छठ के पावन पर्व की शुरुआत नहाए खाए के साथ हो गई है, 6 तारीख को खरना किया जाएगा उसके बाद 7 तारीख को सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा, ऐसे में हम आपको बताते हैं इस पर्व और इसकी विशेषता के बारे में.
Chhath Puja 2024: यूपी, बिहार और पूर्वांचल में छठ पर्व सबसे बड़े त्योहार में से एक माना जाता है, 7 नवंबर को इस साल छठ पूजा की जाएगी. हालांकि, 6 नवंबर को छठ पूजा का दूसरा दिन है, जिसे खरना (Kharna) कहते हैं, इसकी शुरुआत 5 नवंबर से हो गई है जब नहाए खाए (Nahay khay) हुआ, इसके बाद खरना पर व्रत करने वाली महिलाएं शाम के समय सूर्यास्त के बाद दूध, चावल और गुड़ की खीर रोटी के साथ छठी मैया को अर्पित करती हैं और उसके बाद व्रत करने वाली महिलाएं इसका सेवन करती हैं. इसके साथ ही 7 नवंबर को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी की शाम को डूबते हुए सूर्य और अगले दिन सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य (Surya agrh) दिया जाएगा.
छठ पर्व पर क्यों दिया जाता है सूर्य देव को अर्घ्य
छठ पूजा के दौरान डूबते और उगते हुए सूर्य को जल चढ़ाने की परंपरा है, भगवान सूर्य पंचदेवों में से एक हैं और इसी कारण किसी भी शुभ काम की शुरुआत पंचदेवों की पूजा के साथ की जाती है. कहते हैं सूर्य देव को अर्घ्य देने से नकारात्मक विचार खत्म होते हैं, इससे स्वास्थ्य लाभ मिलता है. सूर्य को अर्घ्य चढ़ाकर सूर्य मंत्र का और उनके नाम का जाप करना चाहिए. छठ पूजा पर सूर्य देव को अर्घ्य चढ़ाने के साथ-साथ छठी माता की पूजा की जाती हैं.
छठी मैया और सूर्य देव का रिश्ता
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव की बहन छठी माता हैं, ऐसे में छठ की पूजा में छठी मैया की विधि विधान से पूजा अर्चना करने के साथ ही सूर्य देव को अर्घ्य देने का विशेष महत्व होता हैं. कहते हैं इन दोनों के आशीर्वाद से संतान को अच्छा स्वास्थ्य मिलता है और घर में सुख शांति और समृद्धि आती है.
छठ से जुड़ी हुई मान्यताएं
छठ पर्व को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं, कहते हैं कि प्रकृति ने खुद को छह भागों में बांटा है, इनमें छठे भाग को मातृ देवी कहा जाता है. छठ माता को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री कहा जाता हैं, इतना ही नहीं देवी दुर्गा के छठे रूप यानी कि कात्यायनी को भी छठ माता कहते हैं. कहते हैं छठ माता संतान की रक्षा करने वाली देवी होती हैं, इस कारण संतान के सौभाग्य, लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य की कामना के लिए छठ पूजा का व्रत किया जाता है. मान्यताओं के अनुसार, बिहार में देवी सीता, कुंती और द्रौपदी ने भी छठ पूजा का व्रत किया था और इस व्रत के प्रभाव से उनके जीवन के कष्ट दूर हो गए थे.
36 घंटे का निर्जला व्रत करने का महत्व
छठ पूजा की शुरुआत नहाए खाए से होती है, जिसमें कद्दू और भात खाया जाता है, इसके बाद छठ के दूसरे दिन खरना होता है, जिसमें सूर्यास्त के बाद पीतल के बर्तन में गाय के दूध से बनी खीर का बनाकर छठी मैया को भोग लगाया जाता है और व्रत करने वाली महिलाएं इस खीर का सेवन करती हैं. लेकिन कहते हैं कि खीर खाते समय अगर पीछे से कोई आवाज सुनाई दी जाए, तो खीर को वहीं छोड़ देना चाहिए, इसके बाद पूरे 36 घंटे का निर्जला व्रत किया जाता है.
सूर्यास्त और सूर्योदय के समय अर्घ्य देने का महत्व
छठ पूजा के तीसरे दिन यानी कि 7 नवंबर को शाम को सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं सुबह से निर्जला व्रत करती हैं. प्रसाद में ठेकुआ बनाया जाता है, शाम को पूजा करने के बाद रात में भी व्रत किया जाता है और चौथे दिन यानी कि सप्तमी तिथि, 8 नंवबर को सुबह उठते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत का पारण किया जाएगा.
सूर्य को अर्घ्य देने के फायदे
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य को जल चढ़ाने के वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित फायदे भी होते हैं. कहते हैं कि इससे शरीर में पॉजिटिव एनर्जी का संचार होता है, सूर्य की किरणों से विटामिन डी मिलता है, जिससे हड्डियां मजबूत होती हैं. मानसिक और शारीरिक सकारात्मक मिलती है, ये आंखों के लिए फायदेमंद होता है, पाचन में सुधार करता है और इम्यून सिस्टम को स्ट्रांग करता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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