February 26, 2025
जाम ने फिर ले ली जान, कोटा में 3 साल के बच्चे की मौत, आखिर कब मिलेगी इससे निजात

जाम ने फिर ले ली जान, कोटा में 3 साल के बच्चे की मौत, आखिर कब मिलेगी इससे निजात​

सड़क पर एंबुलेंस को रास्ता देना जरूरी है. अगर कोई एंबुलेंस को रास्ता नहीं देता है तो उस पर जुर्माना हो सकता है. अगर मामला गंभीर हो तो सजा भी हो सकती है. एंबुलेंस को रास्ता नहीं देने पर 10,000 का चालान हो सकता है.

सड़क पर एंबुलेंस को रास्ता देना जरूरी है. अगर कोई एंबुलेंस को रास्ता नहीं देता है तो उस पर जुर्माना हो सकता है. अगर मामला गंभीर हो तो सजा भी हो सकती है. एंबुलेंस को रास्ता नहीं देने पर 10,000 का चालान हो सकता है.

यूं तो इंसान की जिंदगी में बहुत सारे गम हैं, लेकिन अब तो ट्रैफिक जाम भी एक बड़ी मुसीबत बनता जा रहा है. कोटा से करीब साठ किलोमीटर दूर एक सड़क पर लगी जाम एक तीन साल के बच्चे के लिए मौत का कारण बन गया. यूं तो जाम से बहुत सारी समस्याएं पैदा होती हैं, लेकिन जाम में किसी मरीज का फंस जाना, किसी एंबुलेंस का फंस जाना कितना भयावह हो सकता है, उसको आप कोटा के इस ट्रैफिक जाम, एक पिता की बेबसी, पुलिस वालों की संवेदनहीनता और 3 साल के एक मासूम की मौत से समझ सकते हैं. ये भी समझ सकते हैं कि ट्रैफिक जाम से जिंदगी का संग्राम कितना बड़ा है.

तीन साल का ये मासूम बच्चा बच सकता था, अगर ये जाम यमराज बनकर रास्ते में खड़ा नहीं हो गया होता.ये बच्चा बच सकता था, अगर जाम के बीच इंसानों के दिल में थोड़ी जगह होती और इस सड़क पर एक रास्ता खुल जाता.ये बच्चा बच सकता था, अगर पूरे तीन घंटे तक इस तरह जाम में ना फंसा होता.ये बच्चा बच सकता था, अगर इसके पिता की आंसुओं भरी गुहार को बेहरम पुलिस वाले ने सुन लिया होता.

कोटा से करीब 60 किलोमीटर दूर कोटा झालावाड़ एनएच 52 पर स्थित इस जगह को दरा नाल कहते हैं. यहां अक्सर जाम लग जाता है. मासूम बच्चा हरिओम बीमार था. परिजन उसे चेचट सरकारी हॉस्पिटल लेकर गए थे, जहां बच्चे की गंभीर हालत के कारण उसे कोटा रेफर कर दिया गया. सवालों के घेरे में पुलिस वाले भी हैं, इसीलिए पुलिस अब इस मामले की जांच करने की बात कर रही है.

यहां जाम के कारण पुलिस वाले चौबीसों घंटे तैनात रहते हैं, लेकिन आम लोगों के प्रति उनकी जिम्मेदारी और संवेदना का नकाब तीन साल के मासूम हरिओम की दुखद मौत ने उतार दिया है.

इस मौत ने कुछ सवाल भी खड़े किए हैं –

जहां रोज जाम लगता है, वहां इस पर काम क्यों नहीं होता?अगर एक सुरंग ही जाम की सबसे बड़ी वजह है तो इसका दूसरा उपाय क्या है?एंबुलेंस या कोई बीमार आदमी जाम में फंसता है तो उसको निकालने के लिए क्या कोई व्यवस्था या नियम नहीं होता?जब एक बच्चे की जान पर बन आई थी तो ट्रैफिक पुलिस कहां पर थी?एक मासूम की मौत का जिम्मेदार कौन है?

इन सवालों के जवाब में प्रशासन की नाकामियों का लंबा जाम लगा हुआ है.

एंबुलेंस को लेकर कानूनी व्यवस्था बहुत सख्त

सबसे अहम बात ये है कि सड़क पर एंबुलेंस को रास्ता देना जरूरी है. अगर कोई एंबुलेंस को रास्ता नहीं देता है तो उस पर जुर्माना हो सकता है. अगर मामला गंभीर हो तो सजा भी हो सकती है. एंबुलेंस को रास्ता नहीं देने पर 10,000 का चालान हो सकता है. कोई बार-बार ऐसे करता है, तो 6 महीने की सजा भी हो सकती है, लेकिन कानून की ये सख्ती सड़क पर पस्त नहीं पड़ी होती तो वो बच्चा बच सकता था.

दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों को छोडिए, अब छोटे-छोटे शहरों में भी बड़े-बड़े जाम लगने लगे हैं.

ट्रैफिक जाम का लोगों पर असर :-

ट्रैफिक जाम का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव ये है कि इससे प्रदूषण और ज्यादा बढ़ जाता है. एक तो वैसे ही रोड ट्रांसपोर्ट के कारण ही हमारे देश में 12 फीसदी प्रदूषण फैलता है. अगर जाम कम लगेंगे तो ये प्रदूषण की मात्रा भी कम होगी.दूसरा दुष्प्रभाव डीजल पेट्रोल की बर्बादी का है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में ट्रैफिक जाम के कारण ही प्रति दिन 40 हजार लीटर इंधन यानी डीजल और पेट्रोल बर्बाद होते हैं.तीसरा दुष्प्रभाव देश या राज्य या आपके शहर के आर्थिक नुकसान के रूप में आता है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक ही दिल्ली में रोजाना ट्रैफिक जाम के कारण 11 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान होता है.चौथा असर सीधे जिंदगी से जुड़ा है और वो है एंबुलेंस का फंस जाना. किसी बीमार व्यक्ति का फंस जाना. जैसा कि कोटा वाली स्टोरी में आपने देखा. इसीलिए एंबुलेंस के लिए तो हर हाल में एक अलग रास्ता होना चाहिए, ताकि किसी की जान से खिलवाड़ ना हो.पांचवा असर शारीरिक और मानसिक बीमारियों के रूप में भी दिख सकता है, क्योंकि लंबे समय तक जाम में फंसे रहने से इंसान चिड़चिड़ा होने लगता है.

देश के अलग-अलग शहरों में सुबह शाम अक्सर जाम लग जाता है. कानपुर जैसे कुछ शहर हैं जहां दिन दोपहर भी जाम से लोगों को दो-दो हाथ करने पड़ते हैं.

बिहार में पटना को हाजीपुर से जोड़ने वाले महात्मा गांधी सेतु पर चौबीसों घंटे ऐसे ही जाम लगा रहता है. कम से कम पांच घंटे तक तो आप को ऐसे ही खिसक खिसककर आगे बढ़ना पड़ता है. अब अगर इसमें कोई एंबुलेंस फंस जाए तो मरीज का भगवान ही मालिक है.

पटना के कई इलाकों में ट्रैफिक जाम की समस्या विकराल होती जा रही है, खासकर मेट्रो का काम जहां हो रहा है, वहां हाल सबसे बेहाल है. आप गूगल मैप से देखेंगे तो पटना में आपको जाम ही जाम मिलेगा. पटना तो बिहार की राजधानी है. बड़ा शहर है, शहर पर दबाव ज्यादा है, इसलिए जाम की समस्या है, लेकिन अब तो छोटे-छोटे शहरों में भी जाम लगने लगा है.

दरभंगा और जमुई जैसे छोटे शहरों में भी जाम से हाल बेहाल

बिहार के ही दरभंगा शहर को देखिए तो वो जाम के लिए बदनाम है. वहां रेलवे गुमटी गिरी तो फिर शहर के मुख्य दोनार चौक पर लंबा जाम लग जाता है. उसी तरह जमुई शहर में महासौडी चौक पर आए दिन जाम लग जाता है. मंगलवार को भी दर्जनों गाड़ियां फंस गई, जिससे लोग त्रस्त रहे. शहर के कचहरी चौक, खैरा मोड़, बोधवन तालाब चौक के इलाके में घंटों सड़क जाम रहता है.

उसी तरह चाहे झांसी हो या फिर उत्तर प्रदेश का कानपुर हो, जाम से सभी बेहाल हैं. कानपुर के बीचों-बीच घंटा घर चौराहे पर सुबह शाम इतना जाम लगता है कि आधे-आधे घंटे तक लोग परेशान रहते हैं. कभी-कभी तो दोपहर के समय भी भीषण जाम लग जाता है. उसी तरह शहर के जीटी रोड, रामादेवी चौराहा, जरीब चौकी, नौबस्ता बाईपास, VIP रोड पर भी जाम लगना आम बात हो गई है.

ट्रैफिक जाम से बचाव बेहद जरूरी

ट्रैफिक जाम की समस्या विश्वव्यापी है. हालांकि दुनिया के टॉप-20 ट्रैफिक जाम वाले शहरों में भारत के शहरों की बात करें तो इसमें बेंगलुरु सबसे ऊपर है, जो दुनिया में ट्रैफिक जाम के मामले में दूसरे नंबर पर है और जहां 63 फीसदी ट्रैफिक जाम की समस्या बनी रहती है. भारत में दूसरे नंबर पर पुणे है जो दुनिया में छठे नंबर पर आता है और जहां 57% ट्रैफिक जाम की समस्या है. वहीं नई दिल्ली बीसवें नंबर पर है और यहां भी 48% ट्रैफिक जाम रहता है.

NDTV India – Latest

Copyright © asianownews.com | Newsever by AF themes.