प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट पर सुनवाई करते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत ने तीन बड़ी बातें कहीं. तीन जजों की बेंच ने इस मामले में केंद्र सरकार से 4 हफ्ते में हलफनामा दाखिल करने को कहा है. जानिए कोर्ट ने क्या क्या बातें कही हैं…
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 1991 के पूजा स्थल कानून पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से चार हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है. चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने कहा कि केंद्र सरकार की राय के बिना कोर्ट इस पर आदेश जारी नहीं करेगा. कोर्ट ने इसके साथ ही एक बड़ा फैसला देते हुए कहा कि जब तक वह इस केस को सुन रहा है, तब तक देशभर में इस तरह के नए मामले पर सुनवाई नहीं होगी. यानी विवाद की स्थिति में मुकदमे तो दाखिल होंगे, लेकिन ट्रायल कोर्ट उस पर कोई सुनवाई नहीं करेंगे.
दूसरी बड़ी बात यह है कि भोजशाला, ज्ञानवापी, संभल जैसे मामलों में सुनवाई तो चलती रहेगी, लेकिन उस पर कोर्ट अभी कोई फैसला नहीं देंगे. यानी चार हफ्ते तक तक आदेश देने पर रोक लगाई गई है. सुप्रीम कोर्ट ने तीसरी बड़ी बात यह कही कि 1991 के पूजा स्थल कानून की वैधानिकता पर फाइनल आदेश से पहले वह केंद्र सरकार का पक्ष भी जानना चाहता है. ऐसे में केंद्र सरकार चार हफ्ते में इस बारे में अपनी राय दे. जमीयत उलेमा ए हिन्द, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ कई राजनीतिक दलों ने ऐक्ट के समर्थन में आवेदन दाखिल किया है. उन्होंने धार्मिक स्थलों के सर्वे से जुड़े अलग-अलग अदालतों के आदेशों का भी विरोध किया है. कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को राहत देते हुए ही विवादित मामलों में फैसले पर रोक लगाई है. जानिए कोर्ट की बड़ी टिप्पणियां.
इस मामले पर सुनवाई के दौरान जस्टिस विश्वनाथन की भी एक बड़ी टिप्पणी सामने आई. उन्होंने कहा कि जब अयोध्या विवाद में पांच जजों का फैसला आ चुका है, तो क्या देश की सिविल अदालतें उन फैसलों के खिलाफ जा सकती हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट की सबसे बड़ी टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और अन्य पक्षों से कहा
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 क्या कहता है
सभी पूजा स्थल 15 अगस्त 1947 से पहले की स्थिति में बने रहेंगे. पूजा स्थलों को अदालत या सरकार की तरफ से बदला नहीं जा सकता. संबंधित कानून कहता है कि 15 अगस्त, 1947 को विद्यमान उपासना स्थलों का धार्मिक स्वरूप वैसा ही बना रहेगा, जैसा वह उस दिन था. यह किसी धार्मिक स्थल पर फिर से दावा करने या उसके स्वरूप में बदलाव के लिए वाद दायर करने पर रोक लगाता है.
अदालत में कई याचिकाएं लंबित
इस संबंध में शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें से एक याचिका अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है. उपाध्याय ने उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की धाराओं दो, तीन और चार को रद्द किए जाने का अनुरोध किया है. याचिका में दिए गए तर्कों में से एक तर्क यह है कि ये प्रावधान किसी व्यक्ति या धार्मिक समूह के पूजा स्थल पर पुन: दावा करने के न्यायिक समाधान के अधिकार को छीन लेते हैं.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी नेता ने दायर याचिका में क्या कहा
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और महाराष्ट्र के विधायक जितेंद्र सतीश अव्हाड ने भी उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई लंबित याचिकाओं के खिलाफ याचिका दायर करके कहा है कि यह कानून देश की सार्वजनिक व्यवस्था, बंधुत्व, एकता और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करता है. इस मामले की सुनवाई विभिन्न अदालतों में दायर कई मुकदमों की पृष्ठभूमि में होगी, जिनमें वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद और संभल में शाही जामा मस्जिद से संबंधित मुकदमे शामिल हैं.
मुस्लिम पक्ष ने 1991 के कानून का हवाला देते हुए दिया ये तर्क
इन मामलों में दावा किया गया है कि इन स्थलों का निर्माण प्राचीन मंदिरों को नष्ट करने के बाद किया गया था और हिंदुओं को वहां पूजा करने की अनुमति दिए जाने का अनुरोध किया गया है. इनमें से अधिकतर मामलों में मुस्लिम पक्ष ने 1991 के कानून का हवाला देते हुए तर्क दिया है कि ऐसे मुकदमे स्वीकार्य नहीं हैं. इस कानून के प्रावधानों के खिलाफ पूर्व राज्यसभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा दायर याचिका सहित छह याचिकाएं दायर की गई हैं.
स्वामी यह चाहते हैं कि शीर्ष अदालत कुछ प्रावधानों की फिर से व्याख्या करे ताकि हिंदू वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद पर दावा करने के लिए सक्षम हो सकें, वहीं उपाध्याय ने दावा किया कि पूरा कानून असंवैधानिक है और इस पर फिर से व्याख्या करने का कोई सवाल ही नहीं उठता.
(भाषा इनपुट्स के साथ)
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