December 12, 2024
बच्चों के लिए विशेष एंडोस्कोपी सेंटर वाला देश का पहला सरकारी अस्पताल बना सफदरजंग

बच्चों के लिए विशेष एंडोस्कोपी सेंटर वाला देश का पहला सरकारी अस्पताल बना सफदरजंग​

अब तक देश के किसी भी सरकारी हॉस्पिटल में बच्चों के लिए डेडिकेटेड एंडोस्कोपी सुविधा उपलब्ध नहीं थी. पहले बच्चों की एंडोस्कोपी एडल्ट एंडोस्कोपी की तरह ही की जाती थी. अब इस नए सेंटर में 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए विशेष रूप से डिजाइन की गई एंडोस्कोपी सुविधा मिलेगी, जिसमें प्रीमेच्योर बच्चों का भी इलाज संभव होगा.

अब तक देश के किसी भी सरकारी हॉस्पिटल में बच्चों के लिए डेडिकेटेड एंडोस्कोपी सुविधा उपलब्ध नहीं थी. पहले बच्चों की एंडोस्कोपी एडल्ट एंडोस्कोपी की तरह ही की जाती थी. अब इस नए सेंटर में 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए विशेष रूप से डिजाइन की गई एंडोस्कोपी सुविधा मिलेगी, जिसमें प्रीमेच्योर बच्चों का भी इलाज संभव होगा.

छोटे बच्चों के लिए एक अच्छी खबर है. दिल्ली के सफदरजंग हॉस्पिटल में एक अत्याधुनिक डेडिकेटेड पीडियाट्रिक एंडोस्कोपी सूट और 10-बिस्तर वाले डे केयर विभाग शुरू हुआ है. इसके शुरू होने से अब छोटे बच्चों का अलग से एंडोस्कोपिक हो सकेगा.

अब बच्चों की एंडोस्कोपी कराने के लिए भटकने और परेशान होने की जरूरत नहीं है. दिल्ली के वार्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज और सफदरजंग अस्पताल में बच्चों के लिए विशेष एंडोस्कोपी सेंटर और 10-बिस्तर वाले डे केयर विभाग की शुरुआत हुईं है. डे केयर विभाग में बच्चों के मनोरंजन का भी ध्यान रखा गया है.

एडवांस टेक्नोलॉजी से लैस इस डेडिकेटेड पीडियाट्रिक एंडोस्कोपी सूट का उद्देश्य बच्चों को पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी और हेपेटोलॉजी बीमारियों के लिए नैदानिक और चिकित्सीय एंडोस्कोपी सुविधाएं देना है.

पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी और हेपेटोलॉजी यूनिट के इंचार्ज डॉ. श्याम सुंदर मीणा इंचार्ज का कहना है कि अब हम प्रतिदिन एक साथ 10 से 15 बच्चों का एंडोस्कोपी कर सकते हैं क्योंकि हमारे पास 10 बेडेड फैसिलिटी अवेलेबल है. यह मशीन 4K टेक्नोलॉजी से लैस है जो लेटेस्ट है. इससे इमेज की क्वालिटी बहुत इंप्रूव हो जाती है, जिससे मरीज के निदान में और बीमारी को पकड़ने में बहुत सहायता मिलती है.

हमको लगता है कि लीवर की बीमारी से बड़ों में होती है लेकिन बच्चों में भी लीवर की बीमारी कई कारणों से होती है. इसी तरह आंतों की भी बीमारी, लंबे समय तक दस्त होने से भी आंतों को नुकसान होता है. उन बीमारियों को पकड़ने के लिए एंडोस्कोपी की जरूरत होती है. एंडोस्कोपिक के साथ हम टिशु बायोप्सी लेते हैं जिससे हम बीमारी का समय से जांच पाते हैं और उसका इलाज करते हैं.

क्यों प्रमुख है ये

अब तक देश के किसी भी सरकारी हॉस्पिटल में बच्चों के लिए डेडिकेटेड एंडोस्कोपी सुविधा उपलब्ध नहीं थी. पहले बच्चों की एंडोस्कोपी एडल्ट एंडोस्कोपी की तरह ही की जाती थी. अब इस नए सेंटर में 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए विशेष रूप से डिजाइन की गई एंडोस्कोपी सुविधा मिलेगी, जिसमें प्रीमेच्योर बच्चों का भी इलाज संभव होगा.

पूरा मामला समझिए

दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल ने बच्चों के लिए समर्पित एक अत्याधुनिक एंडोस्कोपी सूट और 10-बिस्तर वाले डे केयर विभाग का उद्घाटन कर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है. यह केंद्र स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की मदद से शुरू किया गया है. इस समर्पित पीडियाट्रिक एंडोस्कोपी सूट का उद्देश्य बच्चों को गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और हेपेटोलॉजी बीमारियों के लिए नैदानिक और चिकित्सीय एंडोस्कोपी सेवाएं प्रदान करना है. इस सूट में एक प्रशिक्षित और समर्पित टीम की गई है. यह सेवा नि:शुल्क या बहुत कम लागत पर उपलब्ध होगी.

छोटे बच्चों के लिए बेहद जरूरी

सफदरजंग अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. संदीप बंसल ने कहा, ”केंद्र सरकार ने हमें यह सुविधा प्रदान की है. एक पैंक्रियाटिक एंडोस्कोपी यूनिट और डे केयर सुविधा सफदरजंग अस्पताल में स्थापित की गई है. यह अपने-आप में महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, क्योंकि यह सुविधा भारत सरकार द्वारा पहली बार दी गई है, जिसमें डायग्नोस्टिक और थेराप्यूटिक यानी नैदानिक और इलाज दोनों तरह की सुविधाएं एक साथ उपलब्ध हैं.”

उन्होंने बताया कि विशेष रूप से यह उन बच्चों के लिए बहुत उपयोगी है, जो बहुत छोटे हैं. पहले हम बच्चों के लिए एडल्ट एंडोस्कोपी यूनिट में कुछ समय निकाल कर पीडियाट्रिक एंडोस्कोपी करते थे, जिसमें एक सीमा थी कि हम 10 किलोग्राम से कम वजन वाले बच्चों की जांच नहीं कर पाते थे. अब इस नई सुविधा के जरिए हम नवजात शिशुओं (न्यूबॉर्न चिल्ड्रन) और प्रीमैच्योर बच्चों की भी एंडोस्कोपी करने की क्षमता रखते हैं. उन्होंने बताया कि यह केवल जांच नहीं, बल्कि इलाज की सुविधा भी प्रदान करता है. यानी अब हमारे अस्पताल में एंडोस्कोपी के द्वारा बच्चों का इलाज भी किया जा सकता है.

डॉ. बंसल ने बताया, ”इसकी सफलता के लिए हमारे पास एक बहुत ही योग्य टीम है, जिसमें पेडियाट्रिक्स विभाग के प्रमुख डॉ. रतन गुप्ता, और पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंटरोलॉजी की प्रोफेसर डॉ. मीना हैं. इसके साथ मेरे साथ दो युवा सहयोगी डॉ. रिचा और डॉ. मीना शामिल हैं. हम एक बहुत ही अच्छी टीम तैयार कर रहे हैं, क्योंकि यह एक बहुत ही विशेष और बहुत ही कम जगहों पर उपलब्ध सुविधा है, यहां तक कि यह सुविधा निजी अस्पतालों में भी नहीं है.”

उन्होंने कहा, ”हमारे लोग बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और इसके लिए मैं भारत सरकार और हमारे स्वास्थ्य मंत्रालय को धन्यवाद देना चाहूंगा, जिन्होंने इस दिशा में हमारी सहायता की.”

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