महाकुंभ क्यों पूरे विश्व को कर रहा आकर्षित​

 प्रयागराज में 144 सालों के बाद यानि 12 पूर्ण कुंभ के बाद महाकुंभ का आयोजन 13 जनवरी से शुरू हुआ है. हर 12 साल में एक पूर्ण कुंभ प्रयागराज में आयोजित होता है.

इटली के खगोलशास्त्री और भौतिक विज्ञानी गैलीलियो ने 1632 में जब अपनी पुस्तक में लिखा कि पृथ्वी, सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है, तो पोप को उनकी इस बचकानी बात पर गुस्सा आया क्योंकि चर्च आम जन को यही समझाता था कि सूर्य पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता है. ज्ञान पर चर्च के आधिपत्य को जिस तरह से गैलीलियो ने चुनौती दी, उसका परिणाम यह हुआ कि उनको मृत्यु दंड मिला. लेकिन गैलीलियो के काल से 800 साल पहले यानि आज से लगभग 1200 साल पहले भारत में सनातन धर्म के आधुनिक प्रवर्तक आदि गुरु शंकराचार्य, प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत कर रहे थे. इस महाकुंभ के आयोजन के समय ग्रहों की जो स्थिति थी, उसी स्थिति में आज 2025 में भी प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हो रहा है. उस समय आदि गुरु शंकराचार्य ने निर्णय लिया कि जब गुरु वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में होंगे तो कुंभ का आयोजन होगा. ग्रहों की इन्हीं विशेष परिस्थिति में आज प्रयागराज में भी महाकुंभ हो रहा है. आधुनिक और विशाल टेलीस्कोपों से प्राप्त जानकारी के आधार पर भी प्रयागराज में लगने वाले महाकुंभ के दौरान ग्रहों की वही स्थिति है, जिसकी गणना हजारों साल पहले सनातन विज्ञान कर चुका है. 

जब पश्चिम का विज्ञान ग्रहों की सही स्थिति के बारे में जानकारी देने वाले गैलीलियो को मृत्युदंड दे रहा था तब सनातन संस्कृति उसी विज्ञान का उपयोग मानव विकास और कल्याण के लिए कर रहा था. ज्ञान और विज्ञान के इतिहास में ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, जो यह स्थापित करते हैं कि सनातन संस्कृति के आधार में जो विज्ञान मौजूद है, उस विज्ञान को अभी पश्चिम का विज्ञान अपने आधुनिक यंत्रों और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से समझने का प्रयास कर रहा है. और इसमें भी कोई मतभेद नहीं है कि बारह सौ साल के गुलामी के काल खंड में भारत का सनातन विज्ञान, समाज से इतना दूर और ओझल हो गया कि इसमें अंधविश्वास और पाखंड हावी हो गया. लेकिन आधुनिक विज्ञान के शिक्षा के प्रसार से सनातन विज्ञान का वह ज्ञान एक बार फिर प्रयागराज में आलोकित हो रहा है. 

महाकुंभ में विश्व की जिज्ञासा
प्रयागराज में 144 सालों के बाद यानि 12 पूर्ण कुंभ के बाद महाकुंभ का आयोजन 13 जनवरी से शुरू हुआ है. हर 12 साल में एक पूर्ण कुंभ प्रयागराज में आयोजित होता है. 12 पूर्ण कुंभ के बाद ग्रहों की स्थिति महाकुंभ के लिए बनती है. इस समय सूर्य, चंद्रमा, शनि और वृहस्पति की स्थिति 144 साल बाद ऐसी है कि महाकुंभ का शुभ मुहुर्त बन रहा है. इस महाकुंभ में दुनिया के करीब 183 देशों के लोगों में आने की जिज्ञासा दिखी है. महाकुंभ की आधिकारिक बेवसाइट पर अभी तक 183 देशों के लोग विजिट कर चुके हैं. यही नहीं महाकुंभ के पहले ही दिन 13 जनवरी से एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन जॉब्स, कल्पवास करने के लिए प्रयागराज पहुंच चुकी हैं. कल्पवास के दौरान महाकुंभ में 13 जनवरी से 26 फरवरी तक प्रयागराज में संगम के तट पर साधु-संन्यासियों के संग रहकर आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया जाता है और परंपरा के अनुसार संगम में स्नान किया जाता है. 

ऐसा ही कल्पवास स्टीव जॉब्स की पत्नी लॉरेन जॉब्स भी कर रही हैं. लॉरेन जॉब्स निरंजिनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशनंद गिरि की शिष्या हैं. महाकुंभ के लिए प्रयागराज पहुंचने से पहले लॉरेन जॉब्स ने काशी में बाबा विश्वनाथ धाम का भी दर्शन किया. महाकुंभ में जहां लाखों विदेशी श्रद्धालु संगम में स्नान करने के लिए आ रहे हैं, वहीं दुनिया के हर देश का बड़ा से बड़ा मीडिया संस्थान महाकुंभ के उत्साह और आस्था को देखने के लिए पहुंचा है. सनातन धर्म के इस विशाल मेले में इस बार करीब 45 करोड़ श्रद्धालु स्नान और दर्शन करने पहुंच रहे हैं. महाकुंभ में 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा के शुभ मुहुर्त में पहले दिन जो स्नान हुआ, उसमें डेढ़ करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई, जबकि अमृत स्नान के पहले दिन आस्था की डुबकी लगाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या साढ़े तीन करोड़ तक पहुंच गई. जाहिर है जिस महाकुंभ में दो दिन के भीतर 5 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाई, उस तरह पूरी दुनिया की नजरें टिक गई हैं. महाकुंभ का ये महापर्व महाशिवरात्रि यानि 26 फरवरी तक चलेगा. इस दौरान पांच विशेष स्नान होंगे. मकर संक्रांति (14 जनवरी) के अलावा मौनी अमावस्या (29 जनवरी), बसंत पंचमी (3 फरवरी) और महाशिवरात्रि (26 फरवरी) का ये अमृत स्नान विशेष महत्व है. यह वो समय होता है जब सनातन संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाले सभी अखाड़ों के साधु संन्यासी पूरे उत्साह और जोश के साथ अमृत पान करने के लिए त्रिवेणी में डुबकी लगाते हैं.

महाकुंभ में क्यों आते हैं
सनानत धर्म ने ज्ञान और विज्ञान को आधार बनाकर मानव चेतना को विकसित करने की जो संस्कृति विकसित की है, वह अपने आप में अद्भुत और अविश्वनीय है. जर्मनी के दार्शनिक और संस्कृत भाषा के विद्वान मैक्समूलर ने भारत की सनातन संस्कृति के बारे में कहा है, “यदि हमसे पूछा जाता कि आकाश तले कौन सा मानव मन सबसे अधिक विकसित है, इसके कुछ मनचाहे उपहार क्या हैं, जीवन की सबसे बड़ी समस्याओं पर सबसे अधिक गहराई से किसने विचार किया है और इसके समाधान पाए हैं तो मैं कहूंगा इसका उत्तर है भारत.” प्रयागराज के महाकुंभ में श्रद्धालु, जीवन से जुड़े इन्हीं सवालों का जवाब पाने के लिए आते हैं, जिसका समाधान भारत के अध्यात्म विज्ञान के पास है. भारत के इसी आध्यात्मिक विज्ञान को एक जगह समेटकर एक साथ दुनिया के सामने वर्तमान स्वरूप में प्रस्तुत करने का काम आदि गुरू शंकाराचार्य ने करीब 1200 साल पहले किया. इससे पहले भी महाकुंभ का आयोजन किया जाता था, लेकिन इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है. पौराणिक कथाओं के अनुसार देवताओं और असुरों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के दौरान जो अमृत कलश निकला था, उस अमृत कलश से अमृत छलककर प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरा था. इस अमृत को प्राप्त करने के लिए इन तीर्थ स्थलों पर पौराणिक काल से कुंभ का आयोजन ग्रहों की विशेष स्थिति में होता है, जिसमें संमुद्र मंथन हुआ था.

आदि गुरु शंकाराचार्य ने सनातन धर्म के तीन वैचारिक पंथों – शैव, वैष्णव और उदासीन को आधार बनाकर 13 अखाड़े बनाए. ये 13 अखाड़े भारत के सनातन शास्त्र और शस्त्र के ज्ञान को न सिर्फ संजोकर रखते हैं, बल्कि उनमें अनुसंधान करते हैं. ये सभी अखाड़े हर कुंभ, पूर्ण कुंभ और महाकुंभ के अवसर पर एकत्र होकर जीवन के मूल प्रश्नों की व्याख्या करते हैं. जैसे, यह जीवन क्या है, सत्य क्या है, इस सत्य को प्राप्त करने के जो मार्ग हैं उनमें उठने वाली शंकाओं का समाधान क्या है, इत्यादि तमाम प्रश्नों का हल जिज्ञासु के सामने रखते हैं.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में आधुनिक विज्ञान के पास इन सवालों का जवाब नहीं हैं और इन्हीं सवालों पर मनन चिंतन महाकुंभ में होता है. सनातन के ज्ञान से निकलने वाले जीवन के इन मूल सवालों के जवाब से ऐसी आस्था उत्पन्न होती है, जो तर्क की कसौटी पर गढ़ी हुई होती है. सामान्य जन, जिनके पास तर्क को समझने का वक्त और क्षमता नहीं होती है, वह साधु संन्यासियों के ज्ञान पर विश्वास करके अपने जीवन में आस्था को प्रगाढ़ करते हैं. यही कारण है कि महाकुंभ में आने वाला हर व्यक्ति चाहे वह तार्किक हो या अतार्किक हो वह अभिभूत हो जाता है.

महाकुंभ की विशालता
इस बार प्रयागराज का महाकुंभ इतिहास में सबसे विशाल महाकुंभ है. इस महाकुंभ में 45 करोड़ श्रद्धालु एकत्रित हो रहे हैं, जिसके लिए 4000 हेक्टेयर भूमि पर एक नया जिला, महाकुंभ मेला, बनाया गया है. यह उत्तरप्रदेश राज्य का 76वां जिला है, यह अस्थायी जिला है. महाकुंभ के दौरान इस जिले का अलग से अपना प्रशासन है, पुलिस है, अस्पताल है और तमाम तरह की सुविधाएं देने वाली संस्थाएं हैं. महाकुंभ में स्नान करने के लिए 41 घाटों का निर्माण किया गया है, जिनमें 10 घाट पक्के हैं और 31 घाट अस्थायी हैं. इनमें सबसे महत्वपूर्ण घाट त्रिवेणी घाट है. इस घाट पर गंगा और यमुना नदी के संगम पर एक अदृश्य पर अनुभव में आने वाली सरस्वती नदी का सानिध्य प्राप्त होता है. इस सरस्वती नदी में स्नान करने की विशेष मान्यता है. सनातन धर्म में सरस्वती को तर्क और ज्ञान के शक्ति की देवी माना जाता है. इसलिए संगम में स्नान करने का उद्देश्य होता है कि तर्क और ज्ञान के आधार पर जीवन के सवालों यानि पापों का समाधान किया जाए. दुनिया के महान और जर्मनी के सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी एल्बर्ट आइंस्टाइन ने भारत के बारे में कहा है “हम सभी भारतीयों का अभिवादन करते हैं, जिन्होंने हमें गिनती करना सिखाया, जिसके बिना विज्ञान की कोई भी खोज संभव नहीं थी.!” 

हरीश चंद्र बर्णवाल वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं…

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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