November 23, 2024
पिता का उठा साया तो 9 साल की उम्र से संभाली घर की जिम्मेदारियां, गरीबी ने छुड़वाया स्कूल, इनके जैसा नहीं है आजतक कोई

पिता का उठा साया तो 9 साल की उम्र से संभाली घर की जिम्मेदारियां, गरीबी ने छुड़वाया स्कूल, इनके जैसा नहीं है आजतक कोई​

इस तस्वीर में दिख रहे इस छोटे से बच्चे को बेशक आप न पहचान सकें. लेकिन नाम सुनेंगे या ताजा तस्वीर देखेंगे तो झट से उसका नाम बता देंगे. किसी जमाने में पाई पाई जोड़ कर घर चलाने वाला ये बच्चा अब दुनियाभर का फेमस नाम बन चुका है.

इस तस्वीर में दिख रहे इस छोटे से बच्चे को बेशक आप न पहचान सकें. लेकिन नाम सुनेंगे या ताजा तस्वीर देखेंगे तो झट से उसका नाम बता देंगे. किसी जमाने में पाई पाई जोड़ कर घर चलाने वाला ये बच्चा अब दुनियाभर का फेमस नाम बन चुका है.

इस तस्वीर में दिख रहे इस छोटे से बच्चे को बेशक आप न पहचान सकें. लेकिन नाम सुनेंगे या ताजा तस्वीर देखेंगे तो झट से उसका नाम बता देंगे. किसी जमाने में पाई पाई जोड़ कर घर चलाने वाला ये बच्चा अब दुनियाभर का फेमस नाम बन चुका है. इस बच्चे के हुनर को आज पूरी दुनिया सलाम करती है और बड़े बड़े फनकार इसके जैसा बनने के लिए तरसते हैं. लेकिन संगीत की दुनिया में इस जैसा नाम कोई हासिल नहीं कर सका. है. उम्मीद है अब आप इस बच्चे को पहचान गए होंगे. अगर नहीं पहचाने हैं तो बता दें कि ये बच्चा कोई और नहीं देश और दुनिया के सबसे अजीज संगीतकार ए आर रहमान हैं.

शौक बना जिम्मेदारी

एआर रहमान ने अपने पिता से बचपन में ही पियानो बजाना सीखना शुरू कर दिया था. महज चार साल की उम्र से ही उनकी ऊंगलियां पियानो पर जम गई थीं. पिता ने हुनर को पहचाना और उन्हें अपना असिस्टेंट भी बना लिया. अब नन्हें रहमान अपने पिता के साथ काम करने लगे. ए आर रहमान के पिता मलयालम फिल्मों के लिए म्यूजिक कंपोज करने का काम किया करते थे. जिन्हें रहमान बहुत गौर से ऑब्जर्व किया करते थे. एआर रहमान की उम्र यही कोई नौ साल रही होगी जब उनके पिता का निधन हो गया. जो संगीत वो शौक के लिए सीख रहे थे वो उनकी जिम्मेदारी बन गया. घर चलाने के लिए वो प्रोफशनली पियानो बजाने लगे. नौबत ये भी आई थी कि उन्हें स्कूल छोड़ कर ये काम करना पड़ा.

सबसे कामयाब म्यूजिक कंपोजर

एक बार म्यूजिक की दुनिया में एंट्री मिली तो एआर रहमान ने सिर्फ म्यूजिक को ही वक्त दिया. पढ़ाई छोड कर उन्होंने अपना बैंड बनाया. वो विज्ञापनों के लिए अलग अलग झिंगल बनाने लगे. उनका संगीत इतना पसंद किया जाने लगा कि उन्हें रोजा फिल्म में म्यूजिक देने का ऑफर मिला. उसके बाद उन्होंने कभी नाकाम रास्तों पर पलट कर नहीं देखा. यहां से शुरु हुआ सफर स्लमडॉग मिलेनियर तक पहुंचा और रहमान को ऑस्कर का सम्मान भी मिला. जो आज भी कई भारतीय म्यूजिक कंपोजर्स के लिए एक सपना है.

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