December 5, 2024
सड़क छोड़ प्रेरणा स्‍थल में क्‍या प्‍लान बना रहे किसान, जानें दिल्ली नोएडा बॉर्डर पर आज क्‍या हैं हालात

सड़क छोड़ प्रेरणा स्‍थल में क्‍या प्‍लान बना रहे किसान, जानें दिल्ली-नोएडा बॉर्डर पर आज क्‍या हैं हालात​

दलित प्रेरणा स्‍थल पर किसान जुटे हैं... प्रशासन ने किसानों से 3-4 दिनों का समय मांगा है, इसके बाद किसानों ने सरकार को 7 दिनों का समय दिया है. ऐसा लग रहा है कि किसान पूरी योजना बनाकर सड़कों पर उतरे हैं.

दलित प्रेरणा स्‍थल पर किसान जुटे हैं… प्रशासन ने किसानों से 3-4 दिनों का समय मांगा है, इसके बाद किसानों ने सरकार को 7 दिनों का समय दिया है. ऐसा लग रहा है कि किसान पूरी योजना बनाकर सड़कों पर उतरे हैं.

दादरी-नोएडा लिंक रोड पर महामाया फ्लाईओवर पर जुटे हजारों किसानों ने प्रशासन की गुजारिश के बाद सड़क छोड़ दी है. सड़क छोड़ किसानों ने प्रेरणा स्‍थल पर डेरा डाल लिया है. किसान इस समय शांत हैं. सड़कों पर ट्रैफिक सुचारू रूप से चल रहा है. प्रेरणा स्‍थल में किसानों के लिए पीने के पानी के अलावा अन्‍य बेसिक सुविधाओं का इंतजाम कर दिया गया है. लेकिन क्‍या ये तूफान आने से पहले का सन्‍नाटा तो नहीं है? सड़क छोड़ प्रेरणा स्‍थल में किसान क्‍या योजना बना रहे हैं… आखिर, किसानों का प्‍लान बी क्‍या है? प्रशासन को भी इस बात का अंदेशा है कि किसान इतनी आसानी से मानने वाले नहीं हैं, इसलिए प्रेरणास्‍थल के आसपास सुरक्षा का कड़ा इंतजाम किया गया है.

प्रेरणा स्‍थल पर आज क्‍या हालात..?

गौतमबुद्धनगर जिले में स्थित प्रेरणा स्‍थल पर किसान जुटे हैं. सोमवार को किसान सड़कों से हट गए थे. इसलिए आज ट्रैफिक सुचारू रूप से चल रह है. किसानों ने प्रशासन को 7 दिनों का समय दिया है, लेकिन इसके बावजूद सुरक्षा का मजबूत घेरा प्रेरणा स्‍थल के बाहर और भीतर सुर‍क्षाकर्मियों ने बनाया हुआ है. बीती रात लगभग 250 से 300 किसान प्रेरणास्‍थल पर रुके थे. अब आज सुबह से और किसानों का आना शुरू हो गया है. गाडि़यों में भर-भरकर किसान प्रेरणास्‍थल पहुंच रहे हैं. कुछ किसान प्रेरणा स्‍थल के भीतर हवन कर रहे हैं. हवन कर रहे एक किसान ने बताया कि वे ईश्‍वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि सरकार को सद्बुद्धि आए और वे हमारी मांगें स्‍वीकार कर लें. प्रेरणा स्‍थल में रुके किसानों ने मांग की थी कि उनके लिए पानी आदि की व्‍यवस्‍था की जाए, जिसका इंतजाम प्रशासन ने कर दिया है. अभी नोएडा के प्रेरणास्‍थल में सबकुछ शांत नजर आ रहा है. लेकिन आगे क्‍या होगा कुछ कहा नहीं जा सकता है. इसलिए भारी संख्‍या में सुरक्षाकर्मियों की तैनाती प्रेरणा स्‍थल के आसपास की गई है.

क्‍या है किसानों की प्‍लानिंग

किसान यूनियन के नेताओं को आश्‍वासन दिया गया है कि अगले 2-3 दिनों में उनकी बातचीत नोएडा प्राधिकरण के मुख्‍य सचिव से कराई जाएगी. इस दौरान किसान अपनी समस्‍याओं को प्रशासन के सामने रखा जाएगा. अधिकारियों ने आश्‍वासन दिया है कि किसानों की समस्‍याओं को गंभीरता से लिया जाएगा और समाधान निकालने की पूरी कोशिश की जाएगी. किसानों के पहले ही दिन प्रेरणा स्‍थल पर रुक जाने से लग रहा है कि वे ‘प्‍लान बी’ पहले से लेकर चले थे. अगर प्रशासन से बातचीत के बाद समस्‍या का हल नहीं निकलता है, तो किसान तुरंत सड़कों पर उतर सकते हैं. उधर, 6 दिसंबर से पंजाब के किसान भी अपनी मांगों को लेकर दिल्‍ली कूच करने की प्‍लानिंग बना चुके हैं. ऐसे में सरकार के सामने 2 मोर्चें होंगे, जहां उन्‍हें किसानों से डील करनी पड़ेगी. यानि 7 दिनों में किसानों के विरोध प्रदर्शन की ताकत डबल हो सकती है.

कौन बड़े नेता लीड कर रहे हैं

किसानों के इस विरोध प्रदर्शन को लीड कौन कर रहा है…? दिल्‍ली कूच के पहले दिन किसानों के बीच कोई बड़ा नेता इस विरोध प्रदर्शन की अगुवाई करता हुआ नजर नहीं आया. हालांकि, राकेश टिकैत के इस आंदोलन के मार्गदर्शक मंडल में शामिल होने की बात सामने आ रही है. 25 नवंबर को जब महापंचायत में यह फैसला लिया गया था कि दिल्‍ली कूच किया जाएगा, तब राकेश टिकेट वहां मौजूद थे. लेकिन इस विरोध प्रदर्शन को लीड करता हुआ कोई एक नेता नजर नहीं आ रहा है. हालांकि, लगभग सभी बड़े किसान संगठनों के नेता इस विरोध प्रदर्शन में नजर आ रहे हैं.

7 दिन के अल्‍टीमेटम के मायने क्‍या?

प्रशासन ने किसानों से 3-4 दिनों का समय मांगा है, इसके बाद किसानों ने सरकार को 7 दिनों का समय दिया है. ऐसा लग रहा है कि किसान पूरी योजना बनाकर सड़कों पर उतरे हैं. सरकार ने 4 दिनों का समय मांगा, तो किसानों ने 7 दिनों का अल्‍टीमेटम दे दिया, ताकि प्रशासन ये न कहे कि उन्‍हें समय कम मिला. किसानों ने एक बड़ा दांव ये भी खेला है कि वे वापस नहीं लौटे हैं, बल्कि उन्‍होंने नोएडा में दलित प्रेरणा स्‍थल पर डेरा डाल लिया है. किसान नेताओं का कहना है कि वह खाने-पीने की पूरी व्‍यवस्‍था करके आए हैं. अगर 7 दिनों के बाद प्रशासन कुछ नहीं करता है, तो वह तुरंत सड़कों पर उतर जाएंगे. किसानों के डेरे से दिल्‍ली भी दूर नहीं है.

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