उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘बटेंगे तो कटेंगे’ नारे का इस्तेमाल बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुए हमले के बाद करना शुरू किया. उनका कहना है कि यह नारा देश की एकता और अखंडता के लिए है. वहीं विपक्ष इसे सांप्रदायिक नारा बता रहा है.
देश के दो राज्यों में विधानसभा का चुनाव हो रहा है.यहां एक नारा गूंज रहा है ‘बटंगे तो कटेंगे’. इसे दिया है उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने. कट्टर हिंदू की छवि वाले आदित्यनाथ ने यह नारा तब दिया जह पड़ोसी बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद वहां हिंदुओं पर हमले शुरू हो गए. देखते ही देखते यह नारा काफी मशहूर हो गया. इस नारे का इस्तेमाल हरियाणा और जम्मू कश्मीर के चुनाव में भी हुआ था.विपक्ष ने इसे धार्मिक ध्रुवीकरण का प्रयास बताते हुए इसकी आलोचना की. इस नारे का इस्तेमाल बीजेपी के नेता तो कर रहे हैं.लेकिन एनडीए में उसके सहयोगी दल इससे खुश नजर नहीं आ रहे हैं. वो इसकी आलोचना कर रहे हैं.
क्या है योगी आदित्यनाथ का ‘बंटेंगे तो कटेंगे’
योगी आदित्यनाथ इस नारे को देश की एकता से जोड़कर बताते हैं.उनका कहना है कि हमारी ताकत एकता है.उनका कहना है कि अगर हम बंट गए तो हमारा पतन हो जाएगा. इसलिए हमें हर हाल में एक रहना है.वो बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले के समय विपक्ष पर चुप रहने का भी आरोप लगाते रहे हैं. उनका कहना है कि विपक्ष फिलस्तीन पर तो प्रतिक्रिया देता है, लेकिन बांग्लादेश पर चुप्पी साध लेता है, क्योंकि उसे वोट बैंक की चिंता है.
जिस समय से योगी आदित्यनाथ ने यह नारा देना शुरू किया था.उससे दो महीने पहले ही लोकसभा चुनाव के नतीजे आए थे. उसमें बीजेपी 240 पर सिमट गई थी. यह हाल तब था जब बीजेपी ने ‘400 पार’ का नारा दिया था. बीजेपी ने 400 सीटें जीतने के लक्ष्य के साथ प्रचार अभियान चलाया था.विपक्ष ने इसका मुकाबला संविधान और आरक्षण पर खतरे को मुद्दा बनाकर किया था.लेकिन विपक्ष बीजेपी को सरकार बनाने से रोक नहीं पाया था.बीजेपी ने अपने गठबंधन सहयोगी चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी और नीतीश कुमार की जेडीयू के समर्थन से बहुमत जुटा लिया. यह बीजेपी के कमजोर होने का संकेत था, क्योंकि इससे पहले बीजेपी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दो सरकारें अकेले के दम पर बनाई थीं.उसने अकेले के दम पर बहुमत जीता था.
लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद योगी आदित्यनाथ की छवि
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सबसे बुरी हार उत्तर प्रदेश में मिली. साल 2019 में 62 सीटें जीतने वाली बीजेपी 2024 में 33 सीटों पर सिमट गई.यहां तक कि जिस राम मंदिर और अयोध्या के सहारे बीजेपी ने कई चुनाव जीते,उसी अयोध्या में उसे हार का सामना करना पड़ा.यह तब हुआ जब पीएम मोदी ने जनवरी में ही अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कराई थी. इस हार को बीजेपी की बड़ी हार के रूप में देखा गया. इसके बाद मीडिया में योगी आदित्यनाथ को लेकर अटकलों का बाजार गर्म हो गया.इसके बाद योगी आदित्यनाथ अपने कट्टर हिंदूवादी विचारों को आगे बढ़ाने लगे.इसी कड़ी में खाने में थूकने और गंदगी मिलाने के खिलाफ और खाने-पीने की दुकानों के सामने दुकानदारों के नाम लिखने को लेकर उनकी सरकार अध्यादेश लेकर आई. यह कांवड़ यात्रा का समय था.उनके इस कदम का विपक्ष के साथ-साथ बीजेपी के सहयोगी दलों ने भी विरोध किया. इसमें राष्ट्रीय लोकदल के साथ-साथ लोजपा और जेडीयू भी शामिल थी.
अगस्त में बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के विरोध में युवाओं ने बगावत कर दी.इस दौरान हिंदुओं , उनके घरों और मंदिरों पर हमले किए गए.इसके बाद योगी आदित्यनाथ ने ‘बंटेंगे तो कंटेंगे’का नारा दिया.देखते ही देखते यह नारा लोकप्रिय हो गया.जगह-जगह इसके पोस्टर नजर आने लगे.योगी आदित्यनाथ चुनावी राज्यों में अपने भाषणों में इसे इस्तेमाल करने लगे. यहां तक की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आएसएस) तक उनके इस नारे का समर्थन कर दिया. अक्तूबर में उत्तर प्रदेश के मथुरा में आयोजित एक कार्यक्रम में आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय हसबोले ने कहा,” हिदू समाज एकता में नहीं रहेगा तो आजकल की भाषा में बंटेंगे तो कंटेंगे हो सकता है.” उन्होंने इस नारे की भावना को सही ठहराते हुए कहा कि इसका उद्देश्य हिंदुओं को एकजुट रखना है.
क्यों विरोध कर रहे हैं अजीत पवार
पीएम नरेंद्र मोदी भी पिछले कुछ दिनों से इसी तरह का एक नारा दे रहे हैं, ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’. वो कांग्रेस पर समाज को बांटने का आरोप लगा रहे हैं. वो महाराष्ट्र और झारखंड की अपनी हर रैली में इस नारे को दोहरा रहे हैं. लेकिन बीजेपी के सहयोगी दल ‘बंटेंगे तो कंटेंगे’नारे से सहमत नजर नहीं आ रहे हैं. महाराष्ट्र में बीजेपी की सहयोगी अजीत पवार की एनसीपी और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिव सेना ने इस नारे से दूरी बना ली है. इन दोनों दलों ने कहा है कि यह नारा महाराष्ट्र में नहीं चलेगा.
अजित पवार ने कहा है,”दूसरे राज्यों के बीजेपी के मुख्यमंत्री तय करें कि उन्हें क्या बोलना है. महाराष्ट्र में बाहर के लोग आकर ऐसी बातें बोल जाते हैं. हम महायुति में एक साथ काम कर रहे हैं, लेकिन हमारी पार्टियों की विचारधारा अलग-अलग है. हो सकता है कि दूसरे राज्यों में यह सब चलता हो, लेकिन महाराष्ट्र में ये काम नहीं करता.” उन्होंने कहा है कि ये छत्रपति शिवाजी, राजर्षी शाहू महाराज और महात्मा फूले का महाराष्ट्र है.यहां के लोग इस तरह की टिप्पणी पसंद नहीं करते. यहां के लोगों ने हमेशा सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने का प्रयास किया है. आप महाराष्ट्र की तुलना अन्य राज्यों से नहीं कर सकते.
योगी आदित्यनाथ के इस नारे से महाराष्ट्र में बीजेपी की एक और सहयोगी एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने भी दूरी बना ली है, हालांकि पहले वो इससे सहमत नजर आ रही थी. अब उसने भी विरोध का स्वर अख्तियार कर लिया है. एकनाथ शिंदे ने कह दिया है कि यह नारा महाराष्ट्र में नहीं चलेगा.
दूसरे सहयोगी भी आए विरोध में
बीजेपी की सहयोगी जेडीयू और आरएलडी भी इसके समर्थन में नजर नहीं आ रही है. जेडीयू के एमएलसी गुलाम गौस ने पिछले हफ्ते पटना में कहा था,”बंटेंगे तो कटेंगे जैसे नारे की देश को कोई जरूरत नहीं है. इस नारे की जरूरत उन लोगों को है जिन्हें सांप्रदाय के नाम पर वोट चाहिए.जब देश की राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री हिंदू हैं तो देश में हिंदू कैसे असुरक्षित हो गए.” वहीं आरएलडी के प्रमुख जयंत चौधरी से चुनाव प्रचार के दौरान जब पत्रकारों ने जब योगी आदित्यनाथ नारे को लेकर सवाल पूछा तो उन्होंने कहा,”ये उनकी बात है.”
दरअसल एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी को महाराष्ट्र में इस नारे से सेकुलर वोटों में विभाजन होने का डर सता रहा है. ये दोनों महाराष्ट्र की पारंपरिक राजनीति में यकीन रखते हैं.’बंटेंगे तो कटेंगे’ वाले नारे से उन्हें लगता है कि उनके वोट बैंक को नुकसान हो सकता है. यही वजह है कि वो इस नारे से दूरी बनाते हुए नजर आ रहे हैं.
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