संभल से 25 किलोमीटर दूर चंदौसी में एतिहासिक बावड़ी मिली थी. अब इस जगह पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की तरफ से खुदाई की जा रही है. एनडीटीवी की टीम ने ग्राउंड जीरो पर जाकर अब तक हुए सर्वे का जायजा लिया.
उत्तर प्रदेश के संभल में एक के बाद एक बड़े खुलासे हो रहे हैं. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) की तरफ से एक के बाद एक खुलासे किए गए हैं.सर्वे का मंगलवार को 11 वां दिन था. एनडीटीवी की टीम ने ग्राउंड जीरो पर पहुंचकर जानना चाहा कि अभी तक क्या-क्या मिले हैं. संभल से 25 किलोमीटर दूर चंदौसी में एतिहासिक बावड़ी मिली थी. सड़क के नीचे यह बावड़ी छिप गयी थी. हमारी टीम ने पाया कि अब तक इस मामले में 15 फीट की खुदाई हो चुकी है. अब तक कुएं तक पहुंचने का रास्ता खोज निकाला गया है. खुदाई में पता चला है कि यह तीन मंजिला बावड़ी है.
अब तक एक मंजिल की खुदाई हो चुकी है. इसके नीचे एक मंजिल और है जहां तक पहुंचने की कोशिश जारी है. अब तक की खुदाई में कई तरह के मध्यकालीन साक्ष्य मिले हैं. कुछ घड़ा मिला है. जानकारों का कहना है कि यह मध्यकालीन संरचना है.
1720 के आसपास हुआ था निर्माण
जानकारी के अनुसार इसका निर्माण 1720 में हुआ था. यहां से तकरीबन 50 किलोमीटर स्थित एक रियासत के द्वारा इसका निर्माण करवाया गया था. इस रियासत के वंसज राजा चंद्र विजय सिंह ने दावा किया है कि उनके पूर्वजों ने इसका निर्माण करवाया था. मिट्टी में दबे होने के बाद भी यह बेहद मजबूत हालत में है अभी भी. इसमें अलग-अलग कमरों का भी निर्माण किया गया है. चंद्र विजय सिंह की तरफ से दावा किया गया है कि जब सेना यहां आती थी तो वो यहां से पानी निकालने का काम किया करती थी.
बावड़ी के निर्माण में कई बातों का ध्यान रखा जाता था. कई बार रानियां भी बावड़ी में नहाने के लिए आती थी. अधिकारियों का कहना है कि लगभग 400 वर्ग मीटर में ये पूरी बावड़ी फैली हुई है. अभी पूरे इलाके में खुदाई का कार्य जारी है.
मिट्टी डालकर सबूत खत्म करने की हुई कोशिश
इस बावड़ी के ऊपर मिट्टी डालकर जमीन माफियाओं ने बेच दिया था. अभी खुदाई का कार्य जारी है. जैसे-जैसे मिट्टी को हटाया जा रहा है कई रहस्य निकलकर सामने आ रहे हैं. बावड़ी का फर्श लाल पत्थर से बना हुआ है. अभी तक एएसआई ने संभल में अब तक 19 ऐसे कुओं का सर्वे किया है. 5 मंदिर खोजकर निकाले गए हैं. संभल में कई ऐसे राज खुलने वाले हैं. संभल दिल्ली से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. संभल में पृथ्वीराज चौहान ने भी अपनी राजधानी बनायी थी. पक्की ईटों से इसका निर्माण करवाया गया था. यह चूना मिट्टी का बने हुए मसाले से जोड़ा गया है. इसकी समय-समय पर मरम्मत होती रही है.
बावड़ी क्यों महत्वपूर्ण है?
बावड़ी (जिसे बाउरी, बावली, या वाव भी कहा जाता है) एक पारंपरिक जल संरचना है, जिसे प्राचीन भारत में पानी के संरक्षण और भंडारण के लिए बनाया जाता था. यह सीढ़ीनुमा कुएं की तरह होती है, जिसमें लोग सीढ़ियों के जरिए पानी तक पहुंच सकते हैं. यह भारतीय स्थापत्य और जल प्रबंधन प्रणाली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है.बारिश के पानी को संग्रहित करने के लिए भी इनका उपयोग होता था.बावड़ी पानी को सहेजने का एक कुशल तरीका था, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां पानी की कमी थी. यह केवल जल भंडारण का स्थान नहीं, बल्कि एक सामाजिक और धार्मिक केंद्र भी हुआ करता था. गर्मियों में यह जगह ठंडक का अहसास देती थी.समय के साथ बावड़ियों का उपयोग कम हो गया, लेकिन आज ये ऐतिहासिक धरोहर और पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है.
संभल को बड़े पर्यटक स्थल के तौर पर विकसित करने की है योजना
डीएम ने कहा कि यहां 200 से लेकर 250 ऐसे स्थान होंगे, जहां पर लोग आएंगे, दो-चार दिन का समय बिताएंगे. हम कहेंगे – “एक दिन गुजारिए संभल में”. हम सभी कूपों को संरक्षित कर रहे हैं. एक कूप जल्दी ही सामने होगा. यहां के स्थान का भ्रमण किया जा रहा है. संभल के कुछ स्थानीय लोगों ने मंदिर के पास ही गली में स्थित खाली प्लॉट में बावड़ी होने का दावा किया था. डीएम के आदेश पर उसी दिन खुदाई शुरू की गई तो बावड़ी अस्तित्व में आने लगी. रोजाना सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक खुदाई का कार्य चल रहा है.
संभल को लेकर कैसे हरकत में आयी यूपी सरकार
संभल में हाल ही में प्राचीन बावड़ी और सुरंग की खोज के बाद, उत्तर प्रदेश सरकार ने त्वरित कार्रवाई की है.मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर, ASI की टीम को तत्काल प्रभाव से संभल भेजा गया है. वे इन संरचनाओं की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की जांच कर रहे हैं. स्थानीय समुदाय को इन खोजों के महत्व के बारे में जागरूक करने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं, जिससे वे इन धरोहरों के संरक्षण में सहयोग कर सकें. कई जगहों पर दोनों समुदाय के लोग सरकार के कदमों का स्वागत भी कर रहे हैं.
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