भारतीय कानून में मैरिटल रेप कानूनी अपराध नहीं है. इसे अपराध घोषित करने की मांग को लेकर कई संगठनों की मांग लंबे अरसे से जारी है.
वैवाहिक बलात्कार (Marital Rape) को अपराध घोषित करने की मांग करने वाली याचिकाओं पर शीघ्र सुनवाई सुनिश्चित करने की गुहार पर सुप्रीम कोर्ट ने हामी भर दी है. हालांकि तारीख तय नहीं हुई है. लंबे समय से लंबित इस मामले पर सुनवाई के लिए बुधवार को CJI की अगुआई वाली पीठ के सामने उल्लेख किया गया. वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने वैवाहिक बलात्कार के मामले पर जल्द सुनवाई का आग्रह करते हुए कहा कि मामला सुनवाई के लिए अक्सर सूचीबद्ध होता है. लेकिन उस पर सुनवाई नहीं हो पाती. इसकी कोई तारीख तय कर दी जाए.
वहीं अन्य वकील करुणा नंदी ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के नोटिस पर केंद्र ने अभी तक अपना जवाब दाखिल नहीं किया है. CJI जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यदि केंद्र सरकार जवाब दाखिल नहीं कर रही है तो सरकार कानून के मुद्दे पर बहस करे. CJI ने कहा कि आज मामला सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है. देखते हैं क्या होता है. आखिर में तारीख पर फैसला लेने पर विचार करेंगे. दरअसल याचिकाकर्ता की वकील इंदिरा जयसिंह और करुणा नंदी ने सुप्रीम कोर्ट से इस संवेदनशील मामले में जल्द सुनवाई की मांग की है. क्योंकि इस कृत्य में सजा का प्रावधान नई न्याय संहिता में भी नहीं है. क्योंकि ये कोर्ट में लंबित है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनाया था अलग-अलग निर्णय
इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरिशंकर की खंडपीठ ने खंडित यानी अलग अलग निर्णय सुनाया था. दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने इस मामले पर विस्तृत सुनवाई कर 11 मई 2022 को निर्णय सुनाया था. जस्टिस राजीव शकधर ने वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को रद्द करने का समर्थन किया था. वहीं, जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि आईपीसी के तहत अपवाद असंवैधानिक नहीं है. ये तो एक बौद्धिक अंतर पर आधारित है. इसके बाद इस मामले की सुनवाई बड़ी पीठ के समक्ष कराए जाने की सिफारिश की गई थी. इस पर साल भर से ज्यादा बीत जाने के बावजूद हाईकोर्ट ने जब कोई निर्णय नहीं लिया तो दिल्ली हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता रही खुशबू सैफी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दिल्ली हाईकोर्ट के खंडित निर्णय को चुनौती दी है.
अब सुप्रीम कोर्ट को ये तय करना है कि मैरिटल रेप अपराध है या नहीं.
भारत में मैरिटल रेप कानूनी अपराध नहीं
भारतीय कानून में मैरिटल रेप कानूनी अपराध नहीं है. इसे अपराध घोषित करने की मांग को लेकर कई संगठनों की मांग लंबे अरसे से जारी है. दिल्ली हाईकोर्ट में आईपीसी की धारा 375(दुष्कर्म) के तहत वैवाहिक दुष्कर्म को अपवाद माने जाने को लेकर संवैधानिक तौर पर चुनौती दी गई. साल 2021 के अगस्त में केरल हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा था कि भारत में मैरिटल रेप के लिए सजा का प्रावधान नहीं है. लेकिन इसके बावजूद ये तलाक का आधार हो सकता है. हालांकि, केरल हाईकोर्ट ने भी मैरिटल रेप को अपराध मानने से इनकार कर दिया.
मैरिटल रेप या वैवाहिक बलात्कार भारत में अपराध नहीं है. अगर कोई पति अपनी पत्नी से उसकी सहमति के बगैर सेक्सुअल रिलेशन बनाता है तो ये मैरिटल रेप कहा जाता है लेकिन इसके लिए कोई सजा का प्रावधान नहीं है. 2017 में मैरिटल रेप को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा था, ‘मैरिटल रेप को अपराध करार नहीं दिया जा सकता है और अगर ऐसा होता है तो इससे शादी जैसी पवित्र संस्था अस्थिर हो जाएगी.’ ये तर्क भी दिया गया कि ये पतियों को सताने के लिए आसान हथियार हो सकता है.
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