Dev Deepawali Date: देव दीपवली का मतलब देवताओं के धरती पर आकर दीपावली मनाने का उत्सव है. यह त्योहार कार्तिक पूर्णिमा पर पड़ता है.
Dev Diwali 2024: देव दीपावली की तैयारियां जोर-शोर पर हैं. काशी की सजावट देखते ही बन रही है. घाटों को दीयो से पाट देने की तैयारी है. इस बार 40 देशों के मेहमान भी आने वाले हैं. 15 लाख टूरिस्ट देवताओं की दीपावली (Dev Deepawali) की रौनक देखने आ रहे हैं. देव दीपवली का मतलब देवताओं के धरती पर आकर दीपावली मनाने का उत्सव है. इस बार 15 नवंबर के दिन यह त्योहार मनाया जाएगा. वाराणसी में कभी महज 80 दीयों से शुरू इस पर्व में अब 20-20 लाख दीप जलाए जाते हैं. अस्सी घाट से लेकर संत रविदास घाट और वरुणा नदी के तट, मठ-मंदिर में इस बार 25 लाख तक दीपक जगमगाने की तैयारी है. ऐसे में आइए जानते हैं इस बार त्योहार का मुहूर्त क्या है और क्या है देव दीपावली का महत्व.
देव दीपावली कब है | Dev Deepawali Date
देव दीपावली शुभ अवसर पर घाट, मंदिर, देवालय खास तरीके से सजाए जाते हैं. उनका रंग-रोगन किया जाता है, बंदनवार भी लगाए जाते हैं, फूलों की रंगोली बनाई जाती है. रात में असंख्य दीप आसमान तक को रोशन कर देते हैं. यह त्योहार कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस बार कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि 15 नवंबर की सुबह 6.19 बजे से शुरू हो जाएगी और अगले दिन 16 नवंबर, 2024 की रात 2.58 बजे तक रहेगी. उदयातिथि के आधार पर देव दीपावली (Dev Deepawali 2024) शुक्रवार 15 नवंबर को मनाई जाएगी.
देव दीपावली क्यों मनाई जाती है
पुराणों के अनुसार, राक्षसराज तारकासुर के 3 पुत्र तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया और तीन अलग-अलग नगरों को वरदान में प्राप्त किया. ब्रह्मा जी ने असुर पुत्रों को सोने, चांदी और लोहे से बने 3 नगर, जो अंतरिक्ष में तरह घूमते रहते थे. इन्हें त्रिपुर कहा गया. इन नगरों का स्वामी होने की वजह से तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली त्रिपुरासुर कहलाए. अनंत अंतरिक्ष में घूमते हुए इन तीनों नगरों को एक विशेष ताकत मिली थी कि एक तय समय पर तीनों एक ही सीध में आएंगे, तभी नष्ट किए जा सकेंगे. ब्रह्मा जी ने कहा कि जो कोई एक ही बाण से इन तीनों नगरों को वेध देगा, वही इन्हें मार सकेगा. इस वरदान से त्रिपुरासुर अजेय बन गए थे. उन्होंने तीनों लोक पर अधिकार कर देवता, गंधर्व और मनुष्यों को सताने लगे.
त्रिपुरासुर का वध और देव दीपावली की शुरुआत
त्रिपुरासुर के अत्याचार इतने ज्यादा बढ़ गए कि हर तरफ त्राहिमाम-त्राहिमाम होने लगा. देवता भागकर भगवान शिव के पास गए और इन असुरों के आतंक से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की. इस विनती को सुनकर भगवान शिव ने जब तीनों नगर एक सीध में आए तो एक ही बाण से उन्हें नष्ट कर दिया. इसके बाद भीषण युद्ध में त्रिपुरासुर का भी वध कर दिया गया और भगवान शंकर त्रिपुरारी कहलाए. इसी खुशी में देवताओं ने देव दीपावली मनाई. मान्यता है कि तभी से यह परंपरा चली आ रही है.
देव दीपावली का क्या महत्व है
भगवान शिव (Lord Shiva) ने तीनों असुरों से मुक्ति कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रदोष काल में दिलाई थी. पुराणों के अनुसार, इसी विजय की खुशी में देवताओं ने शिव नगरी काशी से लेकर स्वर्ग तक दीप जलाकर देव दीपावली मनाई. तब से यह परंपरा चली आ रही है. इस दिन देवता प्रकाश के प्रतीक दीप जलाकर भगवान शिव की आराधना करते हैं. इस त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. जीवन में हमेशा प्रकाश फैलाने का संदेश देता है. मान्यता है कि इस दिन सभी देवता काशी की धरती पर उतर आते हैं और देव दीपावली मनाते हैं. इसी उपलक्ष्य में काशी को दुल्हन की तरह सजाया जाता है और हर तरफ दीप जगमग होते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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