‘बच्‍चों को विदेश जाने की लगी नई बीमारी’, उपराष्‍ट्रपति धनखड़ ने शिक्षा को बिजनेस बनाए जाने पर भी जताई चिंता​

 उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Vice President Jagdeep Dhankhar) ने बच्‍चों के विदेश जाने को लेकर चिंता जताई. साथ ही प्रतिभा पलायन और विदेशी मुद्रा के नुकसान को रोकने में मदद करने का आह्वान किया.

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Vice President Jagdeep Dhankhar) ने शनिवार को कहा कि देश के बच्चों को पीड़ित करने वाली विदेश जाने की नई बीमारी लगी है, जिसे उन्‍होंने विदेशी मुद्रा पलायन और प्रतिभा पलायन कहा. साथ ही उपराष्‍ट्रपति ने कहा कि शिक्षा का व्यावसायीकरण इसकी गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है, जो देश के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है. 

राजस्‍थान के सीकर में एक निजी शैक्षिक संस्‍थान द्वारा आयोजित संस्‍थान में बोलते हुए उन्‍होंने कहा, “एक नई बीमारी और है बच्चों में विदेश जाने की. बच्चा उत्साहपूर्वक विदेश जाना चाहता है, उसको नया सपना दिखता है, लेकिन कोई आकलन नहीं है कि किस संस्था में जा रहा है, किस देश में जा रहा है.”

एक नई बीमारी और है बच्चों में – विदेश जाने की।

बच्चा उत्साहपूर्वक विदेश जाना चाहता है, उसको नया सपना दिखता है; लेकिन कोई आकलन नहीं है कि किस संस्था में जा रहा है, किस देश में जा रहा है।

अंदाजा है कि 2024 में, लगभग 13 लाख छात्र छात्राएं विदेश गए। उनके भविष्य का क्या होगा उसका… pic.twitter.com/BoPZlNglnq

— Vice-President of India (@VPIndia) October 19, 2024

2024 में 13 लाख छात्र छात्राएं विदेश गए : धनखड़

उन्‍होंने कहा, “अंदाजा है कि 2024 में लगभग 13 लाख छात्र छात्राएं विदेश गए.उनके भविष्य का क्या होगा उसका आकलन हो रहा है, यहां पढ़ते तो भविष्य कितना उज्जवल होता लोगों को अब समझ में आ रहा है.”

उन्‍होंने कहा कि इस निकासी ने “हमारी विदेशी मुद्रा में 6 अरब डॉलर का छेद” कर दिया है. उपराष्ट्रपति ने छात्रों को जागरूक करने और प्रतिभा पलायन और विदेशी मुद्रा के नुकसान को रोकने में मदद करने का आह्वान किया. 

शिक्षा का व्यवसाय में तब्दील होना अच्छा नहीं : धनखड़

उन्‍होंने कहा, “कल्पना करें यदि शैक्षणिक संस्थानों के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च किए जाते हैं तो हमारे हालात क्‍या होते. मैं इसे विदेशी मुद्रा पलायन और प्रतिभा पलायन कहता हूं. ऐसा नहीं होना चाहिए. यह संस्थानों का उत्तरदायित्‍व है कि वे अपने छात्र-छात्राओं को विदेशी हालात के बारे में अवगत कराएं.” 

उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा का व्यवसाय में तब्दील होना देश के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है. उन्होंने छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए तकनीक के अधिकतम उपयोग का आह्वान करते हुए कहा, “कुछ मामलों में यह जबरन वसूली का रूप भी ले रहा है. यह चिंता का विषय है.”

उपराष्ट्रपति ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति की भी प्रशंसा की और उसे गेम चेंजर बताया. 

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