Maldives-India row: चीन से निकटता के बीच मालदीव का भारत की ओर यू-टर्न

प्रो. राजेंद्र प्रसाद
मालदीव हिंद महासागर में श्रीलंका के दक्षिण-पश्चिम और भारत के लक्षद्वीप के दक्षिण में स्थित एशिया महाद्वीप का सबसे छोटा एक स्वतंत्र मुस्लिम-बहुल द्वीपीय देश है, जिसके पारंपरिक सुरक्षा , स्थिरता और आर्थिक विकास में भारत की अहम् भूमिका रही है। भौगोलिक दृष्टि से, मालदीव भारत के लक्षद्वीप से मात्र 700 किमी और भारतीय मुख्य भूमि से लगभग 1,200 किमी दूर है। मालदीव कुल 1192 द्वीपों की श्रृंखला (समूह) है, जिनमें से मात्र 200 द्वीपों पर ही मानव बस्तियां है, जबकि अन्य द्वीप पूरी तरह से आर्थिक प्रयोजनों के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, जिनमें पर्यटन, मत्स्य पालन और कृषि सबसे अधिक प्रभावी हैं। सकल घरेलू उत्पाद का 28% और मालदीव की विदेशी मुद्रा की प्राप्ति का 60% से अधिक, पर्यटन सेक्टर से आता है। भौगोलिक महत्व की दृष्टि से,यह देश ऐसे समुद्री मार्गों के दरम्यान स्थित है जहाँ से दुनिया का दो तिहाई तेल और मालवाहक जहाजों का आधा हिस्सा गुजरता है।

वर्ष 2024 में हिंद महासागर के क्षेत्रीय परिवेश में नये चुनौतीपूर्ण परिवर्तन आसन्न हैं। इनमें सर्वाधिक चौंकाने वाली घटना मालदीव और जनवादी चीन की बढ़ती निकटता और सहयोग है। दोनों देशों के बीच संपन्न हुआ जो रक्षा समझौता है, वह भू-सामरिक दृष्टि से अप्रत्याशित है। अब तक इन दोनों राष्ट्रों के बीच सहयोग मात्र शहरी और आर्थिक विकास के क्षेत्र तक ही सीमित था।मालदीव-चीन रक्षा समझौते से हिंद महासागर के सुरक्षा परिवेश में भारत के सम्मुख नई चुनौती उत्पन्न हुई है, जिससे भारत और मालदीव के सम्बंधों पर असर पड़ा है।

ऐतिहासिक दृष्टि से , भारत और मालदीव के नृजतीय व सांस्कृतिक सम्बंधों की जड़ें काफ़ी गहरी हैं। मौर्य वंश के सम्राट अशोक महान के शासनकाल में मालदीव में बौद्ध धर्म पहुँचा और वहां के शासकों ने बौद्ध धर्म को संरक्षण भी दिया। मालदीव सन् 1887 में ब्रिटेन का उपनिवेश बना और सन् 1965 में स्वतंत्र होने पर भारत ने मालदीव को सबसे पहले मान्यता दी और इसके साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए, क्योंकि शीतयुद्ध की परिस्थितियों में बाहरी शक्तियों के प्रभाव से सुरक्षित रहने के लिए मालदीव की भारत के साथ पारस्परिकता अत्यधिक आवश्यक थी। मालदीव हिन्द महासागर क्षेत्र में ऐसी जगह स्थित है जहाँ पर वह भारत के इर्द गिर्द सुरक्षा कवच तैयार करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है और बदले में भारत सदा ही उसके राष्ट्रीय हितों का रक्षक रहा है।

भारत-मालदीव की दोस्ती काफी पुरानी

यह बात सर्वविदित है कि सन् 1988 में, जब अब्दुल्ला लुथुफी के नेतृत्व में तमिल आतंकवादियों द्वारा समर्थित भाड़े के सैनिकों ने मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम की वैधानिक सरकार का तख्ता पलट करने का प्रयास किया था, तब राष्ट्रपति गयूम ने भारत सहित कई देशों से सैन्य हस्तक्षेप का अनुरोध किया था। अंततोगत्वा, तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी के आदेश से भारतीय वायु सेना ने बिना समय बर्बाद किए इस द्वीप देश की भूमि पर अपने पैराशूट सैनिकों को उतारा था तथा भारतीय नौसैनिक युद्धपोतों को तैनात कर ग़यूम की सरकार को बचा लिया था। भारत की इस सहयोगात्मक सैन्य कार्यवाही को “ऑपरेशन कैक्टस” ( Operation Cactus) नाम दिया गया था, जो दोनों देशों के बीच मित्रता और भारत द्वारा प्रदत्त सुरक्षा सहयोग का अतुल्य उदाहरण था। तत्क्रम में मालदीव ने भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर, हर मुद्दे पर भारत का समर्थन किया, फिर चाहे वह संयुक्त राष्ट्र हो, राष्ट्रमंडल रहा हो या फिर दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस) अर्थात् ( South Asian Association for Regional Cooperation- SAARC) का मंच हो। क्षेत्रीय स्तर पर, मालदीव ‘दक्षेस’ का संस्थापक सदस्य रहा है।

कब से आनी शुरू हुई दरारें…

मूल समस्या तब उत्पन्न हुई है जब चीन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बताते हुए मालदीव के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू ने यह घोषणा की कि चीन के साथ संपन्न रक्षा समझौते के फलस्वरूप मालदीव को चीन से बिना कोई कीमत चुकाए फ्री में गैर-घातक ( नॉन-लीथल) उपकरण और सैन्य प्रशिक्षण की सुविधा मिलेगी। इससे निकट भविष्य में मालदीव को अपने राष्ट्रीय रक्षा बल (MNDF) , जो एक संयुक्त सुरक्षा बल है और मालदीव की सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा के लिए जिम्मेदार है, के सभी संघटक सेवाओं को चीन से सैन्य प्रशिक्षण मिल सकेगा। ‘मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बल’ ( MNDF) का प्राथमिक कार्य मालदीव के सभी प्रकार की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा कार्यों के लिए उपस्थित होने के लिए कटिबद्ध रहना है, जिसमें विशेष आर्थिक क्षेत्रों (EEZ) की सुरक्षा भी शामिल है। तट रक्षक, आग और बचाव सेवा, पैदल सेना सेवा, प्रशिक्षण और शिक्षा के लिए सुरक्षा संस्थान (प्रशिक्षण समादेश) और सहायता सेवाएं मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बल (MNDF) की संघटक शाखाएं हैं ।

90 प्रतिशत समुद्र से घिरा है मालदीव

चारों ओर से जल से घिरा होने की वजह से मालदीव की अधिकांश सुरक्षा चुनौतियां समुद्र से जुड़ी हैं। देश का लगभग 90% भाग समुद्र द्वारा घिरा है और शेष 10% जमीन 415 किमी x 120 किमी के क्षेत्र में फैली हुई है, जिसमें सबसे बड़ा द्वीप अधिकतम 8 वर्ग किमी का है। इसलिए सामुद्रिक जल-क्षेत्र में निगरानी रखने और विदेशी घुसपैठियों द्वारा विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र(EEZ) और प्रादेशिक जल क्षेत्र ( Territorial Waters) में अवैध गतिविधियो को रोकने के लिए मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बलों (MNDF) को सैन्य और आर्थिक दृष्टि से काफी दायित्वपूर्ण कार्य सौंपे गए हैं।

तटरक्षक बलों की महत्वपूर्ण भूमिका

इन कार्यों के लिए तट रक्षक ( कोस्ट गार्ड्स) लगातार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। समय पर सुरक्षा प्रदान करने के लिए इसकी गश्ती नौकाएं विभिन्न MNDF क्षेत्रीय मुख्यालयों में तैनात रहती हैं । तटरक्षकों( coast guards) को समय-समय पर सुनियोजित ढंग से समुद्री संकट-काल का जवाब, खोज और बचाव संचालन करने का काम भी सौंपा जाता है। ऐसी खतरनाक परिस्थितियों से निपटने और उनकी विधिवत् जानकारी से सम्बंधित कार्यों तथा समुद्री प्रदूषण नियंत्रण के लिए नियमित रूप से अभ्यास आयोजित होते हैं। तत्क्रम में भारत-मालदीव और अन्य पड़ोसी देशों के संयुक्त अभ्यास होते रहे हैं।

इस दौरान चीन के साथ मालदीव के रक्षा सहयोग के विस्तार से हिंद महासागर क्षेत्र में शक्ति-संतुलन पर स्पष्ट रूप से विपरीत प्रभाव पड़ेगा। मालदीव के साथ चीन की नव-सृजित सामरिक सहभागिता एक प्रकार से उसकी हिंद महासागर में भारत को घेरने वाली “ स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स” ( मोतियों की डोर) रणनीति का विस्तार ही है। इसी रणनीति के तहत चीन भारत के विरुद्ध पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका, म्यांमार जैसे देशों से सैन्य अड्डों की आधारीय सुविधायें प्राप्त किए हुए है।

निश्चय ही हिन्दमहासागर, जिसका नाम ही हिंद अर्थात् भारत के नाम पर है, उसमें सामरिक दृष्टि से एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरता हुआ भारत इस तरह की किसी बाहरी हरकत को नजरअंदाज नहीं कर सकता है। इस दौरान हिंद महासागर में स्थित द्वीपीय राष्ट्र मालदीव की स्वतंत्रता और स्वायत्तता पर ज़ोर देते हुए सत्तासीन राष्ट्रपति मोइज्जू ने अपना इरादा और चीन की ओर झुकाव स्पष्ट कर दिया है।

चीन यात्रा से भारत हुआ सचेत

राष्ट्रपति मोइज्जू ने अपनी चीन-यात्रा के दौरान चीन के ‘अंतरराष्ट्रीय सैन्य सहयोग कार्यालय’ के उप-निदेशक मेजर-जनरल झांग बाओकुन और चीन के ‘आयात-निर्यात बैंक’ के अध्यक्ष रेन शेंगजुन से आधिकारिक मुलाकात और बैठकें करके भारत को चौकन्ना कर दिया है।पू र्व में जारी की गई विज्ञप्ति में स्पष्ट किया गया था कि राष्ट्रपति मोइज्जू और मेजर-जनरल झांग ने मालदीव और चीन के बीच सामरिक साझेदारी और भावी रक्षा सहयोग के विस्तार के ऊपर सम्यक् विचार विमर्श किया है।

अपनी वार्ता के दौरान, चीन के आयात-निर्यात बैंक के अध्यक्ष रेन शेंगजून ने मालदीव और चीन के बीच ऐतिहासिक संबंध, सहयोग और पारस्परिक सम्मान का हवाला दिया , साथ ही “ वन बेल्ट, वन रोड” की चीनी पहल में मालदीव की सहभागिता को भी स्वीकार किया गया। मोइज्जू और रेन दोनों ने द्विपक्षीय सहभागिता और सहयोग हेतु अपनी वचनबद्धता को भी स्पष्ट किया है। मोइज्जू की चीन यात्रा के दौरान 20 समझौते हुए।

मोइज्जू हैं चीन के घोर समर्थक

चीन के धुर समर्थक 45-वर्षीय मोहम्मद मोइज्जू ने मालदीव के राष्ट्रपति का पद सँभालते ही भारत विरोधी रूख दर्शाते हुए कहा कि मालदीव और चीन के बीच सैन्य सहयोग के उत्तरोत्तर बढ़ने के आसार और अवसर हैं। चीन के साथ हुए नए रक्षा समझौते से मालदीव अपनी सैन्य क्षमताओं में वृद्धि कर सकेगा। मालदीव और चीन के बीच बढ़ रहे सैन्य गाँठजोड़ के साथ-साथ मोइज्जू ने अति उत्साह में यह भी घोषणा कर डाली थी कि 10 मार्च 2024 के बाद मालदीव की धरती पर कोई भी भारतीय सैन्य कार्मिक , यहाँ तक कि नागरिक वेशभूषा में भी नहीं रह सकेंगे। राष्ट्रपति मोइज्जू ने अपनी घोषणा ऐसे समय में की थी , जब मालदीव के तीन उड्डयन प्लेटफार्मों में से एक पर भारतीय नागरिक कार्मिकों की नई टीम ने कुछ काल पहले ही कार्य सँभाला था। मालदीव-चीन रक्षा समझौते की पृष्ठभूमि में इस प्रकार की उत्तेजनापूर्ण घोषणा चिंता का सबब बन गई।

इंडिया आउट टी-शर्ट पहन चुनाव प्रचार

मालदीव में सितंबर 2023 के आम चुनाव में मोहम्मद मुइज्जू की पार्टी ने भारतीय सैनिकों को हटाने के लिए चुनाव में ‘इंडिया आउट’ अभियान चलाया था। मुइज्जू ने खुद ‘इंडिया आउट’ लिखी टी शर्ट पहन कर चुनाव प्रचार किया था। उन्होंने कहा था कि अगर राष्ट्रपति बन गए, तो भारतीय सैनिकों को मालदीव छोड़कर जाने को कहा जाएगा। चुनाव जीतने के 2 दिन बाद ही मुइज्जू ने भारतीय सैनिकों को मालदीव छोड़ने का आदेश जारी कर दिया था।17 नवंबर 2023 को राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के उपरांत मोहम्मद मोइज्जू ने भारत से आधिकारिक रूप से कहा कि वह 15 मार्च तक अपने 88 सैन्य कर्मियों को उसके देश से हटा ले। अपनी इस मंशा को मालदीव की जनता के द्वारा दिए गए जनादेश का प्रतिफलन बताते हुए उचित ठहराया था, क्योंकि विगत वर्ष सितंबर 2023 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में भारत-समर्थित इब्राहिम मोहम्मद सोलीह को करारी शिकस्त देकर मोइज्जू ने जीत की बाजी मार ली थी।

सबसे पहले नई दिल्ली आने की परंपरा को भी त्यागा

इतना ही नहीं, लम्बे अरसे से जीत के बाद नवनिर्वाचित राष्ट्रपति के सर्वप्रथम नई दिल्ली आने की परिपाटी को त्याग दिया। मोहम्मद मोइज्जू ने सबसे पहले तुर्किए और फिर संयुक्त अरब अमीरात की यात्राएं की , जिसका तात्पर्य नीतिगत स्वायत्तता प्रदर्शित करना था। तत्पश्चात् चीन की यात्रा करके बीजिंग में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अन्य अधिकारियों से मिलकर चीन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रकट की है।

तेज़ी से बदलती परिस्थितियों में, भारत और मालदीव के सम्बंधों में आई तल्ख़ी के बीच मालदीव की राजधानी माले में हुए मेयर के इलेक्शन में मोइज्जू का भारत विरोधी रूख जनता को रास नहीं आया। मात्र 58 दिन बाद 13 जनवरी 2024 को चुनाव में, राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू द्वारा समर्थित उम्मीदवार आजिमा शकूर को माले की जनता ने बुरी तरह से हरा दिया और विपक्षी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी ( एमडीपी) के प्रत्याशी आदम अज़ीम को जिता दिया।इससे स्पष्ट है स्थानीय स्तर पर जनता को मोइज्जू का भारत विरोधी रूख मान्य नहीं है।

वर्तमान में, एक ओर इधर भारत में संसदीय प्रणाली के अन्तर्गत लोकसभा निर्वाचन-2024 की प्रक्रिया जारी है। दूसरी ओर, विगत 21 अप्रैल 2024 को मालदीव में भी संसद के चुनाव संपन्न हुए हैं, जिसमें राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू की पार्टी ने चीन के कथित समर्थन से भारी विजय हासिल कर ली है। इस परिस्थिति में मालदीव में सत्तारूढ़ मोइज्जू सरकार के सहयोग से चीन द्वारा अपने भारतविरोधी रणनीति के क्रियान्वयन और विस्तार को लेकर विभिन्न राजनीतिक, कूटनीतिक और बौद्धिक मंचों पर चर्चा जारी है।

इस बीच हिंद महासागर क्षेत्र में होने वाली गतिविधियाँ और वर्ष 2024 में इस प्रकार का व्यवहारगत उलटफेर भारत के लिए निश्चित रूप से चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि मालदीव भौगोलिक दृष्टि से हिंदमहासागर में भारत का पड़ोसी राष्ट्र है तथा अनेक भूराजनीतिक और भू – सामरिक कारणों से महत्व रखता है। मालदीव की पिछली सत्तारूढ़ सरकार के कार्यकाल में भारत के साथ सहयोगात्मक संबंधों में, विशेष रूप से रक्षा और आर्थिक सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग का बड़े पैमाने पर विस्तार हुआ था। अचानक मालदीव द्वारा आधिकारिक रूप से नीतिगत उलटफेर का दूरगामी प्रभाव दोनों राष्ट्रों के साथ-साथ, पूरे हिंद महासागर क्षेत्र की सुरक्षा और आर्थिक परिवेश पर पड़ेगा। ऐसी परिस्थिति में भारत को हिंद महासागर क्षेत्र में अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों की कड़ियों की पुनर्समीक्षा कर नये सिरे से समायोजन करने की आवश्यकता बढ़ गई है। वर्तमान में मालदीव से ‘ इंडिया आउट’ अभियान को वहाँ की सीमित आबादी का समर्थन प्राप्त है , लेकिन इसे भारत सरकार द्वारा कम करके नहीं आँका जा सकता है।

नेबर फर्स्ट नीति

भारत सरकार अपनी विदेश नीति के तहत, “पड़ोसी पहले की नीति” (Neighbour First Policy) को विशेष तवज्जो देती रही है। यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि पड़ोसी मालदीव भारत के लक्षद्वीप समूह के मिनिकोय द्वीप से मात्र 70 नॉटिकल मील तथा मुख्य भूभाग से लगभग 300 नॉटिकल मील दूर है। यह सामरिक, वाणिज्यिक और आर्थिक दृष्टि से विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि हिंद महासागर में अवस्थित एक टोल गेट के रूप में मालदीव द्वीप समूह के दक्षिणी और उत्तरी हिस्सों में सामुद्रिक आवागमन के लिए दो महत्त्वपूर्ण समुद्री संचरण मार्ग ( Sea Lines of Communication-SLOCs) हैं, जो पश्चिम एशिया में अदन की खाड़ी तथा होर्मुज़ की खाड़ी एवं दक्षिण-पूर्व एशिया में मलक्का जलसंधि से होने वाले सामुद्रिक व्यापार के लिये प्रयुक्त होते हैं।

वर्तमान में, मालदीव में सत्तारूढ़ मोइज्जू सरकार द्वारा अति उत्साह में पूर्वाग्रहवश भारत के साथ पूर्ववर्ती राष्ट्रपति इब्राहीम मोहम्मद सोलीह सरकार के कार्यकाल में किए गए 100 से अधिक समझौतों की समीक्षा हेतु उधेड़बुन जारी है। इस बीच चीन का सरकारी मीडिया ‘ग्लोबल टाइम्स‘ यह दुष्प्रचार कर रहा है और पूर्वाग्रह-युक्त रूख अपनाए हुए है कि भारत हिंद महासागर क्षेत्र में अपना प्रभुत्व या एकाकी दबदबा कायम करना चाहता है।

भारत के विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने चीन के दावे का विरोध किया है और कहा है कि मुख्य रूप से एक सराहनीय परिवर्तन यह हुआ है कि भारत और इस क्षेत्र के पड़ोसी देशों के बीच संबंध उत्तरोत्तर मजबूत हो रहे हैं। यहाँ पर यह रेखांकित करना समीचीन है कि संबंधों की मजबूती का आधार पारस्परिकता और सदाशयता है और भारत के धौंस और दबंगई का आरोप निराधार और भ्रामक है। कोई भी राष्ट्र जो सचमुच में दबंगई या धौंस जमाने वाला होगा, वह भारत की तरह अपने पड़ोसियों को $4.5 बिलियन की सहायता राशि नहीं देगा; कोविड-19 महामारी के दौरान वैक्सीन की खेप दूसरे देशों को नहीं देगा अथवा दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में संघर्षरत और हिंसाग्रस्त राष्ट्रों को नियमों व औपचारिकताओं को अपवाद स्वरूप रखकर भोजन, ईंधन,दवाइयां, रासायनिक खादों आदि को नहीं देगा। भारत ने ही इस प्रकार की सहायता करके मानवीय पक्ष को मजबूत किया है।अस्तु, भारत की दादागिरी या दबंगई का प्रश्न कहाँ है !

मालदीव के राष्ट्रपति मोइज्जू ने यह भी रेखांकित किया कि मालदीव चीन से विभिन्न प्रकार की मशीनें और सुविधाएं प्राप्त करके स्वतंत्र रूप से अपने मुख्य क्षेत्र में जलगर्भीय सर्वेक्षण का कार्य करने के लिए उत्सुक है। इससे उसको समुद्र-जल के अंदर विभिन्न भू-आकृतियों का सर्वेक्षण करने और आर्थिक-भौगोलिक चार्ट तैयार का सुअवसर मिलेगा।इसके पहले, पूर्ववर्ती राष्ट्रपति इब्राहीम मोहम्मद सोलीह की सरकार के कार्यकाल में इस प्रकार के सर्वेक्षण के लिए भारत के साथ करार हुआ था, लेकिन अब राष्ट्रपति मोइज्जू की सरकार इस करार को आगे बढ़ाएगी या नहीं, यह भविष्य के गर्भ में है।

मालदीव और चीन के बीच सामरिक और आर्थिक क्षेत्र में सहयोग और सहभागिता की नवीन पटकथा लिखे जाने के मद्देनजर, भारत हिंद महासागर क्षेत्र में अपने पड़ोसी राष्ट्रों के साथ अपेक्षाकृत अधिक पारस्परिक क्रियाशीलता , तत्पर सामरिक एवं आर्थिक सहभागिता, सहयोग और सम्मानजनक रवैया अपनाने के लिए अग्रसर है।इससे भारत को चीन की “ स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स” रणनीति को निष्क्रिय करके, दक्षिण एशिया सहित समूचे हिंद महासागर क्षेत्र में अपने सामरिक, वाणिज्यिक, आर्थिक और अन्य हितों की रक्षा में सफलता मिलने के अवसर उत्पन्न होंगे।

ऐसे परिवर्तनशील परिवेश में, मालदीव के सर्वांगीण विकास और सुरक्षा में भारत की जो विगत काल में सकारात्मक पहल और भूमिका रही है, उसे नजरअंदाज करना मालदीव के राष्ट्रीय हितों के लिए पूरी तरह से घातक है।भारत को नजरअंदाज करके विस्तारवादी चीन के साथ एकांगी और व्यापक राजनीतिक, सामरिक,आर्थिक और व्यापारिक पारस्परिकता व झुकाव से मालदीव जैसे छोटे से द्वीप देश का टिकाऊ लाभ नहीं हो सकता।

Damage Control के लिए जल्द आए, दुरुस्त आए

वर्ष 2024 के प्रारंभिक कुछ माह में भारत के विरुद्ध प्रेरित , मालदीव के मोइज्जू सरकार की चीन की ओर झुकाव सम्बंधी नीतिगत अतिशयता का नकारात्मक प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से दिखने लगा है। मिसाल के तौर पर, मालदीव की आर्थिक प्रगति का मेरुदंड पर्यटन है, लेकिन इस बीच मालदीव जाने वाले भारतीय पर्यटकों की संख्या में लगभग 42% की गिरावट आई है । भारतीय पर्यटकों के बॉयकॉट के बाद मालदीव को कम से कम 400 करोड़ के आसपास का नुकसान हुआ है। फलत: परिस्थितियों को भांपकर मोइज्जू सरकार भारत के साथ सम्बंधों में आई खटास और दूरी का विलोपन करने में लग गई है।

भारतीय विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, हाल ही में मुइज्जू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मालदीव के विकास के लिए खुलकर मदद की अपील की है।ऐसे में माना जा रहा है कि मुइज्जू भारत के साथ अपने संबंधों को सुधारने और पुराने सहयोग को फिर से बहाल करने के लिए आतुर हैं, ताकि तनाव से आई दूरियों को दूर किया जा सके।बीच में, विदेशमंत्री मूसा जमीर की प्रस्तावित भारत यात्रा से पहले मालदीव के पर्यटन मंत्री इब्राहिम फै़सल भारतीय पर्यटकों से मालदीव आने की अपील कर चुके हैं, जिससे पूर्व में हुए आर्थिक नुकसान की कुछ भरपाई की जा सके।

भारत के साथ तनाव और राजनयिक गतिरोध के बीच सकारात्मक रूख अपनाते हुए, 9 मई 2024 को मालदीव के विदेश मंत्री मूसा ज़मीर ने नई दिल्ली में अपने भारतीय समकक्ष डॉ. एस जयशंकर से मुलाकात करके द्विपक्षीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर व्यापक विचार-विनिमय करके सही दिशा में बढ़ने की पहल की है।

मालदीव से भारतीय सैनिकों की वापसी की डेडलाइन (10मई) से एक दिन पहले विदेश मंत्री मूसा ज़मीर के भारत आगमन को दोनों देशों के मौजूदा रिश्तों में एक नए मोड़ की तरह देखा गया। मालदीव से भारतीयों सैनिकों की वापसी और दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग के मुद्दे पर विदेश मंत्री मूसा जमीर ने यह रेखांकित किया है कि “मुझे लगता है कि मालदीव-भारत रक्षा संबंध सैन्य कर्मियों से परे हैं। अब तक जिस प्लेटफॉर्म को सैन्य कर्मियों ने संभाला है, उसे नागरिक संभालेंगे। हमने मालदीव की सेना, भारतीय सेना और श्रीलंका के साथ एक संयुक्त अभ्यास किया है। बांग्लादेश भी एक ऑब्जर्वर है, लिहाजा हम आगे भी ये अभ्यास जारी रखना चाहेंगे।…..हिंद महासागर की शांति और सुरक्षा भारत और मालदीव दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। इसलिए हम भारत के साथ हिंद महासागर को एक शांतिपूर्ण स्थान बनाने के लिए मिलकर काम करेंगे।”

उल्लेखनीय है कि मालदीव सरकार के पिछले प्रावधानों के मुताबिक, वहां के दो हेलिकॉप्टर्स और एक डॉर्नियर एयरक्राफ्ट के ऑपरेशन के लिए 88 भारतीय सैनिक तैनात थे। इनमें से 51 सैनिक भारत वापस आ गए हैं।

मालदीव के साथ अपने नीतिगत प्रत्युत्तर में, अपने आधिकारिक वक्तव्य में भारतीय विदेशमंत्री डॉ. जयशंकर ने यह स्पष्ट किया है कि “भारत हमेशा ‘नेबर फर्स्ट पॉलिसी’ (Neighbour First Policy) पर चलता है। दोनों देशों के रिश्ते आपसी हितों पर टिके हैं। भारत विकास के मामले में मालदीव को सहयोग करने वाले अहम देशों में शामिल है….हमारे कई प्रोजेक्ट्स से मालदीव के लोगों को फायदा पहुंचा है। कई मौके पर मालदीव को वित्तीय मदद भी दी है।”

ऐसे में भारत और मालदीव के सम्बंध सामान्य होने के आसार बढ़ गए हैं, जो दोनों देशों के व्यापक हितों के संरक्षण और संवर्द्धन का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।

(इस लेख के लेखक प्रो. राजेंद्र प्रसाद कई विश्वविद्यालयों के कुलपति रहे चुके हैं। प्रो.राजेंद्र प्रसाद, यूपी के प्रयागराज में स्थित प्रो. राजेंद्र सिंह ( रज्जू भैया) विश्वविद्यालय के पहले कुलपति रहने के साथ ही गोरखपुर विवि के कुलपति रहे हैं। डिफेंस स्ट्रेटेजिस की विशेषज्ञता रखने वाले प्रो.राजेंद्र प्रसाद, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्याल के रक्षा एवं स्ट्रेटेजिक अध्ययन विभाग के पूर्व प्रोफेसर व अध्यक्ष हैं।)