‘महाकुंभ’ पर ‘एनडीटीवी कॉन्क्लेव’ में प्रोफेसर बद्रीनारायण ने बताया इस बार राज्य, समाज और अध्यात्म तीनों मिलकर गंगा और महाकुंभ की स्वच्छता, निर्मलता बचाए रखने के लिए जागरूक हैं.
दुनिया के सबसे बड़े आयोजन ‘महाकुंभ’ पर ‘एनडीटीवी कॉन्क्लेव’ में सबसे बड़ी चर्चा हो रही है. इस चर्चा में देश के सबसे बड़े संत और अर्थशास्त्री एक साथ एक मंच पर महाकुंभ के आर्थिक पहलू और उसके असर पर विचार रख रहे हैं. इस दौरान ‘प्रकृति पर आस्था का महाकुंभ’ सेशन में स्वामी चिदानंद सरस्वती (परमार्थ निकेतन आश्रम, ऋषिकेश के अध्यक्ष ), शोभित कुमार मिश्रा (अदाणी ग्रुप से स्वच्छ गंगा मिशन से फ्रेम वर्क के तहत प्रयागराज प्रोजेक्ट चला रहे हैं), प्रोफेसर बद्रीनारायण (सामाजिक इतिहासकार और जी.बी. में प्रोफेसर पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान, इलाहाबाद) और ऋषि अग्रवाल (पर्यावरणविद् एवं निदेशक, मुंबई सस्टेनेबिलिटी सेंटर) शामिल हुए. प्रोफेसर बद्रीनारायण ने बताया कि इस बार कुंभ में ऐसी व्यवस्था की गई है कि प्रकृति भी बचे और परंपरा भी. वहीं, शोभित कुमार मिश्रा ने कहा कि प्रकृति से हम जो भी लेते हैं, उसको हमें उसी रूप में वापस करना चाहिए.
राज्य, समाज और अध्यात्म मिलकर कर रहे काम- प्रोफेसर बद्रीनारायण
प्रकृति और मानव के संबंध को बताते हुए प्रोफेसर बद्रीनारायण ने बताया, ‘इस बार राज्य, समाज और अध्यात्म तीनों मिलकर गंगा और महाकुंभ की स्वच्छता, निर्मलता बचाए रखने के लिए जागरूक हैं और कोशिश कर रहे हैं. ये एक तरह से रिवर्सल है, क्योंकि भारतीय समाज शुरुआत से ही जब हमारी अपनी पारंपरिक डेमोक्रेसी थी, तो उसमें नदियों के साथ मानव का व्यवहार कैसा होगा इसके लिए राज्य भी सजक था और समाज भी सजक था. कौटिल्य के दौर में हमें यह देखने को मिला. इस दौरान हम प्रकृति से जितना लेते थे, उतना देते भी थे. नदियों में पहले नहाने के भी कुछ कनकहे नियम थे, जैसे नदी के पानी में कुल्ला नहीं करेंगे. साबुन से नदी में कपड़े नहीं धोएंगे. ऐसे ही आप देखेंगे कि गंगोत्री से कोलकाता तक चले जाइए, जहां-जहां दो नदियां मिलती हैं, वहां-वहां मेला लगता है. इन मेलों में सालों से करोड़ों लोग आ रहे हैं. ये सब लोग मिलकर अपनी संस्कृति और प्रकृति की रक्षा करते रहे हैं. लेकिन इस बीच जब आधुनिक या कहें एग्रेसिव डेमोक्रेसी आई, तो यह सर्कल बिगड़ गया. हालांकि, अब फिर वो दौर लौट रहा है.
#NDTVMahakumbhConclave | ‘प्रकृति से हम जो भी लेते हैं, जैसे हवा, पानी और मिट्टी इसे हमें उसी रूप में वापस करना चाहिए’ : अदाणी प्रयागराज प्रोजेक्ट हेड शोभित कुमार मिश्रा@Pbndtv | #MahaKumbh2025 | #Prayagraj pic.twitter.com/8bFg3U5iNe
— NDTV India (@ndtvindia) January 7, 2025
क्या है प्रोजेक्ट प्रयागराज
प्रयागराज प्रोजेक्ट के बारे में बताते हुए शोभित कुमार मिश्रा ने कहा, ‘प्रकृति से हम जो भी लेते हैं, जैसे हवा, पानी और मिट्टी इसको हमें उसी रूप में वापस करना चाहिए. इसे हमें कनवर्ट करने का कोई अधिकार नहीं है. हमें अगली पीढ़ी को संसाधन उसी रूप में वापस करने हैं. ये हमारी जिम्मेदारी बनती है. हमने स्वच्छ गंगा मिशन से फ्रेम वर्क के तहत प्रयागराज प्रोजेक्ट साल 2019 में शुरू किया था और 2023 में इसे पूरा कर लिया. इसके 9 एसटीपी हैं. 6 का हमने रिहेबिलिटेशन किया है और 3 नए एसटीपी बनाए हैं. हमारी जो इंस्टोल्ड कैपेसिटी है, वो 326 एमएलडी है. 326 मिलियन लीटर पानी ट्रीट हो रहा हैं. ट्रीट होकर जो पानी निकल रहा है, वो पीने वाले जैसा ही है. हम सीवर पंपिंग स्टेशन आने वाले पानी को ट्रीटमेंट प्लांट तक ले जाते हैं.’
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महाकुंभ में ‘आस्था की डुबकी पवित्र डुबकी’
शोभित कुमार मिश्रा ने बताया, ‘प्रोजेक्ट प्रयागराज के कारण आज गंगा में 90 प्रतिशत नालों का पानी जाना बंद हो गया है. इन नालों के पानी को ट्रीट यानी साफ करके गंगा में छोड़ा जा रहा है. अर्धकुंभ से महाकुंभ तक काफी अंतर आया है. ये लोगों को देखने को भी मिल रहा है. इससे लोगों के बीच संदेश जाएगा कि सरकार ने काम किया है. अब ये मानकर चलिए कि प्रयागराज में लगे महाकुंभ में ‘आस्था की डुबकी पवित्र डुबकी’ होगी हमारा ये प्रोजेक्ट 15 सालों तक चलता रहेगा.’
मानवता की अमूर्त विरासत के रूप में प्रसिद्ध सनातन संस्कृति के सबसे बड़े मानव समागम महाकुंभ 2025 को लेकर सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लोगों में जिज्ञासा है. इस बार महाकुंभ की भव्य तैयारियां की गई हैं. प्रयागराज में महाकुंभ मेले के दौरान 45 दिन में 45 करोड़ श्रद्धालु, 7500 करोड़ रुपये का बजट, 4000 हेक्टेयर में मेला क्षेत्र, 13 हजार ट्रेने, 1.6 लाख से ज्यादा टेंट, 2700 आर्टिफिशियल (AI) तकनीक वाले कैमरे, कुंभ क्षेत्र में 488 किलोमीटर की सड़कें, 67 हजार एलईडी लाइट, 200 वाटर एटीएम का इंतजाम किया गया है. 13 जनवरी से 26 फरवरी तक प्रयागराज की धरती पर महाकुंभ-2025 होने जा रहा है.
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