अंग्रेजी शासन काल के दौरान, 1892 के आसपास बक्सर जिले के कई लोगों को सरकार ने गिरमिटिया मजदूर बनाकर फिजी भेजा था. इनमें से कई परिवार अपने पैतृक गांव से बिछड़ गए और वर्षों तक उनका कोई संपर्क नहीं रहा.
बिहार के बक्सर के केसठ गांव के रहने वाले कई लोगों की आंखे नम हो गई जब दशकों बाद वे अपने परिजनों से मिले. इधर, फिजी से अपने पूर्वजों की धरती पर आकर अनिल कुमार और उनकी पत्नी नाज भी खुश थीं. दरअसल, पांच पीढ़ी गुजर जाने के बाद कई वर्षों के अथक प्रयास के बाद अपने पूर्वजों की जन्मस्थली पहुंचे दंपति परिजनों से मिलकर भावुक हो गए. अंग्रेजी शासन काल के दौरान, 1892 के आसपास बक्सर जिले के कई लोगों को सरकार ने गिरमिटिया मजदूर बनाकर फिजी भेजा था. इनमें से कई परिवार अपने पैतृक गांव से बिछड़ गए और वर्षों तक उनका कोई संपर्क नहीं रहा.
स्थानीय गांव के मुखिया अरविंद यादव ने बताया कि आज के वक्त में विदेश में रहकर भी अपनी भारतीय संस्कृति से जुड़े रहना यह अपने-आप में एक मिसाल है. यह देखकर हमें आश्चर्य हुआ. उन्होंने यह भी बताया कि फिजी से आकर जब लोग अपने परिवार से मिले तो भावुक होकर रोने लगे. अपनी मिट्टी से जुड़े रहने की यह एक अनोखी मिसाल है. फिजी से लौटने वाले अनिल और उनकी पत्नी नाज बड़े परिश्रम से यहां पहुंचे. कहा जाता है कि अपने दादा की तस्वीर और परिवार की पुरानी कहानियों के माध्यम से अपने वंश (पूर्वज) की पहचान की.
वर्षों की खोजबीन के बाद, वे केसठ गांव पहुंचे. गांव में उनके स्वागत के लिए लोगों की भीड़ जमा हो गई. गांववासियों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया और उनके पूर्वजों के बारे में बातचीत भी की. अनिल कुमार ने बताया कि बचपन से हमने कहानी जैसे सुना था कि हमारे पूर्वज भारत में बिहार राज्य के बक्सर जिले के केसठ के रहने वाले हैं. जैसे-जैसे हम बड़े होते गए. वैसे-वैसे हमने खोजबीन शुरू की.
वे कहते हैं कि पिछले दो साल में गांव की जानकारी जुटाई. इसके बाद भारत के लिए टिकट बुक करके यहां चले आए. हमने अयोध्या में दिवाली मनाई और वहां से यह सोचकर हम गांव पहुंचे कि यह हमारे लिए एक तीर्थ स्थल से कम नहीं है. गांव आने पर हमारी अपने परिवार के लोगों से मुलाकात हुई. यह बेहद खुशी का क्षण था. यहां तक आने के लिए हर समय हमें लोगों का सहयोग मिला.
अनिल की पत्नी नाज ने बताया कि उन्होंने जो सपना देखा था, वह आज सच हुआ. अपना गांव देखने के लिए चले थे, यहां तो हमें पूरा परिवार भी मिल गया. ऐसे में बेहद खुशी मिली. इस दौरान उन्होंने कई बातें साझा कीं. स्थानीय गांव के उनके चाचा छट्ठू पंडित ने बताया कि उन्होंने भी सुना था कि उनके पूर्वज यहां से विदेश गए हैं. लेकिन आज उनसे मुलाकात करने के बाद बेहद खुशी मिल रही है.
बहरहाल, यह मुलाकात उन सभी परिवारों के लिए एक प्रेरणादायक कहानी बन गई है, जो अपने खोए हुए रिश्तों और जड़ों की तलाश में हैं. इस यात्रा ने साबित कर दिया कि चाहे वक्त कितना भी बदल जाए, जड़ें कभी नहीं मिटतीं.
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