October 9, 2024
Jammu Kashmir Election Result 2024:कश्मीर में अलगाववादियों को मिली करारी हार, जानें किसका कैसा रहा प्रदर्शन

Jammu Kashmir Election Result 2024:कश्मीर में अलगाववादियों को मिली करारी हार, जानें किसका कैसा रहा प्रदर्शन​

जम्मू कश्मीर की अवाम ने अलगाववाद का नारा देने वालों को नकार दिया है. इस चुनाव में करीब 30 पूर्व आतंकवादी, अलगाववादी और जमात-ए-इस्लामी के कार्यकर्ता चुनाव मैदान में थे. ये सभी कश्मीर घाटी में चुनाव लड़ रहे थे. लेकिन सभी को हार का मुंह देखना पड़ा है.

जम्मू कश्मीर की अवाम ने अलगाववाद का नारा देने वालों को नकार दिया है. इस चुनाव में करीब 30 पूर्व आतंकवादी, अलगाववादी और जमात-ए-इस्लामी के कार्यकर्ता चुनाव मैदान में थे. ये सभी कश्मीर घाटी में चुनाव लड़ रहे थे. लेकिन सभी को हार का मुंह देखना पड़ा है.

जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव ने राज्य के अलगाववादियों को शिकस्त दी है.इश चुनाव परिणाम ये यह संदेश निकला है कि जनता ने विकास और शांति का रास्ता अख्तियार किया है. उसने अलगाववाद का नारा देने वालों को नकार दिया है.
इस चुनाव में करीब 30 पूर्व आतंकवादी, अलगाववादी और जमात-ए-इस्लामी के कार्यकर्ता चुनाव मैदान में थे. ये सभी कश्मीर घाटी में चुनाव लड़ रहे थे.

कैसा रहा रशीद इंजीनियर की पार्टी का प्रदर्शन

बारामुला के सांसद रशीद इंजीनियर ने अवामी इत्तेहाद पार्टी का गठन किया था. लोकसभा चुनाव में वो बारामुला सीट
पर पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को हराकर सुर्खियों में आ गए थे. उन्होंने यह चुनाव जेल में रहते हुए लड़ा था. लेकिन इस चुनाव में अवामी इत्तेहाद पार्टी ने 35 से अधिक सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. चुनाव से पहले ही अदालत ने उन्हें एक महीने के लिए जमानत दे दी थी. जेल से जमानत पर रिहा होने के बाद रशीद इंजीनियर ने घाटी में जमकर चुनाव प्रचार किया.लेकिन रशीद इंजीनियर की पार्टी को सफलता केवल एक सीट पर ही मिल सकी. लंगेट में उनके भाई खुर्शीद अहमद शेख ही विधानसभा पहुंचने में कामयाब हो सके.इंजीनियर इस सीट से 2008 और 2014 में विधायक चुने गए थे. साल 2013 में उन्होंने अवामी इत्तेहाद पार्टी का गठन किया था.खुर्शीद को छोड़ अवामी इत्तेहाद पार्टी के बाकी के उम्मीदवारों को हार का मुंह देखना पड़ा.

लंगेट विधानसभा सीट से जीत का प्रमाण पत्र दिखाते खुर्शीद अहमद शेख.

जमात-ए-इस्लामी समर्थक उम्मीदवारों का प्रदर्शन

इस चुनाव में जमात-ए-इस्लामी भी पिछले दरवाजे से चुनाव लड़ा रहा था. देश विरोधी गतिविधियों के आरोप में केंद्र सरकार ने 2019 में जमात-ए-इस्लामी पर पांच साल के लिए पाबंदी लगा दी थी. इसे इस साल फरवरी में फिर पांच साल के लिए बढा दिया गया. उसके चुनाव लड़ने पर भी पाबंदी है.उसने इस चुनाव में नौ सीटों पर निर्दलीय के रूप में अपने उम्मीदवार उतारे थे.लेकिन इनमें से सैयार अहमद रेशी ही अपनी जमानत बचा पाए. रेशी कुलगाम सीट से उम्मीदवार थे. वहां उन्हें माकपा के मोहम्मद युसूफ तारिगामी ने मात दी.रेशी दूसरे नंबर पर रहे.

जमात ने इस चुनाव में करीब नौ निर्दलीय उम्मीदवार उतारे थे. लेकिन सभी हार गए.

जमात ने इस चुनाव में अवामी इत्तेहाद पार्टी से समझौता किया था.दोनों ने कुछ सीटों पर फ्रेंडली फाइट भी की थी. लेकिन कामयाबी किसी को नसीब नहीं हुई.जमात-ए-इस्लामी ने इस्लामी जिसने वर्ष 1987 के विधानसभा चुनाव में बने मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट का हिस्सा थी. लेकिन 1987 के चुनाव में धांधली का आरोप लगाकर चुनाव से मुंह मोड़ लिया था. उसने 2019 के लोकसभा चुनाव तक चुनावों का बहिष्कार किया.

अफजल गुरु के भाई को कितने वोट मिले

इनके अलावा इस चुनाव में सरजन अहमद वागे ने गांदरबल और बीरवाह से चुनाव लड़ा था. सरजन का नाम उस समय सुर्खियों में आया था, जब उन्होंने बुरहान वानी की एक मुठभेड़ में हुई मौत के बाद प्रदर्शन का आयोजन किया था. सरजन को बीरवाह में 12 हजार से अधिक वोट मिले. वहां वो तीसरे नंबर पर रहे. लेकिन गंदरबल में वो उमर अब्दुल्ला के खिलाफ वो 500 वोट भी नहीं हासिल कर पाए. उन्हें 438 वोटों के साथ 11वें नंबर पर संतोष करना पड़ा. वहीं 2001 के संसद हमले के दोष में फांसी की सजा पाए अफजल गुरु के भाई एजाज अहमद गुरु ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में सोपोर से पर्चा भरा था. लेकिन जब चुनाव परिणाम आए तो उनके हिस्से में केवल 129 वोट ही आए. उन्हें नोटा से भी कम वोट मिले.

जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद-370 और 35ए हटाए जाने के बाद हुए पहले चुनाव के नतीजे बताते हैं कि कश्मीर के लोग अलगाववाद के नारों के चक्कर में नहीं पड़ने वाले हैं. हालांकि नेशनल कॉन्फ्रेंस को मिली सफलता में अनुच्छेद-370 और 35ए हटाए जाने को मुद्दा बनाए जाने का समर्थन माना जा रहा है. कश्मीर के मतदाताओं ने अगर नेशनल कॉन्फ्रेंस को इस मुद्दे पर वोट दिया है तो, यह मानकर की अनुच्छेद 370 उन्हें भारतीय संविधान के दायरे में ही आंतरिक स्वायत्तता प्रदान करता है. अगर कश्मीर का अवाम अलगाववादी एजेंडे का समर्थक होता तो वह कश्मीर को अनसुलझा विवाद बताने वाले इंजीनियर रशीद के उम्मीदवारों को जिताता. लेकिन ऐसा नहीं हुआ है. यह दिखाता है कि कश्मीरी अवाम ने विकास और शांति की राह चुनी है.

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