सभी देशों में एयर क्वालिटी इंडेक्स मापने के अलग-अलग स्टैंडर्ड होते हैं. प्रदूषकों और उनके मापने के पैमाने के आधार पर यह अलग-अलग देशों में अलग-अलग हो सकता है. जैसे भारत में पीएम 2.5 का पैमाना 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है. जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का स्टैंडर्ड अपनाने वाले कुछ देशों में ये पैमाना 5 या 10 या 15 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर हो सकता है.
दिल्ली में वायु प्रदूषण (Air Pollution) का स्तर हर दिन खतरनाक होता जा रहा है. सोमवार को दिल्ली में हवा की क्वालिटी इतनी खराब रही कि औसत AQI 494 दर्ज किया गया. ये केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) का आंकड़ा था. 2015 के बाद से दूसरा सबसे खराब आंकड़ा है. वहीं, इंटरनेशनल ऐप IQAir ने सोमवार को दिल्ली का AQI 1,600 से भी ज्यादा बताया. इसे लेकर कंफ्यूजन की स्थिति पैदा हो गई. सवाल भी उठने लगा कि आखिर दोनों रीडिंग में कौन सा सही है? आपको जानकार हैरानी होगी कि एयर क्वालिटी इंडेक्स को लेकर CPCB और IQAir दोनों की रीडिंग सही है. आइए समझते हैं कैसे:-
दिल्ली का AQI 494 था, लेकिन IQAir ने इसे 1600 क्यों दिखाया?
दरअसल, सभी देशों में एयर क्वालिटी इंडेक्स मापने के अलग-अलग स्टैंडर्ड होते हैं. प्रदूषकों और उनके मापने के पैमाने के आधार पर यह अलग-अलग देशों में अलग-अलग हो सकता है. जैसे भारत में पीएम 2.5 का पैमाना 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है. जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का स्टैंडर्ड अपनाने वाले कुछ देशों में ये पैमाना 5 या 10 या 15 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर हो सकता है.
इसी तरह, भारत का AQI 500 पर सीमित किया गया है. लेकिन, इसका मतलब यह कतई नहीं है कि हवा में 500 से ज्यादा प्रदूषक तत्व नहीं हो सकते. या AQI 500 से ज्यादा ऊपर नहीं जा सकता. CPCB के मुताबिक, 0 और 50 के बीच एक AQI को अच्छा माना जाता है. 51 और 100 के बीच का AQI ठीक-ठाक माना जाता है. 101 और 200 के बीच के AQI को मध्यम माना जाता है, जबकि 201 और 300 के बीच का AQI खराब होता है. 301 और 400 के बीच के AQI को गंभीर माना जाता है. वहीं, 401 और 450 के बीच के बेहद गंभीर और 450 से 500 के ऊपर के AQI को बेहद बेहद गंभीर माना जाता है.
दिल्ली में सोमवार को जब सुप्रीम कोर्ट में प्रदूषण के मुद्दे पर सुनवाई चल रही थी, तब कोर्ट रूम का AQI 900 था. लेकिन भारतीय एजेंसियां यही दिखा रही थीं कि AQI 500 पहुंच गया है.
इंटरनेशनल ऐप IQAir यूएस के मॉडल पर बना है. इसे अमेरिका के एन्वायरनमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी ने डेवलप किया है. IQAir के स्केल पर एयर क्वालिटी के 6 अलग-अलग लेवल दिखते हैं. ये ‘अच्छा’ से लेकर ‘खतरनाक’ तक होता है. इस ऐप का हाइएस्ट लेवल यानी 500 से ज्यादा ‘खतरनाक’ माना जाता है. कुछ देशों में प्रदूषण का स्केल 0-10, 0-50, 0-60 और इससे ऊपर भी रखा गया है. ऐसे में यह कहना सही नहीं होगा कि एक एजेंसी का मानक सही है और दूसरे का सही नहीं है.
इंटरनेशल एजेंसियां कैसे मापती है भारत में प्रदूषण?
अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने दिल्ली-NCR के कई इलाकों में कुछ जगहों पर सेंसर्स लगाए हैं. लेकिन, क्या वह सही जगह पर लगाए गए हैं? क्या स्टैंडर्ड इक्विपमेंट लगाए हैं. इसके बारे में ज्यादा जानकारी सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं है.
AQI के किस रीडिंग को करना चाहिए फॉलो?
वैसे प्रदूषण को मापने का कोई सटीक फॉर्मूला नहीं है. भारत में लोग CPCB की ओर से जारी आंकड़ों पर ही भरोसा करते हैं. CPCB ने 40 स्टेशन दिल्ली-NCR इलाके में प्रदूषण के आकलन के लिए लगे हैं, जहां से प्रदूषण का आंकड़ा इकट्ठा किया जाता है. इसलिए भारतीय नागरिकों को सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की ओर से जारी AQI को ही फाइनल मानना चाहिए.
दिल्ली में लागू हुआ GRAP-4
बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM) ने 18 नवंबर से दिल्ली-NCR में बदला हुआ ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) का चौथा फेज लागू कर दिया है. इसके साथ ही बच्चों, बुजुर्गों, सांस और दिल के मरीजों, पुरानी बीमारियों से पीड़ितों को घरों में रहने की सलाह दी गई है. GRAP-4 के तहत सभी तरह के कंस्ट्रक्शन के काम बंद रहेंगे. 12वीं तक के स्कूल भी बंद कर दिए गए हैं. ऑनलाइन क्लासेस चल रही है.
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