प्रो. राजेंद्र प्रसाद
मालदीव हिंद महासागर में बसा एक द्वीप देश है , जिसकी पारंपरिक सुरक्षा और आर्थिक विकास में भारत की अहम् भूमिका रही है। वर्ष 2024 में हिंद महासागर के क्षेत्रीय परिवेश में नये चुनौतीपूर्ण परिवर्तनों की आहट सुनाई पड़ रही है। इनमें सर्वाधिक चौंकाने वाली घटना मालदीव और जनवादी चीन के बीच संपन्न हुआ रक्षा समझौता है, जो सामरिक दृष्टि से पहला और अप्रत्याशित है। अब तक इन दोनों राष्ट्रों के बीच सहयोग मात्र शहरी और आर्थिक विकास के क्षेत्र तक ही सीमित था। इस समझौते से हिंद महासागर के सुरक्षा परिवेश में भारत के सम्मुख नई चुनौती उत्पन्न होना स्वाभाविक है।
नव-निर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू ने यह स्पष्ट घोषणा की है कि चीन के साथ हुए इस समझौते के फलस्वरूप मालदीव को चीन से बिना कोई कीमत चुकाए फ्री में गैर-घातक ( नॉन-लीथल) उपकरण और सैन्य प्रशिक्षण की सुविधा मिलेगी। इससे निकट भविष्य में मालदीव को अपने राष्ट्रीय रक्षा बल (MNDF) , जो एक संयुक्त सुरक्षा बल है और मालदीव की सुरक्षा और संप्रभुता की रक्षा के लिए जिम्मेदार है, के सभी सेवाओं को चीन से सैन्य प्रशिक्षण मिल सकेगा।
‘मालदीव राष्ट्रीय रक्षा बल’ ( MNDF) का प्राथमिक कार्य मालदीव के सभी आंतरिक और बाह्य सुरक्षा प्रयोजनों के लिए उपस्थित होने के लिए कटिबद्ध रहना है, जिसमें विशेष आर्थिक क्षेत्रों (EEZ) की सुरक्षा भी शामिल है। इस बीच चीन के साथ मालदीव के रक्षा सहयोग के विस्तार से हिंद महासागरीय शक्ति-संतुलन पर स्पष्ट रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
यह स्ट्रिंग्स ऑफ पर्ल्स रणनीति का विस्तार
मालदीव के साथ चीन की नव-सृजित सामरिक सहभागिता एक प्रकार से उसकी भारत को हिंद महासागर में घेरने वाली “ स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स” (मोतियों की डोर) रणनीति का ही विस्तार है। इसी रणनीति के तहत चीन भारत के विरुद्ध पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका, म्यांमार जैसे देशों से सैन्य अड्डे की सुविधा प्राप्त किए है।
निश्चय ही हिन्दमहासागर, जिसका नाम ही हिंद अर्थात् भारत के नाम पर है, उसमें सामरिक दृष्टि से एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरता हुआ भारत इस तरह की किसी बाहरी हरकत को नजरअंदाज नहीं कर सकता है। इस दौरान क़ाबिलेगौर है कि हिंद महासागर के अपने छोटे से द्वीपीय देश मालदीव की स्वतंत्रता और स्वायत्तता पर ज़ोर देते हुए राष्ट्रपति मोइज्जू ने अपना इरादा और चीन की ओर झुकाव स्पष्ट कर दिया है।
चीन-यात्रा
यही नहीं ,राष्ट्रपति मोइज्जू ने अपनी चीन-यात्रा के दौरान चीन के ‘अंतरराष्ट्रीय सैन्य सहयोग कार्यालय’ के उप-निदेशक मेजर-जनरल झांग बाओकुन और चीन के ‘आयात-निर्यात बैंक’ के अध्यक्ष रेन शेंगजुन से आधिकारिक मुलाकात और बैठकें करके भारत को चौकन्ना कर दिया है। जारी की गई विज्ञप्ति में स्पष्ट किया गया है कि राष्ट्रपति मोइज्जू और मेजर-जनरल झांग ने मालदीव और चीन के बीच सामरिक साझेदारी और भावी रक्षा सहयोग के विस्तार के ऊपर सम्यक् वार्ता की है।
अपनी वार्ता के दौरान, चीन के आयात-निर्यात बैंक के अध्यक्ष रेन शेंगजून ने मालदीव और चीन के बीच ऐतिहासिक संबंध, सहयोग और पारस्परिक सम्मान का हवाला दिया , साथ ही “ वन बेल्ट, वन रोड” की चीनी पहल में मालदीव की सहभागिता को भी स्वीकार किया। तत्क्रम में मोइज्जू और रेन दोनों ने द्विपक्षीय सहभागिता और सहयोग हेतु अपनी भावी वचनवद्धताओं को भी स्पष्ट किया है।
मालदीव की उत्तेजनापूर्ण घोषणा चिंतनीय
45 वर्षीय मोहम्मद मोइज्जू जो प्रारम्भ से ही चीन के समर्थक माने जाते हैं, उन्होंने राष्ट्रपति पद सँभालते ही भारत विरोधी इरादा प्रकट करते हुए स्पष्ट किया था कि मालदीव और चीन के बीच सैन्य सहयोग उत्तरोत्तर बढ़ने के आसार और अवसर हैं। हाल में हुए नए रक्षा समझौते से मालदीव अपनी सैन्य क्षमताओं में वृद्धि कर सकेगा। मालदीव और चीन के बीच बढ़ रहे सैन्य गाँठजोड़ के साथ-साथ मोइज्जू ने यह भी घोषणा कर डाली कि 10 मार्च 2024 के बाद मालदीव की धरती पर कोई भी भारतीय सैन्य कार्मिक, यहाँ तक कि नागरिक वेशभूषा में भी नहीं रह सकेंगे।
राष्ट्रपति मोइज्जू ने अपनी घोषणा ऐसे समय में की , जब मालदीव के तीन हवाई अड्डों में से एक पर भारतीय नागरिक कार्मिकों की नई टीम ने कुछ काल पहले ही कार्य सँभाल रखा था। मालदीव-चीन रक्षा समझौते की पृष्ठभूमि में इस प्रकार की उत्तेजनापूर्ण घोषणा चिंतनीय है।
क़ाबिलेगौर है कि 17 नवंबर 2023 को राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के उपरांत मोहम्मद मोइज्जू ने भारत से आधिकारिक रूप से कहा कि वह 15 मार्च तक अपने 88 सैन्य कर्मियों को उसके देश से हटा ले। अपनी इस मंशा को मालदीव की जनता के द्वारा दिए गए जनादेश के आधार पर उचित ठहराया, क्योंकि विगत सितंबर 2023 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में भारत-समर्थित इब्राहिम मोहम्मद सोलीह को करारी शिकस्त देकर मोइज्जू ने जीत की बाजी मार ली थी।
इतना ही नहीं, अरसे से जीत के बाद किसी भी नवनिर्वाचित राष्ट्रपति के सर्वप्रथम नई दिल्ली आने की परिपाटी को त्यागते हुए, मोहम्मद मोइज्जू ने सबसे पहले चीन की यात्रा की और बीजिंग में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अन्य अधिकारियों से मिलकर चीन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रकट की है।
अनेक भूराजनीतिक और भू – सामरिक कारणों से महत्व
इस बीच हिंद महासागर क्षेत्र में होने वाली गतिविधियाँ और वर्ष 2024 में इस प्रकार का व्यवहारगत उलटफेर भारत के लिए निश्चित रूप से चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि मालदीव भौगोलिक दृष्टि से हिंदमहासागर में भारत का पड़ोसी राष्ट्र है तथा अनेक भूराजनीतिक और भू – सामरिक कारणों से महत्व रखता है । मालदीव की पिछली सत्तारूढ़ सरकार के कार्यकाल में भारत के साथ सहयोगात्मक संबंधों में, विशेष रूप से रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग का बड़े पैमाने पर विस्तार हुआ था। अचानक मालदीव द्वारा आधिकारिक नीतिगत उलटफेर का दूरगामी प्रभाव दोनों राष्ट्रों के साथ-साथ, पूरे क्षेत्र के सुरक्षा और आर्थिक परिवेश पर पड़ेगा।
ऐसी परिस्थिति में भारत को हिंद महासागर क्षेत्र में अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों की कड़ियों की पुनर्समीक्षा कर नये सिरे से समायोजन करने की आवश्यकता होगी। क़ाबिलेगौर है कि मालदीव भारत के लक्षद्वीप के मिनिकोय द्वीप से मात्र 70 नॉटिकल मील तथा मुख्य भूभाग से लगभग 300 नॉटिकल मील दूर है। मालदीव इसलिए भी सामरिक, वाणिज्यिक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हिंद महासागर क्षेत्र के सामुद्रिक जलमार्गों के मध्य में अवस्थित है और इसका क्षेत्रीय महत्व व्यापक है।
चीनी सरकारी मीडिया कर रहा दुष्प्रचार
वर्तमान में , मालदीव में सत्तारूढ़ राष्ट्रपति मोइज्जू की सरकार भारत के साथ पूर्ववर्ती राष्ट्रपति इब्राहीम मोहम्मद सोलीह सरकार द्वारा किए गए 100 से अधिक समझौतों पर पुनर्विचार करने को आतुर है।
इस बीच चीन का सरकारी मीडिया ‘ग्लोबल टाइम्स‘ यह दुष्प्रचार कर रहा है और पूर्वाग्रह-युक्त रूख अपनाए हुए है कि भारत हिंद महासागर क्षेत्र में अपना प्रभुत्व या एकाकी दबदबा कायम करना चाहता है। भारत के विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने चीन के इस दावे का यह कहते हुए विरोध किया है कि प्रमुख सराहनीय परिवर्तन यह हुआ है कि भारत और इस क्षेत्र के पड़ोसी देशों के बीच संबंध उत्तरोत्तर मजबूत हो रहे हैं।
यहाँ पर यह रेखांकित करना समीचीन है कि संबंधों की मजबूती का आधार पारस्परिकता और सदाशयता है और भारत के धौंस और दबंगई का आरोप निराधार और भ्रामक है। कोई भी राष्ट्र जो सचमुच में दबंगई या धौंस जमाने वाला होगा, वह भारत की तरह अपने पड़ोसियों को $4.5 बिलियन की सहायता राशि नहीं देगा; कोविड-19 महामारी के दौरान वैक्सीन की खेप दूसरे देशों को नहीं देगा अथवा दुनिया के अलग-अलग क्षेत्रों में संघर्षरत और हिंसाग्रस्त राष्ट्रों को नियमों व औपचारिकताओं को अपवाद स्वरूप रखकर भोजन, ईंधन,दवाइयां, रासायनिक खादों आदि नहीं देगा।भारत ने ही इस प्रकार की सहायता करके मानवीय पक्ष को मजबूत किया है।अस्तु, भारत की ओर से दादागिरी या दबंगई का प्रश्न कहाँ है।
मोइज्जू की सरकार इस करार को बढ़ाना नहीं चाहती
इस बीच राष्ट्रपति मोइज्जू ने कहा है कि मालदीव चीन से मशीनें और सुविधाएं प्राप्त करके स्वतंत्र रूप से अपने मुख्य क्षेत्र में जलगर्भीय सर्वेक्षण का कार्य करने के लिए उत्सुक है। इससे उसको समुद्र-जल के अंदर विभिन्न आकृतियों का सर्वेक्षण करने और चार्ट तैयार का सुअवसर मिलेगा। इसके पहले, पूर्ववर्ती राष्ट्रपति इब्राहीम मोहम्मद सोलीह की सरकार के कार्यकाल में इस प्रकार के सर्वेक्षण के लिए भारत से करार हुआ था लेकिन अब राष्ट्रपति मोइज्जू की सरकार इस करार को बढ़ाना नहीं चाहती ।
मालदीव और चीन के बीच सामरिक और आर्थिक क्षेत्र में सहयोग और सहभागिता की नवीन पटकथा लिखे जाने के मद्देनजर भारत को हिंद महासागर क्षेत्र में अपने पड़ोसी राष्ट्रों के साथ अपेक्षाकृत अधिक क्रियाशीलता व तत्परतापूर्वक सामरिक एवं आर्थिक सहभागिता, सहयोग और सम्मानजनक रवैया अपनाना होगा। इससे भारत को चीन की “ स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स” रणनीति को निष्क्रिय करके, दक्षिण एशिया और समूचे हिंद महासागर क्षेत्र में अपने सामरिक, वाणिज्यिक, आर्थिक और अन्य हितों की रक्षा में सफलता मिलेगी। मालदीव जैसे देश को भी सबक मिलेगा।
(प्रो. राजेंद्र प्रसाद, जाने-माने रक्षा विशेषज्ञ हैं। रक्षा अध्ययन विभाग का उनको 46 वर्षों का अनुभव है। आप यूपी के प्रयागराज के प्रो. राजेंद्र सिंह ( रज्जू भैया) विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति रहे हैं। साथ ही दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विवि के कुलपति रहने के साथ गोरखपुर विवि में रक्षा एवं स्ट्रेटेजिक अध्ययन विभाग के पूर्व अध्यक्ष हैं।)