया और मदद मांगी. अब वहां के रक्षा मंत्री भारत आए हैं. 

मालदीव के रक्षा मंत्री मोहम्मद घासन मौमून बुधवार (8 जनवरी) से 10 जनवरी तक भारत में हैं. बुधवार को उनकी रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) के साथ मुलाकात हुई. इस दौरान मोहम्मद घासन मौमून ने राजनाथ सिंह से हिंद महासागर में सहयोग की अपील की है. मालदीव और भारत की बढ़ती नजदीकी से चीन को भी तगड़ा झटका लगा है. अब देखना है कि तालिबान और मॉलदीव से भारत के बढ़ते रिश्ते पर चीन कौन सी चाल चलता है.

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