चित्रकार मनीष पुष्कले अपनी कलाकृतियों में परंपरागत कला से परे जाकर अमूर्त शैली को अपनाते हैं, जिसमें अनुभूति, विचार और अस्तित्व को नवीन रूप दिया जाता है. उनके चित्र ‘देखने’ की प्रक्रिया से आगे जाकर ‘महसूस करने’ तक की एक अद्भुत यात्रा हैं.
भारतीय कला परिदृश्य में मनीष पुष्कले का नाम उन गिने-चुने कलाकारों में आता है जो अपने चित्रों में गहराई, चिंतन और आध्यात्मिक अनुभवों को एक साथ लेकर आते हैं.उनके चित्र महज रंग और ब्रश के कौशल का प्रदर्शन नहीं हैं, बल्कि वे एक विचारशील यात्रा हैं,जो देखने वाले को रंगों और आकारों के रहस्यात्मक संसार में ले जाती है. हाल ही में उनकी चित्रों की प्रदर्शनी ने कला-प्रेमियों और समीक्षकों को एक बार फिर उनके अद्वितीय दृष्टिकोण और शैली का साक्षात्कार कराया.
आकारों और रंगों का जादू
मनीष पुष्कले के चित्रों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे अपने रंगों और आकारों के माध्यम से एक अंतःसंवाद स्थापित करते हैं. वे परंपरागत कला से परे जाकर अमूर्त शैली को अपनाते हैं, जिसमें अनुभूति, विचार और अस्तित्व को नवीन रूप दिया जाता है. उनके चित्रों में रंग कभी-कभी सतह पर छिटकते हुए लगते हैं, तो कभी वे गहराई में उतरते हुए दिखते हैं. आकार उनके चित्रों में मात्र रेखाएं और आकर नहीं हैं, बल्कि प्रतीक हैं जो गहरी चेतना और कई बार आकस्मिक मनोभाव को व्यक्त करते हैं.
मनीष पुष्कले द्वारा रचे चित्र ‘देखने’ की प्रक्रिया से आगे जाकर ‘महसूस करने’ तक की एक अद्भुत यात्रा हैं. उनके लिए हर रंग एक विचार है और हर आकार एक भावना. यह दृष्टिकोण उनकी कला को विशिष्ट बनाता है. मनीष पुष्कले के चित्रों को देखना मात्र उनकी रचनात्मकता का अनुभव करना नहीं है, बल्कि यह उस अद्भुत यात्रा का आरंभ है, जो हमारे अंतर्मन में छिपे प्रश्नों और भावों को उद्घाटित करती है. उनकी कला सृजन और अनुभूति का एक ऐसा संगम है, जहां हर रंग और आकार एक नवीन दर्शन के समान प्रकट होता है.
रहस्यात्मकता की खोज
मनीष पुष्कले की चित्रकला का एक और महत्वपूर्ण पहलू है उसकी रहस्यात्मकता.उनकी कला में यह तत्व भारतीय परंपराओं से प्रेरित है, जहां हर वस्तु के पीछे एक गूढ़ अर्थ विद्यमान होता है. उनकी कलाकृतियों में यह प्रभाव स्पष्ट रूप से दृश्यमान है कि वे भारतीय संस्कृति, दर्शन और अध्यात्म से कितने जुड़े हुए हैं. पुष्कले अपनी कलाकृतियों द्वारा इस बात को जाहिर करते हैं कि रहस्य ही कला को जीवंत और अनंत बनाता है. उनके लिए कला केवल बाहरी सौंदर्य नहीं है, बल्कि अंतरात्मा की यात्रा है, जो रंगों और आकारों के माध्यम से अपनी बात कहती है.
भारतीय कला परंपरा में मनीष पुष्कले
मनीष पुष्कले ने अपनी कला के माध्यम से भारतीय कला परंपरा को नितांत अपनी तरह से प्रस्तुत किया है. उनकी कला में आधुनिकता और परंपरा का एक अनूठा मेल है. ऐसा प्रतीत होता है कि वे भारतीय पारंपरिक कलाओं से प्रेरणा लेते हैं, लेकिन उन्हें समकालीन दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत करते हैं. उनके चित्रों में वह गहराई और बारीकी है, जो पारंपरिक कला में देखने को मिलती है, और साथ ही वह नवाचार भी है, जो आधुनिक कला को विशिष्ट बनाती है. उनकी कला में भारतीयता की गूंज स्पष्ट है, लेकिन इसे समझने के लिए सतही दृष्टि पर्याप्त नहीं. यही वजह है कि उनकी रचनाएं अमूर्त होते हुए भी अत्यंत सजीव हैं और सजीव होते हुए अत्यंत व्यक्तिगत भी लगती हैं. लेकिन कला की खूबसूरती इसी में है कि यह हर देखने वाले के अस्तित्व से अपने अनुसार जुड़ जाती है.
कला और साधना
मनीष पुष्कले की कलाकृतियां उनकी साधना का परिणाम हैं. दरअसल एक सच्ची कला वही है, जो कलाकार की साधना और उसकी आंतरिक यात्रा का प्रतिबिंब हो.उनके चित्रों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि वे अपनी कला के एक साधक हैं, जो अपने रंगों और आकारों के माध्यम से संसार के गूढ़ रहस्यों को पकड़ने की कोशिश करने के साथ स्वयं उसी में रम जाते हैं.
मनीष पुष्कले की कलाकृतियों की प्रदर्शनी दिल्ली के आकार-प्रकार गैलरी में लगी. इसने उनकी कला के इस अद्वितीय स्वरूप को और अधिक स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया. यह प्रदर्शनी सिर्फ उनके चित्रों का प्रदर्शन नहीं थी, बल्कि उनका एक अनुभव था जो आकार, रंग और रहस्य के माध्यम से हमें कला के प्रति आत्मचिंतन की ओर ले जाता है. इस प्रदर्शनी ने यह साबित कर दिया है कि मनीष पुष्कले भारतीय कला के उन चुनिंदा कलाकारों में से हैं, जो अपनी रचनाओं से कला के नए मानक स्थापित कर रहे हैं. उनके चित्र हमें याद दिलाते हैं कि सच्ची कला वही है, जो मनुष्य को उसकी आत्मा के सबसे गहरे रहस्यों से परिचित कराए.
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