प्रो.राजेंद्र प्रसाद
हमारे पड़ोसी मुल्क बांगलादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना द्वारा लगभग डेढ़ दशक तक शासित , अवामी लीग सरकार वहां नौकरियों में लागू आरक्षण और कोटा सिस्टम के कारण पैदा हुए सामाजिक-आर्थिक -राजनीतिक विवाद और हिंसक आंदोलन की शिकार हो गई। 15 जुलाई 2024 को ढाका विश्वविद्यालय में शुरू हुए इस विवाद को लेकर विरोधी छात्र गुटों में हुई झड़प का दूरगामी परिणाम इतना भयावह होगा, इसका अंदाज हसीना सरकार और वहाँ के नागरिक प्रशासन तंत्र में से किसी को नहीं था।
आंदोलकारियों से बात कर मान्य हल निकालने में विफल रहीं हसीना
उत्पन्न परिस्थितियों में वहां के सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण पर रोक लगाने के फैसले के क्रम में शेख हसीना सरकार आगे आकर आंदोलनकारियों से वार्ता करके मान्य हाल नहीं निकाल पाई। इस दौरान सरकार अपने विरुद्ध बढ़ रहे आंतरिक एवं बाह्य षड्यंत्र के तापमान का ठीक-ठीक अनुमान भी नहीं लगा पाई। सरकार का आदेश पाकर जब सेना और पुलिस ने छात्र आंदोलनकारियों को दबाने का प्रयास किया तो बेलगाम उग्रता बढ़ती गई। फलत: वहां जो आंतरिक अराजक स्थिति उत्पन्न हुई, उसमें प्रधानमंत्री शेख हसीना को बांगलादेश के सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान के समक्ष अपने पद से इस्तीफा देकर बांगलादेश छोड़ना पड़ गया।
निस्संदेह, अवामी लीग के विरुद्ध सत्ता संघर्ष में बी. एन. पी., जमाते इस्लामी , कट्टरपंथी आतंकवादी तत्व और छोटे-मोटे अतिवादी गुट सक्रिय हैं। बाहरी शक्तियों के उकसावे की आशंका भी निर्मूल नहीं है।
बंगबंधु को भी नहीं बख्शा…
पूर्व प्रधानमंत्री हसीना के बांगलादेश छोड़ने के बाद राजधानी ढाका सहित पूरे देश में हिंसा, तोड़फोड़, आगजनी और लूटपाट की पुष्ट खबरें हैं। राजधानी ढाका में बड़ी संख्या में आंदोलनकारियों द्वारा निकाले गए मार्च के बाद स्थिति पूरी तरह से अनियंत्रित हो गई। आंदोलनकारियों द्वारा प्रधानमंत्री निवास बंग भवन सहित अवामी लीग के दफ़्तरों , पूर्वमंत्रियों, सांसदों के निवास और समर्थकों पर भी बड़े पैमाने पर देशव्यापी हमले हुए हैं। राष्ट्रविरोधी तत्वों के उकसावे में आकर बांगलादेश के अभ्युदय के जननायक , राष्ट्रपिता बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की मूर्ति तक को खंडित कर दिया गया है।
अंतरिम सरकार, सैन्य नहीं बल्कि लोकतांत्रिक हो
इस बीच बांगलादेश सेनाध्यक्ष वकार- उज- जमान के हालिया बयान के अनुसार, प्रमुख राजनीतिक पार्टियों से विचार-विमर्श करके यथाशीघ्र नई सिविल अंतरिम सरकार गठित होने की संभावना है। हालांकि, जनता सैन्य नहीं, जनतांत्रिक सरकार चाहती है।
फिलहाल व्यक्तिगत रूप से असुरक्षित शेख हसीना वायुसेना के विमान हरक्यूलिस सी-130 से भारत आ चुकी हैं। अंततोगत्वा वे किस देश में राजनीतिक शरण लेंगी, यह अभी भविष्य के गर्भ में है।
वर्तमान संकट में भारत की चुनौतियां
निस्संदेह, पड़ोसी बांगलादेश और भारत दोनों 4096 किलोमीटर लम्बी अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा साझा करते हैं, जो विश्व की पाँचवी सबसे लम्बी भू-सीमा है। यह भारत के पूर्वोत्तर राज्य—असम ( 262 किमी ), त्रिपुरा( 856 किमी) , मिजोरम( 318 किमी), मेघालय(443 किमी) और पश्चिम बंगाल ( 2217 किमी) से लम्बाई में लगती है।
अपदस्थ हसीना सरकार के बाद बांगलादेश की में फैली अस्थिरता भारत के लिए सामाजिक, राजनीतिक और सामरिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण व दूरगामी चिंता का विषय है। तात्कालिक रूप से भारत के लिए क़ाबिलेगौर यह है कि वर्तमान दशा में आंतरिक कलह और हिंसा के फलस्वरूप बांगलादेशी विस्थापितों और शरणार्थियों के कारण नई जटिलताएं व चुनौतियां न उत्पन्न हों।
भारत के लिए शांति और स्थिरता आवश्यक
अस्तु, हितकारक यही है कि बांगलादेश में जल्दी अंतरिम जनतांत्रिक सरकार गठित हो , साथ ही स्थिरता और शांति की बहाली हो जाए। ऐसी दशा में पूर्वोत्तर भारत-बांगलादेश सीमा और सीमांत क्षेत्र निगरानी और सुरक्षा की दृष्टि से अति संवेदनशील हो गए हैं।
इंडियन गवर्नमेंट को देना होगा साथ
इतिहास साक्षी है कि भारत ने 1971 में पाकिस्तान के पूर्वी अंग को काटकर बांगलादेश बनाने में अहं भूमिका का निर्वहन किया था , उसी प्रकार अब भारत को सतत इस संकटग्रस्त मुल्क में स्थिरता और शांति की बहाली में निकट सहयोग करना होगा। अन्यथा, भारतविरोधी बाह्य शक्तियाँ मौक़े का फायदा उठाने की कोशिश शुरू कर देंगी, जो भारतीय के बहुआयामी राष्ट्रीय हितों और दक्षिण एशियाई व हिंद महासागरीय सुरक्षा के लिए अत्यधिक घातक होगा।
खासतौर पर, हिंद महासागर में विस्तारवादी चीन की “स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स” ( मोतियों की डोर) से जुड़ी रणनीतिक गतिविधियां, पाकिस्तान और भारत के पूर्वोत्तर सीमापार से भारत-विरोधी कट्टरपंथी इस्लामिक आतंकवाद, अवैध घुसपैठ, तस्करी और मादक द्रव्यों के अवैध व्यापार से जुड़ी भारत की चुनौतियां और जटिल हो सकती हैं।
प्रत्येक दशा में बांगलादेश की राजनीतिक स्थिरता और बदलते परिवेश में उसके साथ सकारात्मक सम्बंधों की पारस्परिकता को अविलम्ब बहाल करने के लिए उचित वातावरण बनाने के लिए हर सम्भव सहयोग समय का तकाजा है।
(प्रो. राजेंद्र प्रसाद, यूपी के गोरखपुर विश्वविद्यालय, प्रो. राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया) विश्वविद्यालय प्रयागराज के अलावा बिहार के मगध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति हैं। आप दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विवि में रक्षा एवं स्ट्रेटेजिक अध्ययन विभाग के पूर्व-प्रोफेसर एवं अध्यक्ष हैं। रक्षा अध्ययन के क्षेत्र में 46 साल की विशेषज्ञता का अनुभव रखते हैं।)