बसर अल-असद… सीरिया का वो राष्ट्रपति जिसकी तानाशाही नीतियों से शुरू हुआ खूनी युद्ध​

 बशर अल-असद ने अपनी पिता की मृत्यु के बाद सीरिया की सत्ता संभाली थी. हालांकि, 2011 में जब लोगों ने लोकतंत्र की मांग की तो असद ने दमनकारी नीति अपनाना शुरू कर दिया, जिसकी वजह से खूनी युद्ध शुरू हो गया और गृह युद्ध में तबदील हो गया.

सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद ने लोकतंत्र समर्थक विद्रोह पर ऐसी तानाशही की, जो सदी के सबसे खूनी युद्धों में से एक में तब्दील हो गई और इसी के साथ सीरिया में 2011 में गृह युद्ध छिड़ गया. बता दें कि रविवार सुबह विद्रोहियों के दमिश्क पर कब्जा करने के से पहले ही बशर अल-असद अपने विशेष विमान में वहां से भाग गए. ऐसे में आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर राष्ट्रपति असद कौन हैं और विद्रोही गुट क्यों उनके खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं. 

दरअसल, 59 वर्षीय बशर अल-असद ने 2000 में अपने पिता हाफिज अल-असद की मृत्यु के बाद सीरिया की सत्ता संभाली थी. उनके पिता 1971 से देश पर शासन कर रहे थे. 

असद ने मेडिकल स्कूल से की थी पढ़ाई

मीडिया रिपोट्स के मुतबिक दमिश्क में जन्मे अल-असद ने राजधानी में मेडिकल स्कूल से स्नातक किया. वह नेत्र विज्ञान में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए लंदन में पढ़ाई कर रहे थे जब उन्हें अपने भाई की मृत्यु के बाद सीरिया वापस लौटना पड़ा. बड़े भाई बासेल अल-असद देश के नेता के रूप में अपने पिता की जगह लेने वाले थे, लेकिन एक कार दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई, जिससे बशर उत्तराधिकारी बन गए.

लोकतंत्र की मांग के बाद अपनाई दमनकारी नीति

2011 उनके शासन काल के लिए सबसे अहम साल रहा जब लोकतंत्र की मांग को लेकर हजारों सीरियाई नागरिक सड़कों पर उतर आए, लेकिन उन्हें भारी सरकारी दमन का सामना करना पड़ा. हालांकि सरकार के विरोध में विभिन्न सशस्त्र विद्रोही समूहों का गठन हो गया और सरकार का विरोध 2012 के मध्य तक, विद्रोह एक पूर्ण गृह युद्ध में बदल गया.

युद्ध में रासायनिक हथियारों का किया इस्तेमाल

असद पर मानवाधिकार उल्लंघनों का आरोप लगता रहा है, जिनमें युद्ध के दौरान सीरिया में रासायनिक हथियारों का प्रयोग, कुर्दों का दमन और लोगों को जबरन गायब करना शामिल है. असद रूस, ईरान और लेबनान के हिजबुल्लाह की मदद से वर्षों तक विद्रोही गुटों का सफलतापूर्व मुकाबला करते रहे. लेकिन पिछले दिनों अचानक सक्रिय हुए विद्रोही गुटों ने सीरियाई राष्ट्रपति के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी क्योंकि असद के तीन सहयोगी- रूस, हिजबुल्लाह और ईरान इजरायल खुद के संघर्षों में उलझे हुए थे.

सालों के युद्ध से नष्ट हो गई थी असद की सेना

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक असद की सेना वर्षों के युद्ध से नष्ट हो चुकी थी और कई सैनिक तो उनके पक्ष में लड़ना भी नहीं चाहते थे. असद की सत्ता का पतन रूस और ईरान के लिए बड़ा झटका है, जिन्होंने इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सहयोगी खो दिया है. 

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