ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय की नई रिसर्च बताती है कि युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करने के लिए सोशल मीडिया पर समय कम करना जरूरी नहीं है, बल्कि यह बदलना जरूरी है कि वे इसका इस्तेमाल कैसे करते हैं.
चाहे बात संवाद की हो या किसी तक कोई जानकारी पहुंचाने की हो. आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया की अहमियत काफी बढ़ गई है. हालांकि, इस डिजिटल युग में जितना भरोसा लोगों का सोशल मीडिया पर बढ़ा है, उतना ही इसका नुकसान भी स्वास्थ्य पर देखने को मिला है. जिस वजह से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से दूर रहने की भी सलाह दी जाती रहती है. ऐसे में आपको सोशल मीडिया एप्स डिलीट करने की जरूरत नहीं है, इसे इस्तेमाल करने के और भी तरीके हैं, जो स्वास्थ्य पर पड़ने वाले तनाव को कम कर सकते हैं.
औसतन 4.8 घंटे रोजाना सोशल मीडिया बिताते हैं अमेरिकी
सोशल मीडिया को लेकर एक शोध सामने आया है. गैलप पोल के अनुसार, अमेरिकी युवा औसतन 4.8 घंटे रोजाना सोशल मीडिया ऐप्स जैसे यूट्यूब, टिकटॉक, इंस्टाग्राम, फेसबुक और एक्स पर बिताते हैं.
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ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय की नई रिसर्च बताती है कि युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करने के लिए सोशल मीडिया पर समय कम करना जरूरी नहीं है, बल्कि यह बदलना जरूरी है कि वे इसका इस्तेमाल कैसे करते हैं.
ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय की मनोविज्ञान प्रोफेसर और अध्ययन की मुख्य लेखिका डॉ. अमोरी मिकामी ने सोशल मीडिया के सही तरीके से इस्तेमाल करने के लिए कुछ रणनीतियां भी बताई हैं। उन्होंने कहा, “कई युवाओं के लिए बात लॉग ऑफ करने की नहीं है, बल्कि सही तरीके से इसके इस्तेमाल के बढ़ने के बारे में है.”
अवसाद, चिंता और कम आत्मसम्मान
हालांकि, सोशल मीडिया को किशोरों और युवाओं में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बढ़ने से सीधे जोड़ने का कोई ठोस सबूत नहीं है, लेकिन अध्ययन बताता है कि जितना ज्यादा समय लोग स्क्रॉल करने में बिताते हैं, उतनी ही अधिक उनके अवसाद, चिंता और कम आत्मसम्मान के लक्षणों का खतरा बढ़ जाता है.
ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय की मनोविज्ञान प्रोफेसर मिकामी और उनकी टीम ने 17 से 29 साल के 393 कनाडाई लोगों को चुना, जो मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझ रहे थे और सोशल मीडिया के उनके जीवन पर असर से चिंतित थे.
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कैसे किया गया सर्वे?
इस सर्वे के दौरान प्रतिभागियों को तीन हिस्सों में बांटा गया. पहले वो लोग थे, जिन्होंने पहले की तरह सोशल मीडिया को चलाना जारी रखा, जबकि दूसरे वो लोग थे, जिन्होंने सोशल मीडिया का इस्तेमाल छोड़ दिया. वहीं, तीसरे लोग वो थे, जिन्होंने यह सिखाया गया कि सोशल मीडिया को समझदारी से कैसे इस्तेमाल करें.
करीब छह हफ्तों बाद पता चला कि जिन्होंने सोशल मीडिया छोड़ा और जिन्हें इसके बारे में सिखाया गया, दोनों ने इसका इस्तेमाल कम किया। उन्होंने बेवजह की स्क्रॉलिंग के समय को घटाया और दूसरों की तुलना में कम समय बिताया.
सर्वे से क्या पता चला?
इससे यह भी पता चला कि दोनों तरीकों से मानसिक स्वास्थ्य में फायदा हुआ, जिस समूह को सोशल मीडिया को हैंडल करना सिखाया गया, वे कम अकेलापन महसूस करते थे और उन्हें ऐसा नहीं लगता था कि वे कुछ मिस कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने अच्छी बातचीत पर ध्यान दिया. इसके अलावा जिन लोगों ने सोशल मीडिया से पूरी तरह ब्रेक लिया, उनकी चिंता और अवसाद की समस्याएं कम हुईं, लेकिन अकेलापन कम नहीं हुआ.
मिकामी के मुताबिक, “सोशल मीडिया छोड़ने से युवाओं पर अपनी ऑनलाइन छवि गढ़ने का दबाव कम हो सकता है, लेकिन सोशल मीडिया बंद करने से दोस्तों और परिवार के साथ जुड़ाव भी टूट सकता है, जिससे अकेलापन महसूस हो सकता है.”
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