भारतीय बाजार में स्टारलिंक की एंट्री से जियो और एयरटेल जैसे बड़े घरेलू प्लेयर्स पर भी असर पड़ सकता है. कहा जा रहा है कि स्टारलिंक की भारतीय बाजार में मौजूदगी इन प्लेयर्स के लिए कॉम्पिटिशन को और बढ़ाएगी.
अमेरिका के नए राष्ट्रपति चुने जाने के बाद बुधवार को डोनाल्ड ट्रंप ने जब अपने समर्थकों संबोधित किया तो उस दौरान उन्होंने अपने दोस्त एलन मस्क और उनकी कंपनी का खास तौर पर जिक्र किया. उस दौरान ट्रंप ने मस्क को एक दिलचस्प इंसान और सुपर जिनियस बताया. ट्रंप ने अपने संबोधन में स्पेसएक्स स्टारलिंक का विशेष तौर पर उल्लेख किया था. उन्होंने कहा कि एलन मस्क की यह कंपनी दूरसंचार क्षेत्र की भी दिग्गज है, जो सैटेलाइट की मदद से धरती के सबसे दूरस्थ हिस्सों तक इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान करने की क्षमता के लिए जानी जाती है. नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने संबोधन के दौरान खास तौर पर इस साल की शुरुआत में अमेरिका के कुछ हिस्सों में आए तूफान हेलेन के बाद स्टारलिंक कैसे जीवनरक्षक साबित हुआ था, इसका जिक्र भी किया.
इन सब के बीच ट्रम्प के साथ मस्क की निकटता अब भारत में भी चर्चा का विषय बना हुआ है. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या स्टारलिंक भारती बाजार में प्रवेश करने को तैयार है? आपको बता दें कि मस्क पिछले कुछ समय से भारतीय बाजार में एंट्री के लिए तैयार दिख रही है, लेकिन यहां नियामकों (ट्राई) द्वारा तय किए गए नियम उनके लिए अड़चन साबित हो रहे हैं. भारत सरकार ने उपग्रह स्पेक्ट्रम आवंटित करने की योजना को लेकर जो हालिया घोषणा की और ट्रंप द्वारा मस्क की तारीफ करने के बाद, तो ऐसा लगता है कि अब भारत में स्टारलिंक की एंट्री अब कुछ समय की बात लग रही है.
कैसे अलग है स्टारलिंक ?
अगर बात स्टारलिंक की करें तो ये दूसरे नेटवर्क की तुलना में अलग है. हाई-स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए स्टारलिंक पृथ्वी के कम ऑरिबिट में हजारों सैटेलाइट का उपयोग करता है. ये तमाम सैटेलाइट रेडियो संकेतों के माध्यम से इंटरनेट डेटा प्रसारित करते हैं. वहीं, ग्राउंड स्टेशन परिक्रमा कर रहे सैटेलाइट को सिग्नल भेजते हैं और वे डेटा को उपयोगकर्ताओं तक वापस भेज देते हैं. इंटरनेट सेवा के इस रूप में मीलों तक फैले ओवरहेड या भूमिगत तारों की आवश्यकता नहीं होती है. कहा जा रहा है कि इससे शहरी क्षेत्रों में कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ेगा जहां पारंपरिक ब्रॉडबैंड इंटरनेट उपलब्ध है और उपयोगकर्ताओं के पास चुनने के लिए कई विकल्प हैं. स्टारलिंक दूरदराज के क्षेत्रों में इंटरनेट की सेवा पहुंचाने के लिए बेहद कारगार साबित हो सकता है. ये वो इलाके होते हैं जहां ऑप्टिकल फाइबर जैसी पारंपरिक सेवाएं नहीं हैं. 2019 में लॉन्च किए गए स्टारलिंक के पहले से ही दुनिया भर में 4 मिलियन से अधिक कस्टमर्स हैं. भारत जैसे देश में,ऐसी सेवा एक गेम-चेंजर साबित हो सकती है.
भारतीय बाजार में प्रवेश की तैयारी में एलन मस्क
एलोन मस्क 2021 से स्टारलिंक को भारतीय बाजार में लाने की कोशिश कर रहे हैं. यही वजह है कि स्पेसएक्स ने प्री-ऑर्डर आमंत्रित करना भी शुरू कर दिया था. लेकिन इसमें अड़चन उस वक्त खड़ी हुई जब केंद्र सरकार ने हस्तक्षेप किया और स्टारलिंक को पहले जरूरी नियम को पूरा करने की बात कही. सरकार ने स्पेसएक्स से देश से नियमों का पालन करने की बात करने की बात कही. सरकार ने कहा था कि भारत में सैटेलाइट-आधारित सेवाएं प्रदान करने के लिए, भारत सरकार के दूरसंचार विभाग से अपेक्षित लाइसेंस की आवश्यकता होती है. ऐसे में जनता को सूचित किया जाता है कि संबंधित कंपनी ने उपग्रह प्रदान करने के लिए कोई लाइसेंस/प्राधिकरण प्राप्त नहीं किया है.
हालांकि, हालिया घटनाक्रम ने उम्मीदें बढ़ा दी हैं. पिछले महीने, संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने घोषणा की थी कि सैटेलाइट सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम प्रशासनिक रूप से आवंटित किया जाएगा और लागत दूरसंचार नियामक द्वारा निर्धारित की जाएगी. मस्क ने घोषणा का स्वागत किया और कहा कि स्पेसएक्स “स्टारलिंक के साथ भारत के लोगों की सेवा” करने की पूरी कोशिश करेगा.
घरेलू प्लेयर्स पर क्या पड़ेगा असर?
ऐसे में अगर सरकार का नया रुख स्टारलिंक जैसे वैश्विक प्लेयर्स के लिए भारत में सैटेलाइट इंटरनेट प्रदान करना आसान बनाता है,तो यह इस क्षेत्र के स्थानीय प्लेयर्स जैसे कि मुकेश अंबानी की जियो और सुनील भारती मित्तल की एयरटेल के लिए एक बड़ा कॉम्पिटिशन साबित हो सकता है.जियो ने इस बात पर जोर दिया है कि सरकार को समान अवसर बनाने के लिए नीलामी के माध्यम से स्पेक्ट्रम आवंटित करना चाहिए.वहीं, मित्तल ने भी कहा है कि शहरी महत्वाकांक्षा वाली सैटेलाइट कंपनियों को टेलीकॉम कंपनियों की तरह स्पेक्ट्रम खरीदना चाहिए. रिपोर्ट्स के मुताबिक, स्टारलिंक ने नियामक ट्राई को बताया है कि भारतीय टेलीकॉम कंपनियां अपने सिस्टम के लिए उचित मूल्य निर्धारण पर जोर दे रही हैं और दूसरों के लिए बढ़ी हुई दरों की पैरवी कर रही हैं. इसके पीछे का तर्क ये दिया गया है कि घरेलू प्लेयर्स का अपना बिजनेस मॉडल है.
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