विजय दिवस (Vijay Diwas) के मौके पर एनडीटीवी के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह (VK Singh) ने सेना की बहादुरी के किस्से सुनाए और कहा कि विश्व के सैन्य इतिहास में 1971 में भारत की जीत से बड़ी जीत कहीं नहीं हुई है.
भारतीय सैनिकों के शौर्य और अद्भुत वीरता का कोई सानी नहीं है. देश को जब भी जरूरत पड़ी है, भारतीय सैनिकों ने हर बार अपने जबरदस्त पराक्रम का प्रदर्शन किया है. भारतीय सैनिकों के आगे आज ही के दिन 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के सैनिकों ने अपने हथियार डाल दिए थे. इसके साथ ही दुनिया के नक्शे पर एक नए मुल्क बांग्लादेश का जन्म हुआ. भारतीय सैनिकों के पराक्रम की याद में इस दिन को विजय दिवस (Vijay Diwas) के रूप में मनाया जाता है. पूर्व सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह इस युद्ध के दौरान लेफ्टिनेंट थे. विजय दिवस के मौके पर एनडीटीवी के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में जनरल सिंह ने सेना की बहादुरी के किस्से सुनाए और कहा कि विश्व के सैन्य इतिहास में इससे बड़ी जीत कहीं नहीं हुई है.
जनरल वीके सिंह ने कहा, “विश्व के सैन्य इतिहास में यह सबसे उत्कृष्ट उदाहरण है, जहां सबसे कम समय में मात्र 13 दिन में एक नया देश बनाना, शत्रुओं को परास्त कर 93 हजार सैनिकों का आत्मसमर्पण कराना. जब कई ताकतें आपके खिलाफ काम कर रही हो ऐसे वातावरण में सब कुछ संभव करना अपने आप में इससे अच्छा उदाहरण कहीं नहीं मिलता है.”
इस लड़ाई को आप जस्टिफाई कर सकते हैं : सिंह
उन्होंने कहा, “यह एक ऐसा युद्ध था, जिसको आप जस्टिफाई कर सकते हैं. हर लड़ाई को आप जस्टिफाई नहीं कर सकते हैं… यह एक जस्ट वार था. क्योंकि करोड़ों बांग्लादेश के नागरिक आपके पास आ रहे थे और उनका दमन हो रहा था. लाखों लोगों की हत्या कर दी गई. लाखों महिलाओं का अपहरण कर उनका बलात्कार किया गया. बच्चे मार दिए गए. विद्यार्थी मार दिए गए… उस हालात में जाकर हमने सब कुछ रोका और उस देश की स्थापना की.”
पूर्व सेना प्रमुख ने कहा कि हम एक महीने में बागडोर वापस संभलाकर वापस आ गए. जस्ट वार का इससे अच्छा उदाहरण आपको कहीं नहीं मिल सकता है.
युद्ध के दौरान भारतीय सेना की शानदार रणनीति
सिंह ने कहा कि इस युद्ध में भारतीय सेना की रणनीति बहुत ही बेहतर थी. एक रणनीति के तहत कोशिश की गई कि पाकिस्तान की सेना अचानक घबरा जाए. उन्होंने बताया कि हमारी फौजें निकलकर के पैदल उनके पीछे पहुंच गई. उन्होंने बताया कि जनरल सगत सिंह 4 कोर के कमांडर थे और हर जगह खुद जाते थे. वे सबको जानते थे. तीन बार उन पर गोलियां चली. उनके पायलट घायल हुए लेकिन वो रुके नहीं.
उन्होंने बताया कि युद्ध का संचालन बहुत सटीक था. मेघना नदी को हेलीकॉप्टर से पार किया गया. यह प्लान में नहीं था, लेकिन मौके का पूरा फायदा उठाया गया. पाकिस्तान की सेना को उम्मीद नहीं थी कि हमारी सेना मेघना नदी को पार कर जाएगी. उनका जब खबर मिली तो वहां पर अफरातफरी मच गई. यह रणनीति थी वह बहुत ही शानदार था.
हम जिनेवा कंवेंशन का पालन करते हैं, PAK सेना नहीं : सिंह
उन्होंने बताया कि 1971 के युद्ध में मैं 20 साल का था. सीओ साहब ने कई काम दे रखे थे. उस यूनिट की आबोहवा ऐसी है कि अपने आप जोश आ जाता था. तीन-तीन दिन तक आपके पास रसद नहीं पहुंची है और आप चले जा रहे हैं कोई दिक्कत नहीं थी.
उन्होंने कहा कि पहले हमने रिफ्यूजी कैंप में लोगों से बात की थी. हमने उनको परेशान देखा था. हमारे अंदर बहुत गुस्सा था लेकिन हम मानवता को नहीं भूले. संयुक्त राष्ट्र के जिनेवा कंवेशन का पालन करना पड़ता है, पाकिस्तान की फौज इनका पालन नहीं करती है, लेकिन हम करते हैं. उन्होंने कहा कि 93 हजार कैदियों को वो सब सुविधाएं दी गई जो संयुक्त राष्ट्र के जिनेवा कंवेंशन के तहत दी जानी चाहिए.
जो देश से जुड़ा नहीं, वो देश के बारे में क्या सोचेगा : सिंह
बांग्लादेश के हालात को लेकर पूर्व सेना प्रमुख ने कहा कि उनके जो कार्यवाहक राष्ट्राध्यक्ष बने हैं, उनका बैकग्राउंड देखिए आम आदमी उन्हें सूदखोर कहते हैं. उन्होंने कहा कि वह क्लिंटन साहब के खेमे में थे. वह ब्लैक को व्हाइट बनाने वाले व्यक्ति थे. 1971 में वो क्या थे पूछकर देखिए. जो आदमी अपने देश के साथ जुड़ा ही नहीं है वो अपने देश के बारे में क्या सोचेगा.
उन्होंने कहा कि लगता है कि वहां लोग भूल गए हैं कि उनके साथ क्या हुआ है. उनकी मां-दादी के साथ क्या हुआ होगा? यह देश ज्यादा दिन चलने वाला नहीं है.
आज जो वहां खड़े हैं हल्ला करते हैं हिंदुओं के प्रति बुरा बर्ताव करते हैं उस समय तो पूरा देश एक था, हिंदू-मुसलमान एक साथ लड़े थे.
अत्याचारों के लिए पाकिस्तान को माफी मांगनी चाहिए : सिंह
उन्होंने पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा पूर्वी पाकिस्तान में किए गए अत्याचारों को लेकर कहा कि पाकिस्तान को इसके लिए जरूर माफी मांगनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि 1975 में बंगबंधु को मार दिया गया, अब उनकी मूर्ति तोड़ी जा रही है. मुझे लगता है कि कहीं हमारी भी कमी है कि हम उन्हें ढंग से बता नहीं पाए कि आखिर हुआ क्या था. पीढ़ियों को इतिहास के बारे में बताना था.
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